सुप्रीम कोर्ट ने कश्मीरी अलगाववादी शब्बीर अहमद शाह को पुराने नजरबंदी आदेशों की प्रतियां देने की मांग वाली याचिका खारिज की
सुप्रीम कोर्ट ने आज कश्मीरी अलगाववादी नेता शब्बीर अहमद शाह की वह याचिका खारिज कर दी, जिसमें उन्होंने अपने खिलाफ पारित नज़रबंदी आदेशों की प्रतियां उपलब्ध कराने का निर्देश देने की मांग की थी। अदालत ने कहा कि इसके लिए वे जम्मू-कश्मीर सरकार से संपर्क कर सकते हैं।
जस्टिस विक्रांत नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ ने यह अनुरोध अस्वीकार किया। शाह की ओर से सीनियर एडवोकेट कॉलिन गोंसाल्वेस पेश हुए, जबकि केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और एडिसनल सॉलिसिटर जनरल के.एम. नटराज उपस्थित थे।
यह मामला शाह की आतंकी फंडिंग मामले में जमानत याचिका से संबंधित था। सुनवाई के दौरान, सॉलिसिटर जनरल ने शाह के जवाबी हलफनामे (rejoinder) में आए कुछ नए तथ्यों पर जवाब देने के लिए समय मांगा, जिस पर अदालत ने सुनवाई स्थगित कर दी।
सुनवाई के दौरान एडवोकेट गोंसाल्वेस ने कहा कि शाह या उनके परिवार को अब तक उनके खिलाफ पारित नज़रबंदी आदेशों की कोई प्रति या अदालत के आदेश उपलब्ध नहीं कराए गए हैं। उन्होंने अनुरोध किया कि 1970 से अब तक (लगभग 69 आदेश) जारी हुए सभी आदेशों की प्रतियां उन्हें दी जाएं।
इस पर एसजी तुषार मेहता ने आपत्ति जताई और कहा,
“पिछली कई सरकारों ने शाह को पाकिस्तान से संबंध आदि के कारण अलग-अलग समय पर हिरासत में लिया था। एनआईए के पास 55 साल पुराने ये आदेश नहीं हैं।”
गोंसाल्वेस ने जवाब दिया कि “ऐसे कई आदेशों की एक लंबी श्रृंखला है।”
जस्टिस नाथ ने पूछा,
“क्या आपने पहले कभी सरकार से इन आदेशों की प्रतियां मांगी थीं, या पहली बार हमारे सामने यह मांग रखी है?”
गोंसाल्वेस ने कहा कि ऐसा अनुरोध उन्होंने हाईकोर्ट में भी किया था।
इस पर जस्टिस मेहता ने टिप्पणी की,
“आपको सरकार से मांग करनी चाहिए थी, न कि जमानत कार्यवाही में। सरकार से जाकर यह जानकारी मांगें।”
जब गोंसाल्वेस ने कहा कि वे केवल 1970 के बाद के आदेश मांग रहे हैं, तो न्यायमूर्ति मेहता ने पूछा,
“1970 के बाद से अब तक आपने सरकार से यह मांग कब की?”
इसके बाद गोंसाल्वेस ने अपनी मांग को सीमित करते हुए कहा कि पिछले 10 वर्षों के आदेश ही दिए जाएं। उन्होंने कहा कि ये आदेश इसलिए ज़रूरी हैं क्योंकि शाह को 39 वर्षों तक हिरासत में रखा गया, जबकि एनआईए ने पिछली सुनवाई में कहा था कि वे केवल 81 दिन हिरासत में रहे।
उन्होंने कहा,
“जो भी आदेश आपके पास हैं, कृपया मुझे दें।”
इस पर एसजी मेहता ने जवाब दिया,
“मैं NIA हूं, मैंने कोई नज़रबंदी आदेश जारी नहीं किया।”
जब यह स्पष्ट हुआ कि इस मामले में राज्य सरकार ही उपयुक्त पक्ष है, तो गोंसाल्वेस ने जम्मू-कश्मीर सरकार को पक्षकार बनाने की अनुमति मांगी। लेकिन अदालत ने यह अनुरोध अस्वीकार करते हुए कहा,
“मामले का दायरा मत बढ़ाइए।”
इससे पहले हुई एक सुनवाई में, सॉलिसिटर जनरल मेहता ने शाह के खिलाफ यह आपत्ति जताई थी कि उन्होंने अदालत में “Indian State and Jammu and Kashmir” जैसे शब्दों का प्रयोग किया, जबकि उन्हें “India” कहना चाहिए था। उन्होंने शाह के 1990 के दशक के भाषणों का हवाला देते हुए कहा था कि
“कोई भी व्यक्ति 'Indian State and Jammu and Kashmir' नहीं कह सकता।”