BREAKING| आवारा कुत्तों को हटाने के निर्देशों पर रोक लगाने की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा

Update: 2025-08-14 06:29 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में आवारा कुत्तों को आश्रय गृहों में भेजने के लिए 11 अगस्त को दो जजों की खंडपीठ द्वारा पारित निर्देशों पर रोक लगाने की याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित रख लिया।

जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस संदीप मेहता और जस्टिस एनवी अंजारिया की तीन जजों की बेंच ने मामले की सुनवाई की।

बता दें, बुधवार को एक नाटकीय घटनाक्रम में आवारा कुत्तों से संबंधित स्वतः संज्ञान मामला, जिसमें 11 अगस्त को जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की खंडपीठ ने निर्देश पारित किए थे, इस तीन जजों की बेंच को ट्रांसफर कर दिया गया, जब कुछ वकीलों ने चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) के समक्ष उल्लेख किया कि ये निर्देश अन्य बेंचों द्वारा पारित पिछले आदेशों के विपरीत हैं।

दिल्ली सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने यह कहते हुए शुरुआत की कि "एक मुखर अल्पसंख्यक और एक मौन पीड़ित बहुमत है।"

एसजी ने कहा,

"मैंने लोगों को मांस खाते हुए वीडियो पोस्ट करते और फिर खुद को पशु प्रेमी बताते देखा है।"

उन्होंने आगे कहा कि कुत्तों के काटने से रेबीज़ के कारण बच्चों की मौत के कई मामले सामने आए हैं।

एसजी ने कहा,

"नसबंदी से रेबीज़ नहीं रुकता। अगर कुत्तों का टीकाकरण भी हो जाए तो भी वे बच्चों को घायल करने से नहीं रुकेंगे।"

उन्होंने इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया कि हर साल 37 लाख कुत्तों के काटने की घटनाएं होती हैं, यानी औसतन हर दिन लगभग 10,000 कुत्ते काटते हैं। उन्होंने कहा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के आँकड़ों के अनुसार, हर साल लगभग 20,000 रेबीज़ से मौतें होती हैं।

एसजी ने कहा,

"सिर्फ़ चार या पांच प्रजाति के सांप ही ज़हरीले होते हैं। लेकिन हम उन्हें घरों में नहीं रखते। कोई यह नहीं कह रहा कि कुत्तों को मार दो। उन्हें अलग रखना ज़रूरी है। बच्चे बाहर खेल नहीं पा रहे हैं और न ही स्कूल जा पा रहे हैं।"

सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने सॉलिसिटर जनरल का विरोध करते हुए कहा,

"यह पहली बार है जब मैंने सॉलिसिटर जनरल को यह कहते सुना है कि उस कानून को मत देखिए जो इस मामले में है। एबीसी नियम हैं। एक संसदीय कानून है। उसका पालन करना होगा। आप इसका पालन कैसे करते हैं? किसे पालन करना है? नगर निगम, वे वर्षों से क्या कर रहे हैं? क्या उन्होंने आश्रय गृह बनाए हैं? चूंकि उन्होंने नसबंदी नहीं की है, इसलिए कुत्तों की संख्या बढ़ गई। चूंकि उनका कोई मालिक नहीं है, इसलिए समुदाय उनकी देखभाल कर रहा है। आश्रय गृह कहां हैं? बाड़े कहां हैं? उन्हें मार दिया जाएगा।"

सिब्बल ने बेंच से अनुरोध किया कि वह 11 अगस्त को दो जजों की खंडपीठ द्वारा पारित उस आदेश पर रोक लगाए, जिसमें आवारा कुत्तों को Delhi-NCR से हटाकर शेल्टर होम्स में स्थानांतरित करने का आदेश दिया गया था। उन्होंने विशेष रूप से 11 अगस्त के आदेश के निर्देश 1, 3, 4 और 5 पर रोक लगाने की मांग की, जिसमें अधिकारियों को कुत्तों को उठाना शुरू करने का आदेश दिया गया था।

