'आप चाहते हैं कि न्यायपालिका अपनी सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाए?" सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट और एससी जजों के लिए रिटायरमेंट की समान आयु की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई करने से इनकार किया
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों के लिए सेवानिवृत्ति की एक समान उम्र की मांग वाली जनहित याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया।
भारत के मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस वी रामसुब्रमण्यम की एक पीठ ने याचिकाकर्ता को याचिका वापस लेने की अनुमति दी। पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता इस संबंध में अपना प्रतिनिधित्व केंद्र सरकार या भारत के विधि आयोग में दाखिल कर सकता है।
सीजेआई बोबडे ने याचिकाकर्ता वकील अश्विनी उपाध्याय से पूछा,
"आप न्यायपालिका को सेवानिवृत्ति की अपनी उम्र बढ़ाने के लिए कहना चाहते हैं? यह क्या है?"
अश्विनी उपाध्याय ने तर्क दिया कि हाईकोर्ट जजों और सुप्रीम कोर्ट जजों के रिटायरमेंट की अलग-अलग उम्र। हाईकोर्ट के जजों की उम्र 62 साल और सुप्रीम कोर्टे के जजों की उम्र 65 साल- तर्कहीन है, क्योंकि दोनों कोर्ट संवैधानिक कोर्ट हैं।
उन्होंने कहा,
"सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट दोनों ही रिकॉर्ड कोर्ट हैं। दोनों मौलिक अधिकारों की रक्षा करते हैं। यहां तक कि शपथ भी समान है। सेवानिवृत्ति का यह अंतर मनमाना और तर्कहीनता है।"
सीजेआई ने उपाध्याय से पूछा कि क्या उन्होंने हाईकोर्ट के न्यायाधीशों से सलाह ली है, यदि वे अधिक समय तक काम करना चाहते हैं।
उपाध्याय ने कहा कि सेवानिवृत्ति की आयु कम होने के कारण कई बेहतरीन वकील हाईकोर्ट के न्यायाधीश बनने का फैसला नहीं कर रहे है।
उन्होंने कहा,
"मेरे कई बेतरीन वकील दोस्त हैं, जो जल्दी रिटायरमेंट की वजह से हाईकोर्ट के जज नहीं बनना चाहते।"
सीजेआई ने जवाब दिया,
"अगर वे इस वजह से जज नहीं बनना चाहते तो उनकी सोच में कुछ गड़बड़ है और आप उन्हें बेहतरीन वकील कहते हैं!"
उपाध्याय ने पीठ से अनुरोध किया कि वह उस मामले के साथ अपनी याचिका को टैग करे, जिसमें सुप्रीम कोर्ट हाईकोर्ट के लिए तदर्थ (एडहॉक) न्यायाधीशों की नियुक्ति पर विचार कर रहा है।
हालांकि, पीठ इस पर सहमत नहीं हुई और उसने इसके बजाय केंद्र सरकार या भारतीय विधि आयोग से संपर्क करने को कहा।