BREAKING| सोनम वांगचुक की हिरासत के खिलाफ याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने जारी किया नोटिस

Update: 2025-10-06 05:31 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने लद्दाख के सोशल एक्टिविस्ट और शिक्षा सुधारक सोनम वांगचुक की पत्नी गीतांजलि अंगमो द्वारा दायर रिट याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया। गीतांजलि ने लद्दाख में हाल ही में हुई हिंसक झड़पों के बाद राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, 1980 के तहत उनकी नज़रबंदी को चुनौती दी।

अदालत इस मामले की सुनवाई अगले मंगलवार (14 अक्टूबर) को करेगी।

याचिकाकर्ता की ओर से सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने दलील दी कि उन्हें नज़रबंदी के आधार बताए जाने चाहिए। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी कि नज़रबंदी के आधार बंदी (सोनम वांगचुक) को बताए जा चुके हैं। सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि क़ानून में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि पत्नी को नज़रबंदी के आधार बताए जाएं।

हालांकि, जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस एनवी अंजारिया की खंडपीठ ने सिब्बल से कहा कि वह याचिकाकर्ता को नज़रबंदी के आधार बताने के संबंध में आज कोई आदेश नहीं देगी।

जस्टिस कुमार ने सॉलिसिटर जनरल से पूछा कि याचिकाकर्ता को आधार प्रदान करने में क्या बाधा है। सॉलिसिटर जनरल ने दोहराया कि हिरासत में लिए गए व्यक्ति की पत्नी को आधार प्रदान करने का कोई कानूनी आदेश नहीं है।

सिब्बल ने कहा कि हिरासत के आधार के बिना हिरासत आदेश को चुनौती नहीं दी जा सकती। उन्होंने स्पष्ट किया कि पत्नी को हिरासत के आधार न दिए जाने को हिरासत को चुनौती देने का आधार नहीं माना जाएगा और वह इसलिए ऐसा कर रहे हैं ताकि हिरासत को ही चुनौती दी जा सके।

सिब्बल ने याचिकाकर्ता के लिए मेडिकल सहायता की मांग करते हुए अंतरिम राहत का भी मुद्दा उठाया। इस संबंध में सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि जब हिरासत में लिए गए व्यक्ति को मेडिकल जांच के लिए पेश किया गया तो उसने कहा कि वह कोई दवा नहीं ले रहा है। हालांकि, सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि यदि किसी मेडिकल आपूर्ति की आवश्यकता होगी तो वह सुनिश्चित की जाएगी।

सिब्बल के इस अनुरोध के संबंध में कि याचिकाकर्ता (पत्नी) को सोनम वांगहुक से मिलने की अनुमति दी जाए, जस्टिस कुमार ने पूछा कि क्या उन्होंने उनसे मिलने का कोई अनुरोध किया। यह देखते हुए कि उन्होंने ऐसा कोई औपचारिक अनुरोध नहीं किया, जस्टिस कुमार ने कहा कि ऐसा कोई आदेश पारित नहीं किया जा सकता। जस्टिस कुमार ने कहा कि पहले अनुरोध करें और अगर वह अस्वीकार कर दिया जाता है तो फिर अदालत का रुख करें।

एसजी ने कहा कि याचिकाकर्ता यह कहकर "हल्ला" मचाने और "भावनात्मक मुद्दा" खड़ा करने की कोशिश कर रहा है कि बंदी को मेडिकल सहायता और उसकी पत्नी से मिलने की अनुमति नहीं दी गई।

सुनवाई के दौरान, जस्टिस कुमार ने यह भी पूछा कि याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट का रुख क्यों नहीं किया। सिब्बल ने जवाब दिया कि हिरासत का आदेश केंद्र सरकार द्वारा पारित किया गया और पूछा कि किस उच्च न्यायालय का रुख किया जा सकता है।

अनुच्छेद 32 के तहत दायर रिट याचिका बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका है, जिसमें कथित तौर पर जोधपुर की जेल में बंद वांगचुक की रिहाई की मांग की गई। रिट याचिका के अनुसार, अंगमो ने अनुच्छेद 22 के तहत हिरासत को अवैध बताते हुए चुनौती दी, क्योंकि दोनों में से किसी को भी गिरफ्तारी का कोई आधार नहीं दिया गया।

Case Details: GITANJALI J. ANGMO v UNION OF INDIA AND ORS|W.P.(Crl.) No. 399/2025

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