सुप्रीम कोर्ट ने 2015 जिंदल यूनिवर्सिटी गैंगरेप मामले में दो दोषियों को जमानत देने से इनकार किया
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को 2015 के ओपी जिंदल यूनिवर्सिटी बलात्कार मामले में दो दोषियों को जमानत देने से इनकार कर दिया। पिछली बार सुप्रीम कोर्ट ने दो प्रावधानों- आईपीसी की धारा 376 (डी) आईपीसी (सामूहिक-बलात्कार) और धारा 376 (2) (एन) (एक ही महिला के साथ बार-बार बलात्कार) के तहत दोषसिद्धि के खिलाफ दायर याचिका पर सीमित नोटिस जारी किया था।
जस्टिस एसके कौल और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की खंडपीठ के समक्ष सीनियर एडवोकेट मुकुल रोहतगी ने दोषियों में से एक की ओर से आग्रह किया कि बलात्कार के लिएसजा और दोषसिद्धी को दी गई चुनौती को कवर करने के लिए सीमित नोटिस को बढ़ाया जाए।
उन्होंने खंडपीठ से अपने मुवक्किल को जमानत देने पर विचार करने का अनुरोध किया। अन्य आरोपियों की ओर से पेश हुए सीनियर एडवोकेट सिद्धार्थ लूथरा ने भी बेंच से जमानत याचिका पर विचार करने का अनुरोध किया।
दोनों की दलीलें सुनने के बाद जस्टिस कौल ने कहा, "हम न तो नोटिस का विस्तार कर रहे हैं और न ही जमानत दे रहे हैं।"
शुरुआत में रोहतगी ने मामले में जारी किए गए नोटिस के संदर्भ में खंडपीठ को अवगत कराया था। उन्होंने मुद्दे को 'गैंगरेप का मामला है या फिर बार-बार मारपीट का' के रूप में सामने रखा।
उन्होंने कहा कि घटना लगभग 8 साल पहले हुई थी जब वे कॉलेज में थे और सामूहिक बलात्कार के आरोपों को साबित करने के लिए कोई सामग्री नहीं है। रोहतगी ने कहा कि मामले में तीसरे आरोपी को पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने बरी कर दिया था।
उसी के मद्देनजर उन्होंने यह प्रस्तुत किया,
"यह जमानत के लिए एक मामला होगा”।
जस्टिस कौल ने पूछा, ''बलात्कार की सजा कितनी है?''
रोहतगी ने जवाब दिया कि बलात्कार के लिए न्यूनतम सजा 10 साल है।
जस्टिस कौल ने कहा, 'लेकिन, उन्होंने 10 साल पूरे नहीं किए हैं।'
रोहतगी ने प्रस्तुत किया कि उनका तर्क जमानत देने के उद्देश्य के संबंध में है क्योंकि अभियुक्त आधी सजा काट चुका है।
जस्टिस कौल ने कहा कि वर्तमान कार्यवाही में, न्यायालय केवल इस बात पर विचार कर रहा है कि अभियुक्त उच्च अपराध के दोषी हैं या नहीं। बलात्कार के आरोप और सजा निर्विवाद होने के कारण उन्हें जमानत देने पर विचार करने से पहले न्यूनतम 10 साल की सजा काटनी चाहिए।
कोर्ट ने कहा,
जब हम नोटिस जारी करते हैं तो यह मानकर चलते हैं कि वे रेप के दोषी हैं, इसलिए उन्हें 10 साल की सजा मिलेगी। वह 10 साल पूरे नहीं हुए हैं। 10 साल पूरे होने पर ही (जमानत का) सवाल आएगा। वह 10 साल आपको सजा काटनी होगी क्योंकि उस अपराध (बलात्कार) के बारे में कोई संदेह नहीं है। आप पर आरोप लगाया गया है और उस अपराध के संबंध में सिद्ध किया गया है। आप एक उच्च अपराध के दोषी हैं या नहीं, यह हमारे सामने प्रश्न है। यह स्थिति होने के नाते आपको निर्विवाद आरोप की सजा काटनी होगी।"
लूथरा ने प्रस्तुत किया कि उनके मुवक्किल उसी स्तर पर थे जैसा वह अभियुक्त था, जिसे हाईकोर्ट ने बरी कर दिया था।
जस्टिस कौल ने दोहराया, “न्यूनतम सजा 10 साल है। अधिकतम सजा भी नहीं। इससे पहले कि आपके साथ कुछ किया जा सके, आपको उसे पूरा करना होगा।”
खंडपीठ ने सीमित मुद्दे पर छुट्टी दे दी है और मामले को 13 सितंबर, 2023 से शुरू होने वाले सप्ताह में नियमित बोर्ड में सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया है।
यह घटना 2015 में सामने आई थी, जब पीड़िता ने शिकायत की कि उसके बैचमेट हार्दिक सीकरी ने उसे उसकी निजी तस्वीरें साझा करने की धमकी देकर ब्लैकमेल किया और उसे उसके और उसके दो दोस्तों विकास गर्ग और करण छाबड़ा के साथ यौन संबंध बनाने के लिए मजबूर किया।
मई 2017 में, अभियुक्तों को निचली अदालत ने दोषी ठहराया था। धारा 376डी, 376(2)(एन), 120बी, 292, 506, और भारतीय दंड संहिता की धारा 34 और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 67ए के तहत सीकरी और छाबड़ा को 20 साल जेल की सजा सुनाई गई थी और गर्ग को सात साल की सजा सुनाई गई थी।
2022 में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने सीकरी और छाबड़ा पर लगाई गई सजा को बरकरार रखा, लेकिन गर्ग को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया।
2017 में हाईकोर्ट के मामले में सजा को निलंबित करने के आदेश ने पीड़िता के आचरण के खिलाफ की गई प्रतिकूल टिप्पणियों के मद्देनजर विवाद पैदा कर दिया था। बाद में हाईकोर्ट के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी थी।
[केस टाइटल: करण बनाम हरियाणा राज्य एसएलपी (सीआरएल) नंबर 12801/2022 और हार्दिक बनाम हरियाणा राज्य एसएलपी (सीआरएल) नंबर 48/2023]