गुजरात हाईकोर्ट के खिलाफ आरोपों पर अवमानना सजा के खिलाफ यतीन ओझा की अपील सुप्रीम कोर्ट में फरवरी में सुनी जाएगी
सुप्रीम कोर्ट फरवरी में सीनियर एडवोकेट यतीन ओझा की उस अपील पर सुनवाई करेगा, जिसमें उन्होंने गुजरात हाईकोर्ट की 2020 की उस व्यवस्था को चुनौती दी, जिसके तहत उन्हें आपराधिक अवमानना का दोषी ठहराया गया था।
यह मामला सोमवार को जस्टिस जे.के. महेश्वरी और जस्टिस विजय बिश्नोई की पीठ के समक्ष सूचीबद्ध हुआ, लेकिन समयाभाव के कारण सुनवाई टाल दी गई।
खंडपीठ ने दोनों पक्षों से कहा कि अगले अवसर पर वे इस मामले को “पूरी तरह एक केस की तरह” बहस के लिए प्रस्तुत करें। अब इसकी सुनवाई फरवरी में होगी।
सीनियर एडवोकेट डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी ने ओझा की ओर से पेश होकर कहा कि याचिकाकर्ता को पहले ही “सजा से कहीं अधिक दंड झेलना पड़ा है” और अब “प्रतिशोधात्मक न्याय” की कोई गुंजाइश नहीं होनी चाहिए।
वहीं, गुजरात हाईकोर्ट की ओर से सीनियर एडवोकेट विजय हंसरिया ने अदालत को बताया कि ओझा के आचरण से जुड़े अवमानना के कुल छह अलग-अलग घटनाक्रम रहे हैं। उन्होंने यहां तक टिप्पणी की कि “कृपया अपने मुवक्किल को अदालत में आचरण का तरीका समझाइए।”
मामले की पृष्ठभूमि में, जून 2020 में आयोजित एक फेसबुक लाइव कॉन्फ्रेंस के दौरान यतीन ओझा ने गुजरात हाईकोर्ट की रजिस्ट्री पर भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद और हाई-प्रोफाइल उद्योगपतियों व तस्करों को तरजीह देने जैसे गंभीर आरोप लगाए थे।
वह उस समय गुजरात हाईकोर्ट एडवोकेट्स एसोसिएशन के अध्यक्ष भी थे। इन सार्वजनिक टिप्पणियों के बाद हाईकोर्ट ने उनके खिलाफ स्वतः संज्ञान लेकर अवमानना की कार्यवाही शुरू की।
अक्टूबर 2020 में पारित आदेश के जरिए हाईकोर्ट ने ओझा को आपराधिक अवमानना का दोषी ठहराया। फैसले में न्यायपालिका की गरिमा और अधिकार को बनाए रखने की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा गया कि संस्थान की रक्षा के लिए अवमानना की शक्ति ही एकमात्र प्रभावी हथियार है, जो आवश्यकता पड़ने पर कहीं भी और किसी तक भी पहुंच सकती है।
इसी विवाद के दौरान जुलाई 2020 में हाईकोर्ट ने ओझा का वरिष्ठ अधिवक्ता का दर्जा भी वापस ले लिया था। इसके खिलाफ उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया।
सुप्रीम कोर्ट ने अक्टूबर 2021 में उन्हें दो वर्षों के लिए अस्थायी रूप से सीनियर एडवोकेट का दर्जा बहाल करते हुए कहा था कि उनके आचरण पर नजर रखना और उसके आधार पर उचित निर्णय लेना हाईकोर्ट का ही अधिकार रहेगा।
इसके बाद गुजरात हाईकोर्ट ने दिसंबर 2021 में प्रस्ताव पारित कर उनका दर्जा बहाल किया, जिसकी अवधि जनवरी 2025 में आगे बढ़ाई गई।
अब ओझा की अवमानना दोषसिद्धि के खिलाफ अपील पर सुप्रीम कोर्ट फरवरी में विस्तार से सुनवाई करेगा, जहां यह तय होगा कि हाईकोर्ट द्वारा दी गई सजा और निष्कर्ष न्यायसंगत है या नहीं।