अयोध्या फैसले के परिशिष्ट के खिलाफ याचिका का निपटारा करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा, यह अदालत धर्मों की समानता का सम्मान करती है
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को अयोध्या के फैसले [एलआर के माध्यम से एम सिद्दीक (मृत) बनाम महंत सुरेश दास और अन्य] में पांच-न्यायाधीशों की खंडपीठ के फैसले के परिशिष्ट में निहित कुछ टिप्पणियों पर अपनी राय व्यक्त की।
सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस हेमा कोहली की खंडपीठ के समक्ष सूचीबद्ध याचिका उक्त निर्णय में कुछ टिप्पणियों को हटाने की मांग करते हुए दायर की गई थी। याचिकाकर्ता ने अयोध्या में राम मंदिर में गुरु नानक के आने के संबंध में एक बचाव पक्ष के गवाह के बयान के बारे में परिशिष्ट फैसले में कुछ संदर्भों पर आपत्ति जताई थी।
सीजेआई ने संकेत दिया कि संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत दायर याचिका सुनवाई योग्य नहीं है। उन्होंने वकील को सूचित किया कि परिशिष्ट और निर्णय (addendum and the judgment) में टिप्पणियों का प्रभाव समान नहीं है। आगे यह भी बताया गया कि परिशिष्ट पर न्यायाधीशों के हस्ताक्षर नहीं हैं। हालांकि, याचिकाकर्ता की संतुष्टि के लिए बेंच ने आदेश में निम्नलिखित स्पष्टीकरण दर्ज किया।
" कानूनी स्थिति निर्धारित करने के बाद हम इन कार्यवाही को इस अवलोकन के साथ बंद करते हैं कि शायद याचिकाकर्ता का दृष्टिकोण निर्णय के गलत मूल्यांकन पर आधारित है। निर्णय को याचिकाकर्ता के विश्वास को दर्शाते हुए किसी भी अवलोकन को शामिल करने के लिए नहीं माना जा सकता। यह अदालत धर्मों की समानता का सम्मान करती है जो संविधान के अनुच्छेद 25 में सन्निहित एक मौलिक संवैधानिक सिद्धांत है।"
बेंच ने आगे कहा,
" याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील ने कहा कि इन टिप्पणियों के साथ याचिका को बंद किया जा सकता है क्योंकि शिकायत का विधिवत समाधान हो गया है।"
[केस टाइटल : मंजीत सिंह रंधावा बनाम भारत संघ WP(C) नंबर 42/2020]
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