सुप्रीम कोर्ट ने सात सितंबर 2021 से सुनवाई के लिए 40 मौत की सजा के मामलों को सूचीबद्ध किया
सुप्रीम कोर्ट ने 40 'मौत के मामलों' की सात सितंबर 2021 से सुनवाई के संबंध में एक अधिसूचना जारी की है।
अधिसूचना के अनुसार, ये मामलों को तीन जजों की बेंच के सामने सूचीबद्ध होंगे।
इस सूची में उन दोषियों की चार पुनर्विचार याचिकाएं भी शामिल हैं, जिनकी अपील अदालत ने मौत की सजा को बरकरार रखते हुए खारिज कर दी थी।
नारायण चेतनराम चौधरी और जितेंद्र @ जीतू नयनसिंह गहलोत
निचली अदालत ने नारायण चेतनराम चौधरी और जितेंद्र उर्फ जीतू नयनसिंह गहलोत को एक गर्भवती महिला और दो छोटे बच्चों सहित पांच महिलाओं की हत्या का दोषी मानते हुए मौत की सजा सुनाई थी। इसके बाद पाँच सितंबर 2000 को सुप्रीम कोर्ट की न्यायमूर्ति के.टी. थॉमस और आर.पी. सेठी की खंडपीठ ने हाईकोर्ट के उस फैसले को बरकरार रखा था, जिसमें ट्रायल कोर्ट की मौत की सजा देने की सजा की पुष्टि की गई थी।
नारायण द्वारा इसके बाद दायर की गई पुनर्विचार याचिका भी 24.11.2000 को खारिज कर दी गई थी। अपनी पुनर्विचार याचिका खारिज होने के करीब डेढ़ दशक बाद नारायण चेतनराम चौधरी ने एक आवेदन दायर कर पुनर्विचार याचिका पर फिर से विचार करने की मांग की थी। उन्होंने किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 की धारा 9 (2) के तहत एक अन्य आवेदन भी दायर किया था। इसमें यह घोषणा करने की मांग की गई कि अपराध के समय वह किशोर था।
कोर्ट ने नारायण की पुनर्विचार याचिका पर फिर से विचार करते हुए मामले को प्रधान जिला और सत्र न्यायाधीश, पुणे को किशोरता का फैसला करने के लिए भेजा। उक्त रिपोर्ट में कहा गया कि वह 12 साल और छह महीने का था। इस प्रकार अपराध की तारीख पर उसे एक किशोर के रूप में आरोपित किया गया था।
अदालत ने सुनवाई के लिए पुनर्चिवार याचिका पोस्ट करते हुए कहा,
"किशोर पर कभी भी मृत्युदंड नहीं लगाया जा सकता है। हालांकि, इस मुद्दे पर अंतिम रूप से फैसला किया जाना है कि क्या कथित अपराध की तारीख को याचिकाकर्ता एक बच्चा था या नहीं।"
मो. आरिफ @ अशफाक बनाम राज्य (दिल्ली का राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र)
मो. आरिफ उर्फ अशफाक को 2000 के लाल किला आतंकी हमले के मामले में दोषी ठहराया गया था। इस हमले में सेना के तीन जवान शहीद हो गए थे।
सुप्रीम कोर्ट ने आरिफ की अपील को खारिज करते हुए कहा था,
"वास्तव में यह एक अनूठा मामला है जहां एक सबसे विकट परिस्थिति यह है कि विदेशियों द्वारा भारत की एकता, अखंडता और संप्रभुता पर सीधा हमला किया गया। इस प्रकार यह भारत माता पर हमला था। यह इस तथ्य से अलग है कि तीन लोगों की जान चली गई। साजिशकर्ताओं का भारत में कोई स्थान नहीं है। अपीलकर्ता एक विदेशी नागरिक है और उसने बिना किसी प्राधिकरण या औचित्य के भारत में प्रवेश किया। यह इस तथ्य के अलावा है कि अपीलकर्ता ने भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ने की एक साजिश रची। इस साजिश को आगे बढ़ाने के लिए छल, कई अन्य अपराध करना और भारतीय सेना के सैनिकों पर अकारण हमला करके हत्याएं करना शामिल है। इसलिए, हमें इसमें कोई संदेह नहीं है कि इस मामले की अजीबोगरीब परिस्थिति को देखते हुए मौत की सजा ही एकमात्र सजा है।"
