देश में पेयजल की कमी के बीच बोतलबंद पानी की गुणवत्ता पर याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने बताया 'लक्ज़री लिटिगेशन'

Update: 2025-12-18 09:36 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को पैकेज्ड पेयजल से जुड़े मानकों को लेकर दायर एक याचिका पर विचार करने से इनकार करते हुए इसे “लक्ज़री लिटिगेशन” करार दिया। कोर्ट ने टिप्पणी की कि देश के बड़े हिस्से आज भी मूलभूत पेयजल की उपलब्धता के लिए संघर्ष कर रहे हैं और ऐसे में बोतलबंद पानी के अंतरराष्ट्रीय मानकों पर बहस प्राथमिक मुद्दा नहीं हो सकती।

चीफ़ जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की खंडपीठ सरंग वामन यादवकर द्वारा दायर उस रिट याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें भारत में पैकेज्ड ड्रिंकिंग वॉटर के लिए अंतरराष्ट्रीय मानकों को अपनाने से संबंधित दिशा-निर्देश मांगे गए थे।

सुनवाई की शुरुआत में ही चीफ़ जस्टिस ने याचिका की मूल भावना पर सवाल उठाते हुए कहा,

“देश में पीने का पानी ही कहां है, मैडम? लोगों के पास पीने का पानी नहीं है, बोतलबंद पानी की गुणवत्ता बाद में देखी जाएगी।”

याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अनीता शेनॉय ने दलील दी कि नागरिकों को कम से कम स्वच्छ और सुरक्षित पैकेज्ड पेयजल मिलने की गारंटी तो होनी ही चाहिए, क्योंकि यह सीधे तौर पर सार्वजनिक स्वास्थ्य से जुड़ा विषय है। उन्होंने खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम, 2006 की धारा 18 का हवाला देते हुए कहा कि प्राधिकरणों पर निर्धारित सुरक्षा मानकों का पालन करना वैधानिक दायित्व है, जिसे कमज़ोर नहीं किया जा सकता।

हालांकि, कोर्ट इन दलीलों से सहमत नहीं हुआ। मुख्य न्यायाधीश ने याचिका को “शहरी-केंद्रित दृष्टिकोण” वाला बताते हुए कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों में लोग मुख्यतः भूजल पर निर्भर हैं। उन्होंने टिप्पणी की,

“यह एक शहरी-केंद्रित सोच है; ग्रामीण इलाकों में लोग भूजल पीते हैं और उन्हें कुछ नहीं होता।”

पीठ ने यह भी कहा कि यदि याचिका उन गांवों से संबंधित होती, जहां आज भी बुनियादी पेयजल सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं, तो कोर्ट इसे अधिक गंभीरता से लेता।

“पानी की बोतल में यह होना चाहिए, वह होना चाहिए—ये सब लक्ज़री लिटिगेशन हैं,” मुख्य न्यायाधीश ने कहा।

जब याचिकाकर्ता के वकील ने इसे लक्ज़री लिटिगेशन मानने से इनकार करते हुए स्वास्थ्य संबंधी प्रभावों पर जोर दिया, तो मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि याचिका देश की जमीनी सच्चाइयों को नजरअंदाज करती है।

“क्या आपको लगता है कि हम अमेरिका, जापान या यूरोप के दिशा-निर्देश यहां लागू कर सकते हैं? हमें देश की वास्तविक परिस्थितियों का सामना करना होगा। कोई गरीबों का मुद्दा नहीं उठाता; यह सब अमीर और शहरी वर्ग की चिंता है,” उन्होंने कहा।

याचिकाकर्ता की ओर से यह भी तर्क दिया गया कि भारतीय मानकों के तहत अनुमेय सीमाएं विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मानकों की तुलना में काफी कमजोर हैं। हालांकि, पीठ इस मुद्दे पर न्यायिक हस्तक्षेप के लिए तैयार नहीं हुई।

अंततः, कोर्ट ने याचिका को खारिज करने से पहले याचिकाकर्ता को इसे वापस लेने की अनुमति दी, साथ ही सक्षम प्राधिकरण के समक्ष जाने की स्वतंत्रता भी दी। अंत में मुख्य न्यायाधीश ने टिप्पणी करते हुए कहा,

“जब गांधी भारत आए थे, तो उन्होंने गरीब इलाकों का दौरा किया था। याचिकाकर्ता से कहिए कि वे उन गरीब क्षेत्रों में जाएं, जहां पीने के पानी तक की चुनौती है, तब उन्हें समझ आएगा कि भारत क्या है।”

Tags:    

Similar News