सुप्रीम कोर्ट ने असम-एनआरसी प्रक्रिया में अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न का आरोप लगाने वाली याचिका पर विचार करने से इनकार किया; हाईकोर्ट जाने की स्वतंत्रता दी
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने अन्य बातों के साथ-साथ कथित विदेशियों का पता लगाने और निर्वासन की आड़ में असम में धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यक समुदायों के लोगों के कथित उत्पीड़न को रोकने की मांग वाली याचिका पर विचार करने से इनकार किया। कोर्ट ने याचिकाकर्ता को अपनी शिकायतें लेकर हाईकोर्ट जाने की स्वतंत्रता दी।
इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को असम-एनआरसी से संबंधित याचिका में "स्ट्रक्चर रिलीफ" के साथ वापस आने के लिए कहा था और याचिका पर सुनवाई स्थगित कर दी थी क्योंकि वर्तमान याचिका में प्रार्थनाओं को बेतरतीब ढंग से निर्धारित किया गया है।
शुक्रवार को याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील आदिल अहमद ने जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ और जस्टिस हिमा कोहली को इस बारे में बताया और याचिका को संशोधित करने के लिए एक आवेदन दायर करने की अनुमति मांगी।
खंडपीठ ने याचिकाकर्ता को उच्च न्यायालय के समक्ष जाने के लिए कहा। कोर्ट ने कहा कि उच्च न्यायालय के फैसले की सहायता मुद्दों को तय करने में फायदेमंद होगी यदि मामला अंततः अपील में आता है।
कोर्ट ने कहा,
"आप इन सभी राहतों के साथ उच्च न्यायालय क्यों नहीं जाते हैं। हमें उच्च न्यायालय के फैसले का लाभ मिलता है और फिर आप यहां आ सकते हैं। इनमें से कई मुद्दों में सबूत का बोझ, सबूत की प्रकृति की आवश्यकता है। हाईकोर्ट से कुछ आइडिया लेते हैं।"
याचिका में अधिकारियों को 31.08.2019 को प्रकाशित एनआरसी के 'अंतिम मसौदे' से नामों को हटाने/बाहर नहीं करने का निर्देश देने की भी मांग की गई; उचित सत्यापन के बिना 'संदिग्ध' मतदाताओं की पहचान को रोकने; एनआरसी के मसौदे को अंतिम रूप देने के बाद ही उस व्यक्ति को अवसर प्रदान करें, जिसका नाम 2019 की सूची में नहीं है, जिससे वे अपने आवेदनों की अस्वीकृति के खिलाफ अपील कर सकें।
प्रार्थनाओं के अन्य सेट में याचिका में कुछ सुरक्षा उपायों को शामिल करके विदेशी अधिनियम, 1946 और विदेशी (न्यायाधिकरण) आदेश, 1964 में संशोधन करने के लिए पीठ से अनुरोध किया गया। साथ ही सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर पुनर्विचार करने की भी प्रार्थना की गई, जिसने अवैध प्रवासियों (ट्रिब्यूनल द्वारा निर्धारण) अधिनियम, 1983 को अल्ट्रा वायर्स घोषित किया था। उक्त आदेश के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट र्वोच्च न्यायालय ने संबंधित अधिकारियों को विदेशी अधिनियम 1946 के तहत संदिग्ध विदेशियों की नागरिकता से संबंधित मामलों को तय करने का निर्देश दिया था।
कोर्ट ने विशेष रूप से कहा था कि भारत के संविधान, 1950 के अनुच्छेद 32 के तहत अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करते हुए सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर पुनर्विचार करना संभव नहीं होगा, जैसा कि वर्तमान याचिका में प्रार्थना की गई है।
याचिका में कहा गया था कि 2019 की सूची में 19,06,657 आवेदकों को छोड़ दिया गया। नागरिकता का दर्जा साबित करने की प्रक्रिया कठिन है और अपने वंश को साबित कर नागरिकता स्थापित करने की कोशिश कर रही विवाहित महिलाओं के लिए मुश्किल कई गुना बढ़ जाती है। याचिका में जातीय सफाई के आरोप भी लगाए गए । उसी वर्ष एक और पूरक सूची प्रकाशित की गई।
यह बताता है कि 2021 में असम विधान सभा चुनाव के समापन के बाद नव नियुक्त मुख्यमंत्री डॉ हेमंत बिस्वा सरमा ने घोषणा की कि सीमावर्ती क्षेत्रों में एनआरसी के 20% और अन्य क्षेत्रों में 10% की समीक्षा की जाएगी। असम एनआरसी के राज्य समन्वयक ने भी नागरिकता की अनुसूची (नागरिकों का रजिस्ट्रेशन और राष्ट्रीय पहचान पत्र जारी करना) नियमों के खंड 4 (3) के तहत एनआरसी के मसौदे और एनआरसी की पूरक सूची के पुन: सत्यापन की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
याचिका एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड वकील अदील अहमद के माध्यम से दायर की गई थी।
[केस टाइटल: तारेक अख्तर अंसारी बनाम भारत सरकार एंड अन्य डब्ल्यूपी (सी) संख्या 130/2022]