बाद में उसकी पुनर्विचार याचिका भी खारिज कर दी गई।
सुंदर @ सुंदरराजन
सुंदर @ सुंदरराजन को सात साल के बच्चे के अपहरण और हत्या के लिए दोषी ठहराया गया और मौत की सजा सुनाई गई।
सर्वोच्च न्यायालय 5 फरवरी, 2013 को अपील को खारिज करते हुए कहा था,
"जिस तरह से बच्चे की हत्या की गई और आरोपी द्वारा अपनाए गए दृष्टिकोण और तरीके से आरोपी के व्यवहार में अपमानजनक आपराधिकता के लक्षण प्रकट होते हैं। बच्चे की पहले गला घोंटकर हत्या की गई थी। फिर उसके शव को एक बारदान में बांध दिया गया था। आखिर में उस बारदानी को पानी की टंकी में फेंक दिया गया। यह सब एक सुविचारित और योजनाबद्ध तरीके से किया गया था। अभियुक्तों के इस दृष्टिकोण से क्रूर मानसिकता का पता चलता है।"
इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी की मौत की सजा को बरकरार रखा था।
मोफिल खान
मोफिल खान को छह लोगों की हत्या के लिए दोषी ठहराया गया था और मौत की सजा सुनाई गई थी। आरोपी के खिलाफ अभियोजन का मामला इस प्रकार था: मृतक के भाई और भतीजे उसके पास पहुंचे और तलवार, टंगी, भुजाली और कुदाल जैसे धारदार हथियारों से हमला करना शुरू कर दिया। आरोपियों के हमलों से जख्मी होकर मृतक ने दम तोड़ दिया। मृतक को मौके पर छोड़कर वे मृतक के घर की ओर बढ़ गए। वहां अपने पिता के कराहने की आवाज सुनकर मृतक के दोनों बेटे सड़क पर निकल आए। आरोपियों ने दो निहत्थे भाइयों पर हथियारों से हमला कर दिया, जिससे दोनों भाई घर के सामने ही गिर पड़े और उनकी मौत हो गई। इसके बाद आरोपी ने मृतक के घर में घुसकर मृतक की पत्नी और उसके चार बेटों की हत्या कर दी।
सुप्रीम कोर्ट ने उनकी अपीलों को खारिज कर दिया और नौ अक्टूबर 2014 को मौत की सजा को बरकरार रखा।
पुनर्विचार याचिकाओं को फिर से खोलना
इसके बाद अशफाक, सुंदर और कुछ अन्य मौत के दोषियों ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक रिट याचिका दायर की जिसमें उन्होंने इन मुद्दों को उठाया: 1) जिन मामलों में मौत की सजा दी गई है, उनकी सुनवाई कम से कम सुप्रीम कोर्ट केी तीन जजों की बेंच द्वारा की जानी चाहिए, और (2) मौत की सजा के मामलों में रिव्यू पिटीशन की सुनवाई सर्कुलेशन से नहीं होनी बल्कि ओपन कोर्ट में होनी चाहिए। तदनुसार सुप्रीम कोर्ट रूल्स, 1966 के ऑर्डर XL नियम 3 को असंवैधानिक घोषित किया जाना चाहिए, क्योंकि मौत की सजा पाने वाले व्यक्तियों को मौखिक सुनवाई से वंचित कर दिया जाता है।
इन रिट याचिकाओं में पारित अपने फैसले में अदालत ने माना कि मौत की सजा पाए एक दोषी द्वारा दायर की गई एक पुनर्विचार याचिका को ओपन कोर्ट में सुना जाना आवश्यक है, लेकिन संचलन द्वारा तय नहीं किया जा सकता है।
