ऑनलाइन कंटेंट पर स्व-नियमन कमजोर; रणवीर अल्लाबादिया मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा—स्वतंत्र नियंत्रण संस्था जरूरी
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (27 नवंबर) को ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर अश्लील, आपत्तिजनक और अवैध सामग्री पर नियंत्रण के लिए एक “तटस्थ, स्वतंत्र और स्वायत्त” नियामक संस्था की जरूरत पर जोर दिया। कोर्ट ने कहा कि मीडिया संस्थानों का “स्व-नियमन मॉडल” प्रभावी नहीं है और मजबूत वैधानिक निगरानी आवश्यक है।
चीफ़ जस्टिस सूर्य कांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की खंडपीठ पॉडकास्टर रणवीर अल्लाबादिया और अन्य की याचिकाओं पर सुनवाई कर रहे थे। सरकार ने कोर्ट को बताया कि नए दिशा-निर्देश तैयार किए जा रहे हैं और स्टेकहोल्डर्स से बातचीत चल रही है।
CJI ने सवाल उठाया कि निजी यूट्यूब चैनल या अन्य प्लेटफॉर्म पर कंटेंट डालने वालों पर कोई जवाबदेही क्यों नहीं है। उन्होंने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता महत्वपूर्ण है, पर इसे “विकृति” में बदलने की अनुमति नहीं दी जा सकती।
OTT प्लेटफॉर्म्स की ओर से बताया गया कि वे स्वेच्छा से डिजिटल मीडिया एथिक्स कोड का पालन कर रहे हैं, लेकिन CJI ने इसे अपर्याप्त बताया और कहा कि स्व-नियमन दोहराए जा रहे उल्लंघनों को नहीं रोक पा रहा।
जस्टिस बागची ने चिंता जताई कि आपत्तिजनक सामग्री वायरल होने के बाद उसे रोकना मुश्किल हो जाता है और सवाल उठाया कि क्या ऐसे मामलों में स्व-नियमन पर्याप्त होगा।
CJI ने गरीब, हाशिये पर रहने वाले लोगों पर आपत्तिजनक कंटेंट के प्रभाव को लेकर चिंता जताते हुए कहा कि चेतावनी और डिस्क्लेमर पर्याप्त नहीं हैं और उम्र सत्यापन (age verification) जरूरी है।
कोर्ट ने सुझाव दिया कि सरकार मसौदा दिशानिर्देश सार्वजनिक करे, जन-मत ले और विशेषज्ञ समिति गठित करे। मामला चार सप्ताह बाद फिर सुना जाएगा।
CJI ने स्पष्ट किया— “हम किसी भी ऐसी नीति को मंजूरी नहीं देंगे जो अभिव्यक्ति को दबाए, हम सिर्फ मौजूदा खालीपन को भरना चाहते हैं।”