'आदेश के खिलाफ पुनर्विचार के लिए एसएलपी दाखिल नहीं हो सकती': सुप्रीम कोर्ट ने 56 साल बाद अदालत का दरवाजा खटखटाने पर याचिकाकर्ता को फटकार लगाई
सुप्रीम कोर्ट ने इस तथ्य पर जोर देते हुए कि केवल आदेश के खिलाफ पुनर्विचार के लिए विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) दाखिल नहीं की जा सकती, 56 साल और 6 दिनों की देरी के बाद पुनर्विचार याचिका के माध्यम से अदालत का दरवाजा खटखटाने पर याचिकाकर्ता को फटकार लगाई।
न्यायमूर्ति एसके कौल और न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय की खंडपीठ ने 29 मार्च, 2019 को पटना हाईकोर्ट द्वारा पारित आदेश के खिलाफ एक याचिका पर सुनवाई करते हुए टिप्पणी की:
"हमने देखा कि इस कोर्ट और हाईकोर्ट के समक्ष दायर की गई वर्तमान कार्यवाही कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है और न्यायिक समय की बर्बादी है।"
अदालत ने इस बात पर ध्यान दिया कि जब पहली अपील में फैसला सुनाया गया था, तब किसी ने भी उस समय कोई आपत्ति नहीं की थी कि प्रतिवादी का निधन हो गया है। 56 वर्ष के बाद सब्मिशन किए जाने की मांग की गई, जिसके परिणामस्वरूप देरी के आधार पर आवेदन खारिज कर दिया गया। अब याचिकाकर्ताओं ने उस आदेश के खिलाफ एसएलपी दाखिल करके दूसरे दौर की शुरुआत की।
भारत नगर निगम बनाम यशवंत सिंह नेगी, (2013) एससीसी ऑनलाइन 308 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा करते हुए कोर्ट ने कहा कि एसएलपी केवल पुनर्विचार आदेश के खिलाफ दाखिल नहीं की जा सकती। पुनर्विचार के अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करने के लिए 50 वर्षों के बाद फैसले में कोई स्पष्ट त्रुटि नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता के आरोपों को स्पष्ट रूप से ठीक नहीं पाते हुए याचिका खारिज कर दी। इसके साथ ही याचिकाकर्ता पर 5000 / - रुपये का जुर्माना लगाया।
जुर्माना की राशि को चार सप्ताह के भीतर सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स ऑन रिकॉर्ड वेलफेयर फंड में जमा करने का निर्देश दिया।
केस शीर्षक: अनीता देवी और अन्य बनाम संजय कुमार और अन्य
विशेष अनुमति याचिका (सिविल) डायरी संख्या (एस). 35493/2019
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