मौत की सजा पाए दोषी की केरल से गृह राज्य असम ट्रांसफर की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी किया
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को मोहम्मद अमीर-उल-इस्लाम द्वारा दायर याचिका पर नोटिस जारी किया, जिसे 2016 में केरल में लॉ स्टूडेंट से बलात्कार और उसकी हत्या के लिए मौत की सजा सुनाई गई, जिसमें केरल से जेल से उसके गृह राज्य असम की जेल में स्थानांतरित करने की मांग की गई।
जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस हृषिकेश रॉय की खंडपीठ ने एडवोकेट के.परमेश्वर को सुना, जिन्होंने न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया कि केरल सरकार ने केरल जेलों और सुधार सेवा (प्रबंधन) नियमों का हवाला देते हुए स्थानांतरण की याचिकाकर्ता की अपील खारिज कर दी, जो केरल जेल और सुधारात्मक सेवा (प्रबंधन) अधिनियम 2010 के तहत बनाए गए हैं। उन्होंने यह भी प्रस्तुत किया कि असम सरकार ने यह कहते हुए आवेदन खारिज कर दिया कि उसके पास इस मामले का अधिकार क्षेत्र नहीं है।
एडवोकेट परमेश्वर द्वारा यह बताया गया कि केरल अधिनियम कैदियों के स्थानांतरण अधिनियम, 1950 के विपरीत है, जो केंद्रीय कानून है।
उन्होंने प्रस्तुत किया,
"जेल सूची 2 है और कैदियों का स्थानांतरण समवर्ती सूची है, यही कारण है कि एक राज्य से दूसरे राज्य में स्थानांतरण में यह कैदी अधिनियम का स्थानांतरण होगा जो चलन में आएगा"
पीठ ने मामले की सुनवाई के लिए सहमति व्यक्त की और मामले में उत्तरदाताओं यानी केरल राज्य, असम राज्य और भारत संघ से जवाब मांगा। खंडपीठ ने मामले को 4 सप्ताह के बाद आगे की सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया।
याचिकाकर्ता ने इस आधार पर स्थानांतरण की मांग करते हुए अदालत का दरवाजा खटखटाया कि केरल जेल और सुधार सेवा (प्रबंधन) नियमों में निर्धारित नियम कैदी अधिनियम, 1900 और कैदी अधिनियम, 1950 के स्थानांतरण में निर्धारित क़ानून से बेहतर नहीं हो सकते। यह भी कहा गया यह नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों के विरुद्ध है कि नियमों के आधार पर तबादले से इंकार किया जाए जब कानून में ऐसे प्रावधान मौजूद हों जो नियमों का उल्लंघन करते हों।
याचिकाकर्ता द्वारा उठाया गया एक और आधार यह है कि उसे मौत की सजा दी गई है जिसकी हाईकोर्ट ने पुष्टि की है और ऐसी स्थिति में याचिकाकर्ता के प्रियजन अत्यधिक गरीबी के कारण उसके अंतिम दिनों में उससे मिलने नहीं आ पा रहे हैं। यह भारत के संविधान और मानवाधिकार चार्टर के अनुच्छेद 20 और 21 में निर्धारित प्रावधानों का उल्लंघन है। उसने सुनील बत्रा बनाम दिल्ली प्रशासन के मामले का भी हवाला दिया, जिसमें कहा गया कि कैदियों को जेल में उनके समय के दौरान कठोर या अमानवीय व्यवहार से बचाया जाना चाहिए और किसी भी तरह से अत्याचार या भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए। इसलिए याचिकाकर्ता ने अपने मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए केरल से असम स्थानांतरित होने की अनुमति देने की प्रार्थना की।
याचिकाकर्ता/आरोपी मुहम्मद अमीर उल इस्लाम को केरल में लॉ स्टूडेंट का बलात्कार और हत्या का दोषी पाया गया। उस पर भारतीय दंड संहिता और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों के तहत आरोप लगाए गए। उसे 2017 में एर्नाकुलम के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट कोर्ट द्वारा मौत की सजा दी गई, जिसकी बाद में केरल हाईकोर्ट ने भी पुष्टि की।
याचिका एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड श्रीराम परक्कट के माध्यम से दायर की गई।
केस टाइटल- मोहम्मद अमीर उल इस्लाम बनाम केरल और ओआरएस राज्य - डब्ल्यू.पी. (क्रिमिनल) नंबर 455/2022