सिर्फ मान्य दस्तावेज़ों पर ही हस्ताक्षर या लिखावट की जांच हो सकती है — सुप्रीम कोर्ट

Update: 2025-11-10 11:48 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 45 और धारा 73 को केवल स्वीकार किए गए दस्तावेज़ों के संदर्भ में ही हस्ताक्षर या हस्तलिपि की तुलना के उद्देश्य से लागू किया जा सकता है।

जस्टिस एम.एम. सुंदरेश और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की खंडपीठ ने यह टिप्पणी तेलंगाना हाईकोर्ट के एक आदेश को रद्द करते हुए की। हाईकोर्ट ने एक दीर्घकालिक भूमि विवाद मामले में प्रतिवादी को वादी के दस्तावेज़ की फॉरेंसिक जांच करवाने की अनुमति दी थी।

यह मामला लगभग 50 साल पुराने भूमि स्वामित्व विवाद से संबंधित था। प्रतिवादी ने 1975 के एक पुराने मुकदमे के परिणाम के आधार पर स्वामित्व की घोषणा के लिए दीवानी वाद दायर किया था। वहीं, अपीलकर्ता के परिवार ने उस पुराने मुकदमे में दायर एक लिखित बयान की प्रामाणिकता पर सवाल उठाते हुए आरोप लगाया कि उनके दादा के हस्ताक्षर जाली हैं।

मुकदमे की सुनवाई पूरी होने के बाद प्रतिवादियों ने उस दस्तावेज़ को हैंडराइटिंग एक्सपर्ट के पास भेजने के लिए आवेदन किया था ताकि हस्ताक्षर की जांच कराई जा सके। यह आवेदन भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 45 के तहत दाखिल किया गया था। ट्रायल कोर्ट ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी थी कि यह दस्तावेज़ दशकों पुराना है और जांच की पर्याप्त आवश्यकता नहीं है।

हालांकि, तेलंगाना हाईकोर्ट ने बाद में यह आदेश दिया कि “न्याय के हित में” उस दस्तावेज़ की फॉरेंसिक जांच कराई जाए।

मामला जब सुप्रीम कोर्ट पहुँचा तो पीठ ने धारा 45 और धारा 73 के सीमित दायरे पर जोर देते हुए कहा—

“घोषणा और निषेधाज्ञा से संबंधित वाद में वादी पर अपने मामले को साबित करने की जिम्मेदारी होती है। धारा 45 को धारा 73 के साथ पढ़ने पर यह स्पष्ट है कि इन धाराओं का उपयोग केवल स्वीकार किए गए दस्तावेज़ों के लिए हस्ताक्षर या हस्तलिपि की तुलना हेतु किया जा सकता है।”

सुप्रीम कोर्ट ने इस आधार पर अपील को स्वीकार करते हुए ट्रायल कोर्ट के उस आदेश को बहाल कर दिया, जिसमें फॉरेंसिक जांच की मांग को खारिज किया गया था।

Tags:    

Similar News