पीरियड्स लीव की मांग वाली याचिका पर सुनवाई से सुप्रीम कोर्ट का इनकार, कहा- ये पॉलिसी मैटर है
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने भारत भर में छात्रों और कामकाजी महिलाओं को पीरियड्स लीव देने की मांग वाली जनहित याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया।
ये याचिका शैलेंद्र मणि त्रिपाठी ने दायर की थी। याचिका में छात्राओं और कामकाजी महिलाओं के लिए पीरियड्स लीव दिए जाने की मांग की गई थी।
चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच ने याचिका पर सुनवाई की।
सुनवाई के दौरान, एक हस्तक्षेपकर्ता ने कहा कि मासिक धर्म की छुट्टी की अनुमति देने से नियोक्ता महिलाओं को रोजगार देने से हतोत्साहित हो सकते हैं।
इस सबमिशन पर, CJI डी वाई चंद्रचूड़ ने भी टिप्पणी की कि यह सच है कि अगर नियोक्ताओं को मासिक धर्म की छुट्टी देने के लिए मजबूर किया गया, तो यह उन्हें महिलाओं को काम पर रखने से हतोत्साहित कर सकता है।
पीठ ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के समक्ष एक प्रतिनिधित्व दायर कर सकता है।
CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने आदेश में कहा,
"ये पॉलिसी मैटर है। याचिकाकर्ता महिला एवं बाल मंत्रालय से संपर्क कर एक प्रतिवेदन दाखिल कर सकता है।"
आइए जानते हैं याचिका में क्या-क्या कहा गया था?
याचिका में सुप्रीम कोर्ट से राज्य सरकारों को महिलाओं के लिए पीरियड्स लीव के लिए नियम बनाने के लिए निर्देश जारी करने की मांग की गई थी।
इस जनहित याचिका में मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 के सेक्शन 14 को प्रभावी तौर पर लागू करने के निर्देश सरकार को देने की गुहार अदालत से लगाई गई है।
याचिका में इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट के दखल की गुहार लगाते हुए कहा गया था कि पीरियड्स लीव को लेकर विधायी इच्छाशक्ति की कमी है, क्योंकि संबंधित मामलों पर लोकसभा में दो निजी सदस्य बिल पेश किए गए थे। लेकिन दोनों बिल लैप्स हो गए हैं।
याचिका में ये भी कहा गया था कि अगर कुछ संगठनों और राज्य सरकारों को छोड़कर, सोसाइटी विधायिका और अन्य हितधारकों ने जाने-अनजाने में पीरियड्स लीव की मांग को अनदेखा किया है।
याचिका में कहा गया था कि विदेशों में पीरियड्स लीव दिए जाते हैं। UK, चीन, जापान, ताइवान, इंडोनेशिया, दक्षिण कोरिया, स्पेन और जाम्बिया पहले से ही किसी न किसी रूप में पीरियड्स लीव दे रहे हैं. लिहाजा भारत में सभी कंपनियों और संस्थानों को इसका अनुपालन सुनिश्चित करने का आदेश दिया जाए।
याचिका में ये भी कहा गया था कि कुछ भारतीय कंपनियां जैसे इविपन, जोमैटो, बायजूज, स्विगी, मातृभूमि, मैग्जटर, इंडस्ट्री, एआरसी, फ्लाईमायबिज और गुजूप पेड पीरियड लीव ऑफर करती हैं।
याचिका के मुताबिक मौजूदा दौर में बिहार ही एकमात्र राज्य है जो 1992 की नीति के तहत स्पेशल पीरियड्स लीव दिया जाता है। ऐसे में देश के अन्य राज्यों में महिलाओं को पीरियड्स लीव देने से इनकार करना संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत समानता और गरिमापूर्ण जीवन जीने के उनके मौलिक संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन है।
केस टाइटल: शैलेंद्र मणि त्रिपाठी बनाम भारत संघ और अन्य। डब्ल्यूपी(सी) संख्या 172/2023