सुप्रीम कोर्ट ने अवैध प्रवासी घोषित महिला के निर्वासन पर रोक लगाई

Update: 2022-09-24 05:24 GMT
सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को गुवाहाटी हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका में नोटिस जारी किया, जिसमें विदेशी ट्रिब्यूनल के उस आदेश की पुष्टि की गई, जिसमें याचिकाकर्ता को विदेशी घोषित किया गया था, जो कटऑफ तिथि यानी, 25.03.1971 के बाद बांग्लादेश से अवैध रूप से भारत में आई थी।

याचिकाकर्ता की ओर से पेश एडवोकेट पीयूष कांति रॉय ने प्रस्तुत किया कि याचिकाकर्ता के परिवार के सभी सदस्यों को भारतीय नागरिक घोषित किया गया है। हालांकि, फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल ने माना कि याचिकाकर्ता ने अवैध रूप से भारत में प्रवेश किया और सक्षम प्राधिकारी को उसके खिलाफ कार्रवाई शुरू करने का निर्देश दिया, जिसमें मतदाता सूची से उसका नाम हटाना भी शामिल है।

जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच देखा कि "2019 में एनआरसी में उसके अलावा पूरा परिवार शामिल है।" इस पर बेंच नोटिस जारी करते हुए लिस्टिंग की अगली तारीख तक निर्वासन प्रक्रिया पर रोक लगा दी।

बेंच ने कहा,

"जारी नोटिस तीन सप्ताह में वापस करने योग्य। सूचीबद्ध होने की अगली तारीख तक याचिकाकर्ता के निर्वासन के लिए कोई कदम नहीं उठाया जाएगा।"

याचिका में कहा गया कि याचिकाकर्ता जन्म से भारतीय नागरिक है। इसमें कहा गया कि उसने विदेशी अधिनियम, 1946 की धारा 9 के तहत अपने दावे को साबित करने और अपने बोझ का निर्वहन करने के लिए पर्याप्त दस्तावेज पेश किए, जिन पर न तो ट्रिब्यूनल और न ही हाईकोर्ट द्वारा विचार किया गया। इन दस्तावेजों में उसका नाम, एनआरसी दस्तावेज, मतदाता पहचान पत्र, गांव पंचायत के सचिव द्वारा जारी प्रमाण पत्र और जमाबंदी रिकॉर्ड दिखाते हुए विभिन्न वर्षों की मतदाता सूची शामिल है।

यह तर्क दिया जाता है कि याचिकाकर्ता द्वारा प्रस्तुत किए गए दस्तावेजों को देखे बिना दूरगामी परिणाम देने वाले आदेश पारित करना न्याय का घोर गर्भपात है। याचिका में आगे कहा गया कि सक्षम प्राधिकारी द्वारा याचिकाकर्ता के माता-पिता, भाई-बहन, पति, ससुराल और बच्चों को भारतीय नागरिक घोषित किया गया। हालांकि उसका नाम नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स (एनआरसी) के मसौदे में दर्शाया गया है, लेकिन यह अंतिम एनआरसी में नहीं है।

याचिकाकर्ता को 27.11.2012 को फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल, बोंगाईगांव से 19.02.2013 को उसके समक्ष पेश होने के लिए पत्र प्राप्त हुआ। याचिकाकर्ता ने 20.05.2013 को अपनी नागरिकता के समर्थन में संबंधित दस्तावेज संलग्न करते हुए अपना लिखित बयान दाखिल किया। 04.06.2015 को कचेरीपेटी गांव पंचायत, बोंगाईगांव के सचिव द्वारा उसके पिता और उसके पति के साथ उसके संबंधों की पुष्टि करते हुए एक लिंकेज प्रमाण पत्र जारी किया गया। उसने अधिनियम धारा 9 के तहत अपने बोझ का निर्वहन करने के लिए दस्तावेजों के साथ अपना एफिडेविड-इन-चीफ दायर किया।

उसके भाई ने ट्रिब्यूनल के समक्ष एफिडेविट-इन-चीफ भी दायर किया, जिसमें कहा गया कि याचिकाकर्ता वास्तव में उसकी बहन है और याचिकाकर्ता की अपने पति से शादी की पुष्टि करती है। 07.06.2017 को ट्रिब्यूनल ने याचिकाकर्ता के दावे को खारिज कर दिया और माना कि उसने 25.03.1971 के बाद बांग्लादेश से अवैध रूप से भारत में प्रवेश किया था।

याचिकाकर्ता के खिलाफ उचित कदम उठाने के लिए ट्रिब्यूनल द्वारा उप आयोग, बोंगईगांव को निर्देश पारित किए गए, जिसमें मतदाता सूची से उसका नाम हटाना भी शामिल है। इस आदेश को गुवाहाटी हाईकोर्ट में चुनौती दी गई।

हाईकोर्ट ने याचिका को स्वीकार करते हुए याचिकाकर्ता को जमानत दे दी। 2018 में जब एनआरसी लिस्ट प्रकाशित हुई तो उसका नाम सूची से गायब था, जबकि उसके पूरे परिवार को भारतीय नागरिक घोषित किया गया था।

हाईकोर्ट ने 13.06.2019 को याचिका खारिज कर दी और रिट याचिका के प्रवेश के समय उसे दी गई अंतरिम जमानत समाप्त कर दी।

[केस टाइटल: लाल भानु @ मुस्ट लाल बानो बनाम भारत संघ और अन्य।]

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