सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण बंद करने पर अपना विचार व्यक्त करने से किया इनकार; अपर्याप्त प्रतिनिधित्व के डेटा की आवधिक समीक्षा की इच्छा जताई

Update: 2022-01-29 05:34 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने सार्वजनिक रोजगार में आरक्षण (reservation in public employment) को समाप्त करने पर कोई विचार व्यक्त करने से इनकार करते हुए कहा कि प्रतिनिधित्व की अपर्याप्तता को स्थापित करने के लिए एकत्र किए गए डेटा, जो प्रमोशन के लिए आरक्षण प्रदान करने का आधार बनते हैं, की समय-समय पर समीक्षा की जानी चाहिए।

न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति बीआर गवई की पीठ वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन की इस दलील पर विचार कर रही थी कि सार्वजनिक रोजगार में आरक्षण को समाप्त करने का समय आ गया है।

वरिष्ठ वकील ने प्रस्तुत किया,

"एससी और एसटी के सदस्यों के लिए आरक्षण का हिस्सा इन श्रेणियों के कुछ चुनिंदा लोगों के लाभ के लिए अर्जित हुआ है।"

उन्होंने प्रस्तुत किया कि यह मूल्यांकन करने के लिए एक समीक्षा होनी चाहिए कि क्या इन श्रेणियों के भीतर कुछ समूहों/वर्गों ने वांछित प्रतिनिधित्व प्राप्त किया है।

पीठ ने कहा,

"हम आरक्षण को पूरी तरह से समाप्त करने पर कोई विचार व्यक्त करने के इच्छुक नहीं हैं। यह पूरी तरह से विधायिका और कार्यपालिका के अधिकार क्षेत्र में आता है।"

अदालत ने कहा कि दोनों पक्षों के वकीलों के बीच लगभग एकमत है कि प्रतिनिधित्व की अपर्याप्तता को स्थापित करने के लिए एकत्र किए गए डेटा, जो प्रमोशन के लिए आरक्षण प्रदान करने का आधार है, की समय-समय पर समीक्षा की जानी चाहिए। आरक्षित वर्ग के सदस्यों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने भारत के विद्वान अटार्नी जनरल की इस दलील का समर्थन किया था कि हर 10 साल में एक समीक्षा की जानी चाहिए।

अदालत ने कहा,

"समीक्षा के संबंध में हमारी राय है कि प्रमोशन में आरक्षण प्रदान करने के उद्देश्य से प्रतिनिधित्व की अपर्याप्तता को निर्धारित करने के लिए एकत्र किए गए डेटा की समय-समय पर समीक्षा की जानी चाहिए। समीक्षा की अवधि उचित होनी चाहिए और इसे निर्धारित करने के लिए सरकार पर छोड़ दिया जाना चाहिए।"

अदालत ने आरक्षण प्रदान करने के उद्देश्य से प्रमोशन पदों में एससी और एसटी के प्रतिनिधित्व की पर्याप्तता निर्धारित करने के लिए एक मानदंड निर्धारित करने से भी इनकार कर दिया। पीठ ने कहा कि प्रतिनिधित्व की अपर्याप्तता का निर्धारण करने के लिए मानदंड निर्धारित करने से राज्य सरकारों को दिए गए विवेक में कमी आएगी।

केस का नाम: जरनैल सिंह बनाम लच्छमी नारायण गुप्ता

केस नम्बर/तारीख: 2022 की सीए 629 | 28 जनवरी 2022

पीठ: जस्टिस एल नागेश्वर राव, जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस बीआर गवई

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