सुप्रीम कोर्ट ने राज्य की सहमति के बाद इंदौर में गिरफ्तार लॉ इंटर्न को जमानत दी

Update: 2023-03-22 09:08 GMT

Supreme Court

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को इंदौर की एक लॉ इंटर्न को जमानत दे दी, जो 28 जनवरी से हिरासत में है। सोनू मंसूरी नाम की याचिकाकर्ता ने शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाते हुए आरोप लगाया था कि उस पर इंदौर कोर्ट परिसर और पुलिस में एक समूह ने हमला किया था। पुलिस ने बजाए बदमाशों के खिलाफ कार्रवाई करने के, उसे ही गिरफ्तार कर लिया।

मध्य प्रदेश सरकार की ओर से पेश एडिशनल सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज ने बुधवार को स्वीकार किया कि मंसूरी को जमानत पर रिहा किया जा सकता है।

एएसजी ने कहा, “हालांकि उसकी जमानत अर्जी खारिज कर दी गई है, लेकिन मैं रास्ते में नहीं खड़ा होना चाहता। कृपया उसे जमानत पर रिहा करें।" 

जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की पीठ ने आदेश दिया,

" एएसजी को जमानत अर्जी पर गंभीर आपत्ति नहीं है। याचिकाकर्ता नंबर 2 को न्यायालय की संतुष्टि के लिए 5000 रुपये के निजी मुचलके पर तत्काल जमानत पर रिहा किया जाए। आदेश हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार को सूचित किया जाएगा।"

याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व करने वाले सीनियर एडवोकेट दुष्यंत दवे ने कहा कि एएसजी ने "बहुत निष्पक्ष" रुख अपनाया है।

मंसूरी और उनके सीनियर एदवोकेट नूरजहां, दोनों मुस्लिम समुदाय से संबंधित हैं। उन्होंने अनुच्छेद 32 के तहत शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया और आरोप लगाया कि उनके खिलाफ मामला सांप्रदायिक रूप से प्रेरित है।

याचिकाकर्ता वकील पर हमले के आरोपों पर एएसजी नटराज ने निर्देश लेने के लिए और समय मांगा।

रिट याचिका में आरोप लगाया गया है कि याचिकाकर्ताओं - वकील नूरजहां और लॉ स्टूडेंट सोनू मंसूरी को झूठे, आधारहीन, राजनीति से प्रेरित और सांप्रदायिक रूप से लगाए गए आरोप के मामलों में स्थानीय संगठनों के इशारे पर फंसाया गया है, जो मध्य प्रदेश राज्य में वर्तमान राजनीतिक विवाद से जुड़े हैं।

याचिका में आरोप लगाया गया है कि 28.01.2023 को एडवोकेट एसोसिएशन से जुड़े वकीलों के एक समूह के साथ बजरंग दल के समर्थकों ने कोर्ट रूम के अंदर लॉ इंटर्न के साथ मारपीट की। उन्होंने इंटर्न पर बजरंग दल के एक नेता की जमानत की कार्यवाही को गुप्त रूप से रिकॉर्ड करने का आरोप लगाया, जिस पर फिल्म 'पठान' के विरोध में तोड़फोड़ करने का आरोप लगाया गया था।

याचिका के अनुसार, लॉ इंटर्न की जबरन तलाशी ली गई और बदमाशों ने उसके पास से बड़ी रकम और एक फोन छीन लिया। याचिका में कहा गया है कि स्थानीय पुलिस मौके पर आई, लेकिन बदमाशों के खिलाफ कार्रवाई करने के बजाय इंटर्न को पुलिस स्टेशन ले गई और शिकायत के आधार पर उसके खिलाफ एफआईआर दर्ज की कि वह पीएफआई और पीस जैसे प्रतिबंधित संगठनों के लिए काम कर रही है। एफआईआर में आईपीसी की धारा 419, 420 और 120बी के तहत दंडनीय अपराधों का जिक्र है।

इसके बाद उसे गिरफ्तार कर लिया गया। 29.01.2023 को न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश करने पर 01.02.2023 तक रिमांड मंजूर किया गया। बदमाशों द्वारा बनाए गए "सांप्रदायिक रूप से शत्रुतापूर्ण माहौल" के बीच किसी भी वकील ने इंटर्न की ओर से पेश होने की हिम्मत नहीं की।

याचिका में कहा गया है कि चूंकि स्थानीय वकीलों ने उसका बचाव करने से इनकार कर दिया, इसलिए चार वकीलों को जमानत अर्जी दाखिल करने के लिए दिल्ली से जाना पड़ा। चारों वकीलों ने पुलिस सुरक्षा मांगी, लेकिन उन्हें इससे इनकार कर दिया गया। यहां तक ​​कि उन्हें कोर्ट की सुनवाई में शामिल होने से भी रोका गया। पुलिस रिमांड दिनांक 04.02.2023 तक बढ़ाई गई। जब वकीलों ने स्थानीय बार एसोसिएशन से सदस्यों को अपने साथ हुए व्यवहार के बारे में सूचित करने के लिए संपर्क किया तो सदस्यों ने अपनी लाचारी व्यक्त की। बाद में उन्हें एक अज्ञात व्यक्ति द्वारा धमकी दी गई और तुरंत इंदौर छोड़ने के लिए कहा गया।

वकील स्थानीय थाने गए, लेकिन अधिकारियों ने उनकी बात नहीं सुनी। पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की तो वकील दिल्ली लौटने को मजबूर हो गए। कानूनी प्रतिनिधित्व के अभाव में इंटर्न को न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया।

याचिका में इंदौर जिला न्यायालय परिसर में हुई घटना की स्वतंत्र जांच के लिए शीर्ष अदालत से निर्देश मांगा गया। यह अनुरोध किया गया कि हाईकोर्ट के वर्तमान या सेवानिवृत्त न्यायाधीश को जांच सौंपी जाए। याचिका में याचिकाकर्ताओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए राज्य सरकार को निर्देश देने की भी मांग की गई।

[केस टाइटल : नूरजहां @नूरी और अन्य बनाम मध्य प्रदेश राज्य डब्ल्यूपी(सीआरएल) नंबर 73/2023]

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