सुप्रीम कोर्ट ने कहा, डीएसपीई एक्ट की धारा 6ए को रद्द करने वाले 2014 के फैसले का पूर्वव्यापी प्रभाव

Update: 2023-09-11 06:30 GMT

सुप्रीम कोर्ट की एक संविधान पीठ ने सोमवार को घोषणा की कि उनका 2014 का एक फैसला, जिसके तहत दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम 1946 की धारा 6ए को असंवैधानिक घोषित किया गया था, पूर्वव्यापी रूप से प्रभावी होगा। इसका मतलब यह है कि धारा 6ए को, उस तारीख से लागू नहीं माना जाएगा, जिस तारीख को इसे शामिल किया गया था।

डीपीएसई अधिनियम की धारा 6ए में तय किया गया है कि सीबीआई को संयुक्त सचिव और उससे ऊपर के स्तर के अधिकारी के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों की जांच करने के लिए पूर्व अनुमति लेनी चाहिए। सुब्रमण्यम स्वामी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया मामले में 2014 के फैसले में इस प्रावधान को असंवैधानिक करार दिया गया था।

जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस एएस ओका, जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस जेके माहेश्वरी की मौजूदा संविधान पीठ के समक्ष मुद्दा 2014 के फैसले के पूर्वव्यापी प्रभाव के बारे में था।

जस्टिस विक्रम नाथ, जिन्होंने पीठ की ओर से मौखिक रूप से फैसला सुनाया, ने निष्कर्षों में कहा-

1. डीएसपीई एक्‍ट की धारा 6ए केवल प्रक्रिया का हिस्सा है और किसी नए अपराध का गठन नही करती है।

2. धारा 6ए की वैधता पर संविधान का अनुच्छेद 20(1) लागू नहीं होता है।

3. संविधान पीठ की ओर से की गई घोषणा पूर्वव्यापी प्रभाव से लागू होगी। धारा 6ए को इसे शामिल करने की तारीख, यानी 11 सितंबर, 2003 से लागू नहीं माना जाएगा।

उल्लेखनीय है कि अदालत ने पिछले साल नवंबर में इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर दलीलें सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।

मुद्दा यह था कि क्या दिल्ली पुलिस विशेष स्थापना अधिनियम, 1946 की धारा 6ए(1) को रद्द करने वाला 2014 का फैसला, जिसमें कुछ सरकारी अधिकारियों से जुड़ी जांच के लिए केंद्र सरकार की मंजूरी अनिवार्य थी, लंबित मामलों पर पूर्वव्यापी रूप से लागू होगा।

पिछले साल की सुनवाई के दरमियान दिल्ली पुलिस विशेष स्थापना अधिनियम, 1946 की धारा 6ए(1) की रूपरेखा पर विस्तार से चर्चा की गई, विशेष रूप से भारतीय संविधान के अनुच्छेद 20 के तहत सुरक्षित सुरक्षा के संदर्भ में।

यह धारा राज्य को किसी व्यक्ति को ऐसे कार्य के लिए दंडित करने से रोकती है, जो उसके किए जाने के समय अपराध नहीं है या अपराध होने पर कानून में प्रदान की गई सजा से अधिक बड़ी सजा देने से रोकती है।

उस समय सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट के पिछले फैसले का हवाला देते हुए तर्क दिया था कि अनुच्छेद 20 प्रक्रियात्मक प्रावधानों पर लागू नहीं होता है। वहीं सीनियर एडवोकेट अरविंद दातार ने तर्क दिया कि धारा 6ए के तहत न केवल दोषसिद्धि बल्‍कि जांच से भी छूट मिलनी चाहिए और ऐसे प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपाय अनुच्छेद 20(1) का हिस्सा बनते हैं।

सीबीआई की ओर से पेश एडिशनल सॉलिसिटर-जनरल एसवी राजू ने इस धारणा के संभावित परिणामों पर बात की कि धारा 6ए संभावित रूप से लागू होगी, न कि पूर्वव्यापी रूप से।

केस टाइटलः सीबीआई बनाम डॉ आरआर किशोर | आपराधिक अपील संख्या 377/2007 और अन्य संबंधित मामले

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