इंटरफेथ रिलेशनशिप में रही लड़की को माता-पिता द्वारा कथित तौर पर बंधक बनाने के मामले में दायर हैबियस कार्पस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई से इनकार किया
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को याचिकाकर्ता के साथ इंटर-फेथ संबंध बनाने वाली लड़की की सुरक्षा की मांग करते हुए दायर की गई हैबियस कार्पस याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया। याचिका में आरोप लगाया गया है कि कथित रूप से लड़की के माता-पिता ने उसे अवैध रूप से बंधक बना रखा है और उसकी जबरदस्ती शादी करवा रहे हैं।
सीजेआई बोबडे, न्यायमूर्ति बोपन्ना और न्यायमूर्ति रामसुब्रमण्यन की तीन-न्यायाधीश वाली पीठ ने याचिकाकर्ता से कहा कि वह सुप्रीम कोर्ट की बजाय इस मामले के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाए।
सोमवार को सुनवाई के दौरान, याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील ने कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत किया कि सुप्रीम कोर्ट ने विशेष सेल बनाने के लिए अपने फैसले में एक अनिवार्य निर्देश दिया था, लेकिन कोई विशेष सेल या संरक्षण गृह नहीं बनाए गए हैं।
पीठ ने कहा कि,''जो हम नहीं समझ पा रहे हैं वो यह है कि क्या आपको लगता है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट निर्देश पारित नहीं कर सकती है!''
वकील ने कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट में उस समय हड़ताल थी और अब मामले को सूचीबद्ध होने में 10 दिन लगेंगे। परंतु कोर्ट ने याचिकाकर्ता से कहा कि वह इस याचिका को वापिस ले लें और इस मामले के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट जाएं।
वर्तमान याचिका में शक्ति वाहिनी के मामले में सुप्रीम कोर्ट के 2018 के फैसले के अनुपालन के लिए निर्देश देने की मांग की गई थी, जहां ऑनर किलिंग पीड़ितों की सुरक्षा के लिए निवारक, उपचारात्मक और दंडात्मक उपायों के रूप में निर्देश जारी किए गए थे।
एनजीओ धनक आॅफ ह्यूमैनिटी की याचिका के अनुसार, याचिकाकर्ता राजेश गुप्ता और बंधक बनाकर रखी गई साहिमुन निशा के बीच वर्ष 2015 से रिलेशनशिप है और वह लड़की के माता-पिता को शादी के लिए राजी करने की कोशिश कर रहे थे। हालांकि, लड़की के माता-पिता सहमत नहीं हुए और इसके बजाय दोनों को मारने की धमकी दी।
याचिका में कहा गया है कि याचिकाकर्ता राजेश गुप्ता ने फरवरी 2021 में पुलिस से संपर्क किया और बताया कि एस निशा को अवैध रूप से बंधक बनाकर रखा गया है और उसकी सुरक्षा की मांग की। याचिकाकर्ता ने पुलिस को शक्ति वाहिनी के मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार एक विशेष सेल के समक्ष लड़की को पेश करने की भी मांग की, लेकिन उसे सूचित किया गया कि ऐसी कोई विशेष सेल नहीं बनाई गई है।
याचिकाकर्ताओं ने बताया कि वे संविधान के आर्टिकल 14 और 21 के तहत गारंटीकृत कानून, जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के समान संरक्षण के अधिकार से वंचित करने के लिए प्रतिवादियों द्वारा की जा रही मनमानी और असंवैधानिक कार्रवाई से व्यथित हैं।
याचिका में आगे कहा गया है कि उत्तर प्रदेश सरकार 27 मार्च 2018 को शक्ति वाहिनी बनाम भारत संघ के मामले में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का पालन करने के लिए अपेक्षित तत्परता और ध्यान देने में विफल रही है, जिसमें ऑनर किलिंग के शिकार लोगों की सुरक्षा के लिए शीर्ष न्यायालय द्वारा कई और सुस्पष्ट निर्देश पारित किए गए थे।
कहा गया है कि नौकरशाही की शिथिलता और उदासीन रवैये के कारण प्रतिवादी दिशा निर्देशों के अनुपालन में विफल रहे हैं और जानबूझकर 27.03.2018 के आदेश की अवहेलना की है।
एडवोकेट पी सुरेश द्वारा दायर की गई और एडवोकेट उत्कर्ष सिंह द्वारा व्यवस्थित की इस याचिका में मांग की गई है कि बंधक बनाई गई लड़की साहिमुन निशा को सुप्रीम कोर्ट, या किसी अन्य अदालत, स्पेशल सेल या किसी अन्य उपयुक्त प्राधिकारी के समक्ष पेश किया जाए। याचिका में यूपी सरकार को शक्ति वाहिनी मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का अनुपालन करने के संबंध में हलफनामा दाखिल करने का निर्देश देने की भी मांग की गई थी।