सुप्रीम कोर्ट ने सावरकर के नाम के अनुचित उपयोग को रोकने की याचिका खारिज की
सुप्रीम कोर्ट ने वी.डी. सावरकर का नाम प्रतीक और नाम (अनुचित उपयोग की रोकथाम) अधिनियम, 1956 की अनुसूची में शामिल करने की मांग वाली याचिका खारिज की।
याचिकाकर्ता पंकज फडनीस व्यक्तिगत रूप से उपस्थित हुए थे। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि विपक्ष के नेता राहुल गांधी सावरकर के खिलाफ टिप्पणी करके मौलिक कर्तव्यों का उल्लंघन कर रहे हैं।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की खंडपीठ ने रिट याचिका खारिज करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता के किसी भी मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं हुआ है।
जैसे ही मामला लिया गया, याचिकाकर्ता ने कहा कि वह वर्षों से सावरकर पर शोध कर रहा है और "कानूनी रूप से सत्यापन योग्य तरीके से श्री सावरकर के बारे में कुछ तथ्य स्थापित करना चाहता है।"
सीजेआई गवई ने उनसे पूछा,
"आपके मौलिक अधिकार का उल्लंघन क्या है?"
याचिकाकर्ता ने जवाब दिया कि विपक्ष के नेता मौलिक कर्तव्यों का उल्लंघन नहीं कर सकते।
आगे कहा गया,
"अनुच्छेद 51ए, मौलिक कर्तव्य। विपक्ष के नेता...विपक्ष के नेता मेरे मौलिक कर्तव्यों में बाधा नहीं डाल सकते।"
सीजेआई ने जवाब दिया कि अनुच्छेद 32 की याचिका केवल मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के लिए ही स्वीकार की जा सकती है।
खंडपीठ ने कहा कि यदि याचिकाकर्ता सावरकर के बारे में कुछ पाठ्यक्रम में शामिल करना चाहता है तो उसे भारत संघ को एक अभ्यावेदन देना होगा। याचिकाकर्ता ने जवाब दिया कि वह पहले ही ऐसा अभ्यावेदन दे चुका है।
अंततः, खंडपीठ ने यह देखते हुए याचिका खारिज की कि संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत याचिका में मांगी गई राहत नहीं दी जा सकती।
प्रतीक और नाम (अनुचित उपयोग की रोकथाम) अधिनियम, 1956 की अनुसूची में शामिल नाम का उपयोग केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित शर्तों के विपरीत तरीके से नहीं किया जा सकता।
जस्टिस दीपांकर दत्ता की अगुवाई वाली खंडपीठ ने सावरकर के खिलाफ राहुल गांधी द्वारा की गई टिप्पणियों पर आपत्ति जताई थी।
Case : PANKAJ KUMUDCHANDRA PHADNIS vs LEADER OF OPPOSITION IN THE LOK SABHA & Ors. W.P.(C) No. 552/2025