सिब्बल ने कहा,

"ऐसी स्थितियां रही हैं, जहां आश्रय स्थलों में पर्याप्त जगह नहीं होती और कुत्ते एक साथ रहते हैं और एक-दूसरे पर हमला करते हैं, जिससे महामारी फैलती है। इसका असर इंसानों पर भी पड़ेगा।"

प्रोजेक्ट काइंडनेस नामक संगठन का प्रतिनिधित्व कर रहे सिब्बल ने कहा,

"अगर वे नसबंदी नहीं करते, टीकाकरण नहीं करते तो कुत्तों की संख्या बढ़ जाएगी।"

उन्होंने उन कुत्तों को रिहा करने का निर्देश देने की भी मांग की, जिन्हें पहले ही उठा लिया गया।

जस्टिस विक्रम नाथ ने पूछा कि क्या अधिकारियों ने कुत्तों को उठाना शुरू कर दिया, जबकि 11 अगस्त का आदेश कल ही अपलोड किया गया था। सिब्बल ने हां में जवाब दिया।

सीनियर एडवोकेट डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी ने दलील दी कि स्वतः संज्ञान आदेश में सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित पूर्व आदेशों की अनदेखी की गई, जिसमें कुत्तों को सामूहिक रूप से उठाने को अस्वीकार किया गया और कहा गया कि एबीसी नियमों का सख्ती से पालन किया जाना चाहिए। सिंघवी ने कहा कि दो जजों की खंडपीठ ने कम से कम 6 पूर्व आदेशों की अनदेखी की है।

सीनियर एडवोकेट सिद्धार्थ दवे ने दलील दी कि 11 अगस्त का आदेश केवल सॉलिसिटर जनरल और एमिक्स क्यूरी के बयानों के आधार पर और पशु अधिकार कार्यकर्ताओं का पक्ष सुने बिना पारित किया गया। सीनियर एडवोकेट अमन लेखी ने दलील दी कि निर्देश केवल काल्पनिक रिपोर्टों और अप्रमाणित वीडियो पर आधारित थे।

सीनियर एडवोकेट कॉलिन गोंसाल्वेस ने कहा कि कुत्तों की नसबंदी और उचित भोजन से उनकी आबादी कम हो जाएगी। सीनियर एडवोकेट कृष्णन वेणुगोपाल ने कहा कि Delhi-NCR में लगभग 10 लाख कुत्ते हैं और आश्रय गृहों में केवल लगभग एक हज़ार कुत्ते ही रह सकते हैं।

इस पर जस्टिस संदीप मेहता ने हस्तक्षेप करते हुए कहा कि ये सभी बयान "किस्से-कहानियाँ" हैं।

जस्टिस मेहता ने पूछा,

"सबूत कहां हैं?"

सीनियर एडवोकेट सिद्धार्थ लूथरा ने बताया कि दिल्ली सरकार ने संबंधित मामले में एक हलफनामा दायर किया, जिसमें कहा गया कि वे एबीसी नियमों का पालन करने के लिए तैयार हैं।

खंडपीठ ने MCD का प्रतिनिधित्व कर रही एडिशनल सॉलिसिटर जनरल अर्चना पाठक दवे से उनका पक्ष जानना चाहा।

जस्टिस विक्रम नाथ ने कहा,

"आपका क्या कहना है? यह नगर निगम की निष्क्रियता के कारण हो रहा है। सरकार कुछ नहीं करती। स्थानीय अधिकारी कुछ नहीं करते।"

सुनवाई समाप्त करने से पहले जस्टिस नाथ ने कहा,

"स्थानीय अधिकारी वह नहीं कर रहे हैं, जो उन्हें करना चाहिए। उन्हें जिम्मेदारी लेनी चाहिए। जो भी यहां हस्तक्षेप याचिका दायर करने आया है, उसे जिम्मेदारी लेनी चाहिए।"

Case Details: IN RE : 'CITY HOUNDED BY STRAYS, KIDS PAY PRICE'|SMW(C) No. 5/2025

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