मनी लॉन्ड्रिंग मामले में पत्रकार महेश लांगा को सुप्रीम कोर्ट से मिली अंतरिम जमानत
सुप्रीम कोर्ट ने 'द हिंदू' में पहले काम कर चुके पत्रकार महेश लांगा को धोखाधड़ी के अपराध से जुड़ी दो FIR के संबंध में दर्ज मनी लॉन्ड्रिंग मामले में अंतरिम जमानत दी।
लांगा को पहली बार 7 अक्टूबर, 2024 को GST धोखाधड़ी मामले में गिरफ्तार किया गया था और 20 फरवरी, 2025 को मनी लॉन्ड्रिंग मामले में गिरफ्तार किया गया।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) सूर्यकांत, जस्टिस जॉयमाल्य बागची और जस्टिस विपुल पंचोली की बेंच पत्रकार की जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
अंतरिम जमानत देते हुए बेंच ने निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता निम्नलिखित शर्तों का पालन करे:
(1) PMLA के तहत विशेष अदालत के निर्देशों पर जमानत बांड जमा करें।
(2) विशेष अदालत को 9 गवाहों के बयान दर्ज करने के लिए मामले की सुनवाई दिन-प्रतिदिन के आधार पर करने का निर्देश दिया जाता है।
(3) याचिकाकर्ता और उसके वकील को विशेष अदालत को पूरा सहयोग देने का निर्देश दिया जाता है। इस आधार पर कोई स्थगन नहीं दिया जाएगा कि कार्यवाही रद्द करने की याचिका हाईकोर्ट में लंबित है।
(4) याचिकाकर्ता अखबार के असिस्टेंट एडिटर के पद पर रहते हुए अहमदाबाद में स्पेशल जज के समक्ष उसके खिलाफ लंबित आरोपों के संबंध में कोई लेख प्रकाशित या नहीं लिखेगा। याचिकाकर्ता को अपने आपत्ति/कोई अतिरिक्त सामग्री रिकॉर्ड पर रखने की स्वतंत्रता है।
(5) ED याचिकाकर्ता द्वारा शर्तों के अनुपालन के संबंध में एक स्टेटस रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा।
बेंच ने आगे प्रवर्तन निदेशालय (ED) को याचिकाकर्ता द्वारा उपरोक्त शर्तों के अनुपालन के संबंध में स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया। बेंच ने चेतावनी दी कि अगर अंतरिम राहत का दुरुपयोग किया गया, तो आदेश वापस ले लिया जाएगा।
लांगा की ओर से सीनियर वकील कपिल सिब्बल पेश हुए।
ED की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने मुकदमे में देरी के लिए लांगा को दोषी ठहराते हुए कहा कि वह इस आधार पर आरोप-सुनवाई को स्थगित करने की मांग कर रहे हैं कि कार्यवाही रद्द करने की उनकी याचिका लंबित है। SG के बयान का खंडन करते हुए सिब्बल ने कहा कि ED आरोपी द्वारा मांगे गए दस्तावेज उपलब्ध नहीं करा रहा था।
सिब्बल ने कहा कि उन्होंने मांगे गए और उपलब्ध नहीं कराए गए दस्तावेजों की एक सूची पेश की है। SG ने इस दावे पर विवाद किया। सिब्बल ने तर्क दिया कि प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट की धारा 45 की दोहरी जमानत शर्तें लागू नहीं होतीं, क्योंकि इसमें शामिल रकम 1 करोड़ रुपये की सीमा पार नहीं करती।
SG ने तर्क दिया कि इसमें शामिल रकम 1 करोड़ से ज़्यादा है। सिब्बल ने तब दावा किया कि ED ने इस संबंध में कोई दस्तावेज़ नहीं दिए।
सिब्बल ने कहा कि शिकायत सिर्फ 68 लाख रुपये के लिए दायर की गई। इसमें कोई प्रेडिकेट अपराध भी शामिल नहीं है। SG ने कहा कि मांगे गए दस्तावेज़ शिकायत के साथ संलग्न हैं। सिब्बल ने इस मौके पर कहा कि वे दस्तावेज़ 1 करोड़ से ज़्यादा के नहीं हैं। ED ने 1 करोड़ से ज़्यादा रकम का कोई दस्तावेज़ नहीं दिखाया है। बेंच ने कहा कि वह इस पहलू पर नहीं जाएगी, क्योंकि यह ट्रायल का मामला है।
बेंच ने जब अंतरिम जमानत देने का प्रस्ताव दिया तो SG ने इसका विरोध किया और मंगलवार तक के लिए सुनवाई टालने की मांग करते हुए कहा,
"पत्रकारों द्वारा पैसे की उगाही एक गंभीर अपराध है"।
SG ने कहा कि वह बेंच को 1 करोड़ रुपये की संलिप्तता के बारे में संतुष्ट कर सकते हैं।
हालांकि, बेंच ने यह कहते हुए अंतरिम जमानत दी कि सच जानने का एकमात्र तरीका ट्रायल है। बेंच ने आगे कहा कि इसलिए वह दिन-प्रतिदिन की कार्यवाही के लिए निर्देश जारी कर रही है।
SG ने कहा कि अंतरिम जमानत देना "अंतिम राहत" के बराबर है।
SG ने कहा,
"तथ्यों को देखते हुए मैं चाहता हूं कि माई लॉर्डशिप मुझे तर्क रखने की अनुमति दें। एक बार जब वह बाहर आ जाता है तो यह ऐसा ही है, जैसे SLP स्वीकार कर ली गई हो। पत्रकारों द्वारा यह कहते हुए पैसे की उगाही करना कि अगर आप पैसे नहीं देंगे तो मैं आपके खिलाफ लिखूंगा, एक गंभीर अपराध है।"
सिब्बल ने जवाब दिया,
"उद्योगपतियों द्वारा पत्रकारों को निशाना बनाना भी गंभीर है।"
बेंच ने जब मामले को जनवरी में पोस्ट करने का निर्देश दिया तो SG ने कहा,
"यह किसी भी तारीख को हो सकता है। अब जब वह बाहर है, तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।"
Case Details : MAHESHDAN PRABHUDAN LANGA Versus STATE OF GUJARAT AND ANR., SLP(Crl) No. 13743/2025