सुप्रीम कोर्ट ने सभी दुकानों के नेम बोर्ड को अनिवार्य रूप से मराठी में करने के महाराष्ट्र सरकार के फैसले के खिलाफ दायर याचिका पर नोटिस जारी किया
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने शुक्रवार को महाराष्ट्र सरकार (Maharashtra Government) के उस फैसले का विरोध करने वाली याचिका पर नोटिस जारी किया, जिसमें राज्य में सभी दुकानों के नेम बोर्ड (Name Board) को अनिवार्य रूप से मराठी (Marathi) में करने का निर्देश दिया गया था।
राज्य सरकार के फैसले को बरकरार रखने के बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ फेडरेशन ऑफ रिटेल ट्रेडर्स वेलफेयर एसोसिएशन द्वारा एसएलपी को जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस हृषिकेश रॉय की पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया गया था।
एसोसिएशन की ओर से सीनियर एडवोकेट गोपाल शंकरनारायणन पेश हुए।
हाईकोर्ट के समक्ष एसोसिएशन ने तर्क दिया कि राज्य सरकार के निर्देश को लागू करने के निर्णय में कोई तर्क नहीं है और राज्य की भाषा की पसंद को दुकानों पर नहीं थोपा जा सकता है।
हालांकि, याचिका को खारिज करते हुए जस्टिस गौतम पटेल और माधव जामदार की बॉम्बे हाईकोर्ट की बेंच ने कहा था कि यह कहना कि किसी प्रकार का अविवेकपूर्ण भेदभाव है, पूरी तरह से गलत है।
कोर्ट ने कहा था,
"यदि कोई खुदरा विक्रेता महाराष्ट्र में व्यापार करना चाहता है, तो यह उन शर्तों के अधीन होगा जो सरकार सभी पर समान रूप से लागू करना चाहती है। स्पष्ट रूप से, संविधान के अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता का अधिकार) का कोई उल्लंघन नहीं है।"
कोर्ट यह भी कहा था कि संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत अधिकार मुक्त नहीं हैं और इसमें उचित प्रतिबंध हैं। पीठ ने कहा कि उसे इस बात का ध्यान है कि देश के कुछ हिस्सों में स्थानीय लिपि के अलावा किसी अन्य लिपि का उपयोग नहीं करने की प्रथा है, लेकिन यहां ऐसा नहीं है और महाराष्ट्र में किसी भी अन्य भाषा को प्रतिबंधित नहीं किया गया है।
कोर्ट ने कहा था कि देवनागरी-मराठी दस्तावेजों को हाईकोर्ट में भी अनुमति दी गई है, जब तक कि किसी विशेष पीठ या अदालत द्वारा अनुवाद की आवश्यकता नहीं होती। हालांकि अदालत की भाषा अंग्रेजी है।
केस टाइटल: फेडरेशन ऑफ रिटेल ट्रेडर्स वेलफेयर एसोसिएशन एंड अन्य बनाम द स्टेट ऑफ महाराष्ट्र| एसएलपी (सिविल) 10629/2022