लाइब्रेरी में 'हिंदूफोबिक' किताब मामले में इंदौर लॉ कॉलेज के प्रोफेसर को सुप्रीम कोर्ट ने दी अग्रिम जमानत
इंदौर में कॉलेज के लाइब्रेरी में एक विवादित किताब रखने के मामले में प्रोफेसर को अग्रिम जमानत मिली। सुप्रीम कोर्ट ने गवर्नमेंट लॉ कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. मिर्जा मोजेज बेग को अग्रिम जमानत दे दी। कथित हिंदूफोबिक और एंटी नेशनल किताब ‘Collective Violence And Criminal Justice System’ को कॉलेज की लाइब्रेरी में रखा गया था। जिसके बाद इसको लेकर विवाद हुआ था। इस किताब को डॉ. फरहत खान लिखा है।
केस को जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की डिवीजन बेंच के सामने लिस्ट किया गया था। फरवरी, 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी कर मध्य प्रदेश सरकार से जवाब मांगा था।
पिछले साल कॉलेज के एक एलएलएम छात्र और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के नेता लकी आदिवाल ने विवादास्पद पुस्तक के लेखक, इसके प्रकाशक अमर लॉ पब्लिकेशन और कॉलेज के प्रिंसिपल रहमान और प्रोफेसर मिर्जा मोजीज बेग के खिलाफ पुलिस शिकायत दर्ज कराई थी। छात्र ने आरोप लगाया कि इसे लॉ के छात्रों को पढ़ाई जा रही। इस किताब में हिंदू समुदाय और आरएसएस के खिलाफ विवादित सामग्री है। ये भी आरोप लगाया कि ये किताब विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देता है, धार्मिक भावनाओं को आहत करता है। शिकायत में कहा गया कि इस किताब की सामग्री झूठे और निराधार तथ्यों पर आधारित है, जो राष्ट्र-विरोधी है। इसका उद्देश्य सार्वजनिक शांति को नुकसान पहुंचाना है।
परिसर में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए। डॉ रहमान, डॉ बेग और तीन अन्य को अनुशासनात्मक कार्रवाई का सामना करना पड़ा था। प्रिंसिपल डॉ रहमान को रहमान को अपने पद से इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा। डॉ. रहमान और डॉ. बेग को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया गया था और मामले में शामिल तीन अन्य फैकल्टी मेंबर की सेवाएं भी समाप्त कर दी गई थीं।
इससे पहले, जब मध्यप्रदेश सरकार के वकील ने शीर्ष अदालत को सूचित किया कि राज्य उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देना चाहता है, तो मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने आश्चर्य व्यक्त किया था।
एबीवीपी, बेग, रहमान और तीन अन्य लोगों द्वारा कॉलेज परिसर में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन के बाद अनुशासनात्मक कार्रवाई का सामना करना पड़ा।
स्पेशल लीव पिटीशन में, बेग ने सभी आरोपों को झूठा बताया। कहा कि किताब साल 2011-12 की है। कॉलेज ने 2014 में खरीदी थी। उस समय वो कॉनट्रेक्चुअल बेसिस पर कॉलेज फैकल्टी के रूप में जुड़े थे। आगे कहा कि ये किताब 18 साल से अधिक समय से मास्टर कोर्स का हिस्सा है। पूरे मध्य प्रदेश में क्रिमिनल लॉ में सभी पोस्ट ग्रेजुएट स्टूडेंट्स को पढ़ाया जाता है।
डॉ. बेग ने तर्क दिया, अकादमिक स्वतंत्रता और 2014 में किसी के द्वारा प्रकाशित एक किताब FIR का आधार नहीं हो सकती है। याचिकाकर्ता का इस किताब से कोई संबंध नहीं है।
ये अपील मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर की गई थी। हाईकोर्ट ने बेग की अग्रिम जमानत की अर्जी खारिज कर दी थी।
इससे पहले, दिसंबर, 2022 में, मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने रहमान को अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया था। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने रहमान की गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी। इसके बाद हाईकोर्ट ने उन्हें अग्रिम जमानत दे दी थी।
सुनवाई के दौरान राज्य के वकील ने कहा था कि वो हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देना चाहते हैं। इस पर चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड ने कहा, "राज्य को दूसरे महत्वपूर्ण काम करने चाहिए। एक किताब, जो 2014 में खरीदी गई थी। लाइब्रेरी में मिली है। दावा किया गया कि इस किताब से धार्मिक भावनाएं आहत हो रही है। इसलिए प्रिंसिपल की गिरफ्तारी की मांग की जा रही है। क्या आप गंभीर हैं?"
[केस टाइटल: मिर्जा मोजिज़ बेग बनाम मध्य प्रदेश राज्य एसएलपी(सी) संख्या 1601/2023]