सुप्रीम कोर्ट ने पत्नी को 2.60 करोड़ रुपए का मेंटेनेंस एरियर न देने पर एक व्यक्ति को 3 महीने की सिविल कारावास की सजा सुनाई

Update: 2021-03-29 08:45 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने एक व्यक्ति को अदालत की अवमानना के मामले में तीन महीने की सिविल कारावास की सजा सुनाई है क्योंकि उसने अपनी पत्नी को 1.75 लाख रुपये के मासिक भरण-पोषण के साथ-साथ 2.60 करोड़ रुपये के बकाया भरण-पोषण भत्ते का भुगतान भी नहीं किया।

मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे और जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस वी रामासुब्रमण्यम की एक बेंच ने हालिया आदेश में कहा कि,

''हमने पहले ही (प्रतिवादी) काफी लंबा समय दे चुके हैं। प्रतिवादी (पति) ने दिए गए अवसरों का उपयोग नहीं किया है। इसलिए, हम इस अदालत की अवमानना के लिए प्रतिवादी को दंडित करते हैं और उसे तीन महीने के सिविल कारावास की सजा देते हैं।''

शीर्ष अदालत ने उल्लेख किया कि पति ने अदालत के 19 फरवरी के आदेश का अनुपालन नहीं किया है। उस आदेश के तहत कोर्ट ने उसे एक आखिरी मौका दिया था ताकि वह भरण-पोषण भत्ते की सारी बकाया राशि का भुगतान कर सके और कोर्ट द्वारा पूर्व में तय किए गए मासिक भरण-पोषण का भुगतान भी शुरू कर दे।

19 फरवरी को, शीर्ष अदालत ने कहा था कि एक पति अपनी पत्नी को भरण-पोषण देने की जिम्मेदारी को त्याग नहीं सकता है और उसने पति को एक अंतिम अवसर दिया था,जिसमें वह असफल रहा।

दूरसंचार क्षेत्र में राष्ट्रीय सुरक्षा की एक परियोजना पर काम करने का दावा करने वाले व्यक्ति ने कहा था कि उसके पास पैसे नहीं हैं और उसने पूरी राशि का भुगतान करने के लिए दो साल का समय मांगा था।

शीर्ष अदालत ने कहा कि प्रतिवादी/शख्स ने अदालत के आदेश का पालन करने में बार-बार विफल होकर अपनी विश्वसनीयता खो दी है और आश्चर्य की बात है कि इस तरह के मामले से संबंधित व्यक्ति कैसे राष्ट्रीय सुरक्षा की परियोजना से जुड़ा है।

कोर्ट ने तमिलनाडु के निवासी इस व्यक्ति से कहा कि, ''पति अपनी पत्नी को भरण-पोषण/ रखरखाव प्रदान करने की अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकता है और यह उसका कर्तव्य है कि वह अपनी पत्नी को भरण-पोषण का भुगतान करे।''

कोर्ट ने उल्लेख किया कि इस व्यक्ति को ट्रायल कोर्ट द्वारा निर्देशित किया गया था और अपीलीय अदालत व हाईकोर्ट ने भी उसे उसकी पत्नी को दो हेड के तहत पैसा देने का निर्देश दिया था। जिसमें 1.75 लाख रुपये का मासिक भरण-पोषण शामिल है और दूसरा वर्ष 2009 से भरण-पोषण का बकाया शामिल है,जिसकी राशि लगभग 2.60 करोड़ रुपये है।

शीर्ष अदालत ने उसके वकील से कहा कि प्रतिवादी पति ने अदालतों के एक भी आदेश का अनुपालन नहीं किया है और यदि वह दो-तीन सप्ताह के भीतर भुगतान नहीं करता है, तो उसे जेल भेज दिया जाएगा।

पत्नी ने वर्ष 2009 में चेन्नई में मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट अदालत के समक्ष घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम के तहत मामला दायर किया था।

अदालत ने पत्नी को तब तक घर में रहने की अनुमति दी थी जब तक कि पति उसके स्थायी निवास के लिए कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं कर देता है। कोर्ट ने पति को निर्देश दिया था कि वह अपनी पत्नी को भरण-पोषण के रूप में 2 करोड़ रुपये और विभिन्न हेड के तहत 3 करोड़ रुपये मुआवजे के तौर पर दे।

इस आदेश के खिलाफ पति द्वारा दायर अपील पर सत्र अदालत ने पत्नी को मुआवजा देने के निर्देश को रद्द कर दिया था और भरण-पोषण की राशि को भी कम कर दिया था। अपीलीय अदालत ने उसे याचिका दायर करने की तारीख यानी छह जनवरी 2009 से भरण-पोषण के रूप में प्रति माह 1 लाख रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया था और उक्त तिथि से ही आवासीय निवास के लिए 75,000 रुपये प्रति माह देने के लिए भी कहा था।

हाईकोर्ट ने 2 दिसंबर, 2016 को सत्र न्यायालय के आदेश को बरकरार रखा, जिसके बाद पति ने शीर्ष अदालत में अपील दायर की, जिसे शीर्ष अदालत ने 26 अक्टूबर, 2017 को खारिज करते हुए निर्देश दिया था कि वह छह महीने के भीतर वह भरण-पोषण और बकाया राशि को भुगतान कर दे।

तत्पश्चात पत्नी द्वारा 2018 में एक रिव्यू याचिका दायर की गई और पति को हर महीने के 10 वें दिन तक 1.75 लाख रुपये के भरण-पोषण का बकाया चुकाने का निर्देश दिया गया था।

(PTI इनपुट के साथ)

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