"39. अब से उन सभी मामलों में जिनमें सुप्रीम कोर्ट के समक्ष लंबित अपीलों में हाईकोर्ट द्वारा मौत की सजा दी गई है, केवल तीन माननीय न्यायाधीशों की एक पीठ ही सुनवाई करेगी। यही कारण है कि कम से कम तीन जजों की बेंच को ऊपर उल्लिखित सजा प्रक्रिया की अनियमितताओं को देखते हुए मौत की सजा पर एक दोषी की जीवन यात्रा के अंतिम चरण में विचार करने की आवश्यकता है। वर्तमान में हम कम से कम पाँच न्यायाधीशों की बेंच को सभी मौत की सजा के मामलों की सुनवाई के लिए नियुक्त नहीं कर रहे हैं। इसके अलावा, हम लूथरा के प्रस्तुतीकरण से सहमत हैं कि एक पुनर्विचार याचिका की सुनवाई केवल उसी बेंच द्वारा की जानी है जिसने मूल रूप से आपराधिक अपील को सुना था। यह स्पष्ट रूप से इस कारण से है कि एक पुनर्विचार याचिका के सफल होने के लिए त्रुटियों को स्पष्ट करने के लिए रिकॉर्ड को ढूंढना होगा। यह स्वयंसिद्ध है कि जिन न्यायाधीशों ने गलती की है, उन्हें इस तरह की त्रुटि को सुधारने के लिए अब बुलाया जाना चाहिए।"
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि पुनर्विचार याचिकाओं में सीमित मौखिक सुनवाई का अधिकार जहां मौत की सजा दी गई है, केवल लंबित पुनर्विचार याचिकाओं और भविष्य में दायर ऐसी याचिकाओं पर ही लागू होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा,
"यह वहां भी लागू होगा जहां एक पुनर्विचार याचिका पहले ही खारिज कर दी गई है लेकिन अब तक मौत की सजा को निष्पादित नहीं किया गया है। ऐसे मामलों में याचिकाकर्ता इस फैसले की तारीख से एक महीने के भीतर अपनी पुनर्विचार याचिका को फिर से खोलने के लिए आवेदन कर सकते हैं। हालांकि जिन मामलों में क्यूरेटिव पिटीशन भी खारिज कर दी जाती है, ऐसे मामलों को फिर से खोलना उचित नहीं होगा।"
इस तरह से उपरोक्त याचिकाएं दायर की गईं।
अनोखीलाल
अनोखेलाल को मार्च 2013 में नौ साल की एक नाबालिग लड़की के साथ बलात्कार करने और उसके साथ यौन संबंध बनाने के बाद हत्या करने के लिए दोषी ठहराया गया था और मौत की सजा सुनाई गई थी। पूरा ट्रायल तेरह दिनों के भीतर समाप्त हो गया था। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने जून 2013 में मृत्युदंड को बरकरार रखा था। इस निर्णयों को रद्द करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी द्वारा दायर अपील पर मामले पर नए सिरे से विचार करने का निर्देश दिया। न्यायालय ने कहा कि आपराधिक मामलों के शीघ्र निपटान का परिणाम न्याय के कारण को दफनाने में नहीं होना चाहिए।
हालांकि, अदालत ने कहा कि वह साक्ष्य रिकॉर्ड करने के उद्देश्य से वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग का उपयोग करने की संभावना का पता लगाएगी, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इस तरह के उपयोग से गवाहों को अदालत में बुलाने में लगने वाला समय समाप्त हो जाएगा। यह तब है जब अदालत ने देखा कि सीआरपीसी की धारा 309 (1) (जैसा कि 2018 में संशोधित है) ट्रायल पूरा करने के लिए 60 दिनों की समय सीमा प्रदान करती है। इस अपील को इस मुद्दे की जांच के लिए सूचीबद्ध किया जा रहा है।
अन्य सभी मामले अभियुक्तों द्वारा दायर अपीलें हैं जिनकी मृत्युदंड की पुष्टि संबंधित हाईकोर्ट द्वारा की गई है।