NEET 2025: सुप्रीम कोर्ट ने मराठा आरक्षण को चुनौती देने वाली याचिका पर विचार करने से किया इनकार
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में महाराष्ट्र की सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक प्रवेशों में 10% मराठा आरक्षण कोटा को चुनौती देने वाली याचिका पर विचार करने से इनकार किया।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की खंडपीठ ने NEET UG और NEET PG 2025 परीक्षाओं की तैयारी कर रहे अभ्यर्थियों द्वारा दायर रिट याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया।
परीक्षाओं की तारीख नजदीक आने (NEET PG के लिए 15 जून, NEET UG 4 मई को आयोजित की गई) को देखते हुए कोर्ट ने हाईकोर्ट से अंतरिम राहत की संभावना पर विचार करने को कहा।
गौरतलब है कि बॉम्बे हाईकोर्ट में वर्तमान में महाराष्ट्र राज्य सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण अधिनियम, 2024 के खिलाफ याचिकाओं का एक समूह है, जो नौकरियों और शिक्षा में मराठा समुदाय को 10% आरक्षण देता है।
याचिकाकर्ताओं ने महाराष्ट्र राज्य सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण अधिनियम, 2024 को चुनौती दी और अधिनियम पर अंतरिम रोक लगाने की मांग की।
उनकी मांगों में शामिल है कि NEET UG 2025 प्रवेश को विवादित अधिनियम के दायरे से बाहर रखा जाए।
सीनियर एडवोकेट रवि के देशपांडे और एडवोकेट अश्विन देशपांडे ने याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व किया।
मराठा आरक्षण कोटा क्या है?
विवादित अधिनियम को 20 फरवरी, 2024 को विधानमंडल में पारित किया गया और जस्टिस (रिटायर) सुनील बी. शुक्रे के नेतृत्व वाले महाराष्ट्र राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग (MSBCC) की एक रिपोर्ट के आधार पर राज्य सरकार द्वारा 26 फरवरी, 2024 को अधिसूचित किया गया। रिपोर्ट में मराठा समुदाय को आरक्षण देने के औचित्य के रूप में "असाधारण परिस्थितियों और स्थितियों" का हवाला दिया गया था, जो राज्य में 50 प्रतिशत कुल आरक्षण सीमा से अधिक है।
इससे पहले एक वकील ने महाराष्ट्र राज्य सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों (SEBC) के लिए आरक्षण अधिनियम, 2018 को चुनौती देते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, जिसे 2018 में देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व वाली सरकार ने लागू किया था। इस कानून ने मराठों को सरकारी नौकरियों और शिक्षा में 16 प्रतिशत आरक्षण दिया था।
बॉम्बे हाईकोर्ट ने जून, 2019 में 2018 के कानून को बरकरार रखा, उसने 16 प्रतिशत कोटा को अनुचित माना और इसे शिक्षा में 12 प्रतिशत और सरकारी नौकरियों में 13 प्रतिशत कर दिया। पाटिल और अन्य ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।
मई, 2021 में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने SEBC Act, 2018 को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि कोई भी असाधारण परिस्थिति मराठों के लिए अलग से आरक्षण को उचित नहीं ठहराती, जो 1992 के इंद्रा साहनी (मंडल) फैसले द्वारा अनिवार्य 50 प्रतिशत की सीमा से अधिक है। सुप्रीम कोर्ट ने मराठों के सामाजिक पिछड़ेपन को स्थापित करने के लिए प्रस्तुत अनुभवजन्य आंकड़ों पर भी सवाल उठाया।
महाराष्ट्र सरकार ने पुनर्विचार याचिका दायर की, जिसे अप्रैल, 2023 में खारिज कर दिया गया। इसके बाद क्यूरेटिव याचिका दायर की गई, जो वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष लंबित है।
केस टाइटल: दिया रमेश राठी बनाम महाराष्ट्र राज्य | डायरी नंबर - 24755/2025