सुप्रीम कोर्ट का अधिवक्ता महमूद प्राचा के खिलाफ CAT के अवमानना आदेश पर रोक लगाने से इनकार, माफी मांगने पर विचार करने को कहा

Update: 2021-08-19 10:55 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने अधिवक्ता महमूद प्राचा से केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण ("CAT") के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका में बिना शर्त माफी मांगने पर विचार करने को कहा। कैट के आदेश में प्राचा को अवमानना ​​का दोषी ठहराया गया था, जिसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है।

न्यायमूर्ति केएम जोसेफ और न्यायमूर्ति एसआर भट की खंडपीठ ने कैट के आदेश पर रोक लगाने से इनकार करते हुए कहा,

''जो कुछ हुआ, एक शर्त जिस पर हम चाहते हैं कि आप विचार करें, वह यह है कि कृपया बिना शर्त माफी मांगें। पूरी बात रफा दफा हो जाएगी, हम सभी गलतियां करते हैं। विचार यह है कि हम जल्द से जल्द सुधार करें।"

बेंच के पीठासीन न्यायाधीश केएम जोसेफ ने कहा,

हम '12 वीं शताब्दी के इंग्लैंड के राजा की तरह नहीं हैं। यह वह विचार नहीं है, जो आप देखते हैं। किसी बिंदु पर आप माफी मांग सकते हैं। हम आज करने के लिए नहीं कह रहे, आप बिना शर्त माफीनामा लिख सकते हैं। हम गुण के आधार पर कुछ नहीं कह रहे हैं। यही कारण है कि हम चाहते हैं कि आप इसके बारे में सोचें।"

अदालत के इस सवाल पर कि अधिवक्ता महमूद प्राचा इसके बारे में क्या सोचते हैं, वकील ने कहा कि वह केवल अदालत के सम्मान का बचाव कर रहे थे और उनसे कुछ ऐसा कहा गया था जिसे खुली अदालत में नहीं कहा जाना चाहिए।

न्यायमूर्ति जोसेफ ने शीर्ष अदालत द्वारा दिए गए सुझाव के बारे में सोचने के लिए अधिवक्ता प्राचा को समय देते हुए कहा,

"आप इसे शीर्ष न्यायालय के समक्ष ला सकते थे। दो गलत मिलकर एक सही नहीं बना सकते। हम केवल आपको ऐसा करने के लिए कह रहे हैं। अगर आपने हमारे सुझाव को स्वीकार नहीं किया तो आज हम आपको नहीं सुनेंगे। हम किसी और दिन बुलाएंगे। शायद एक महीने के बाद या किसी और दिन।"

शीर्ष अदालत ने 6 अगस्त 2021 को अपील और स्टे अर्जी में नोटिस जारी किया था। श्री विक्रमजीत बनर्जी, अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल, जो ट्रिब्यूनल के समक्ष पेश हुए थे, उन्हें प्रति देने के भी निर्देश जारी किए गए थे।

कैट की प्रधान पीठ ने एक मामले में स्वत: संज्ञान लिया था, जहां वरिष्ठ वकील एम्स, दिल्ली में प्रतिनियुक्ति पर उत्तराखंड कैडर के एक भारतीय वन सेवा अधिकारी संजीव कुमार चतुर्वेदी के मामले में बहस कर रहे थे, जिन्होंने अपनी वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट ("एसीआर") रिकॉर्डिंग के संबंध में आवेदन दायर किए थे।

अधिवक्ता प्राचा की ओर से अनियंत्रित और अवमाननापूर्ण व्यवहार के उदाहरणों का हवाला देते हुए ट्रिब्यूनल ने उन्हें अदालत की अवमानना ​​अधिनियम, 1971 की धारा 14 के तहत अदालत की अवमानना ​​​​का दोषी ठहराया था।

आदेश कहा,

"इस मामले में हुए विभिन्न घटनाक्रमों से पता चलता है कि आवेदक और उसके वकील के व्यक्तित्व को जोड़ने का प्रयास अधिक था और उस उद्देश्य के लिए, ट्रिब्यूनल एक आसान लक्ष्य बनाया गया।"

केस टाइटल: महमूद प्राचा बनाम सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल

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