सुप्रीम कोर्ट ने अडाणी पावर ग्रुप को गुजरात ऊर्जा विकास लिमिटेड की क्यूरेटिव पिटीशन पर जवाब दाखिल करने के लिए तीन सप्ताह का समय दिया; 17 नवंबर को सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने गुजरात ऊर्जा विकास लिमिटेड (GUVL) द्वारा दायर क्यूरेटिव पिटीशन पर जवाब दाखिल करने के लिए अडाणी पावर लिमिटेड को गुरुवार को तीन सप्ताह का समय दिया।
गुजरात ऊर्जा विकास लिमिटेड ने 2019 के 3-न्यायाधीशों की बेंच के फैसले के खिलाफ क्यूरेटिव याचिका दायर की है, जिसने अडाणी पावर के साथ बिजली खरीद समझौते को समाप्त करने को बरकरार रखा है।
भारत के अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल जीयूवीएल के लिए क्यूरेटिव पिटीशन में भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमाना, जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्य कांत की पांच जजों की बेंच के सामने पेश हुए।
अडाणी पावर की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने जवाब दाखिल करने के लिए तीन सप्ताह का समय मांगा।
अडाणी पावर की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने भी साल्वे के अनुरोध का समर्थन किया।
पीठ ने इस अनुरोध को स्वीकार करते हुए मामले को स्थगित कर दिया।
अडाणी द्वारा जवाब दाखिल किए जाने के बाद पीठ ने जीयूवीएल को जवाब दाखिल करने के लिए दो सप्ताह का समय दिया है।
पीठ ने मामले को 17 नवंबर को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया है। सीजेआई ने मौखिक रूप से कहा कि उस दिन कोई स्थगन नहीं दिया जाएगा।
साल 2019 में जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्य कांत की 3 जजों की बेंच ने अडाणी पावर की जीयूवीएल के साथ पीपीए की समाप्ति को बरकरार रखा था।
जीयूवीएल ने पुनर्विचार याचिका दायर की, जिसे सितंबर 2019 में उसी 3-न्यायाधीशों की पीठ ने खारिज कर दिया। उसके बाद जीयूवीएल ने क्यूरेटिव याचिका दायर की।
16 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने अडाणी पावर के पक्ष में 2019 के फैसले के खिलाफ जीयूवीएल की क्यूरेटिव पिटीशन में नोटिस जारी किया।
यह मामला 2019 में विवाद का विषय बन गया, जब सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के तत्कालीन अध्यक्ष वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश को एक पत्र लिखकर आरोप लगाया कि अडाणी समूह से संबंधित कई मामलों को सूची से बाहर कर दिया गया है।
दवे ने यह भी आरोप लगाया कि तत्कालीन प्रचलित रोस्टर प्रणाली का उल्लंघन करते हुए मामलों को न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की अगुवाई वाली पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया गया। वर्तमान मामला दवे के पत्र में उल्लिखित मामलों में से एक है।