सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को तमिलनाडु, पुडुचेरी और पश्चिम बंगाल में SIR प्रक्रिया पर नोटिस जारी किया

Update: 2025-11-11 10:48 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को चुनाव आयोग (Election Commission of India) को नोटिस जारी किया है, जिसमें तमिलनाडु, पुडुचेरी और पश्चिम बंगाल में मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision - SIR) को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर जवाब मांगा गया है।

जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की खंडपीठ ने यह भी निर्देश दिया कि इन राज्यों और बिहार में SIR से संबंधित मामलों पर संबंधित हाईकोर्ट में चल रही याचिकाओं की सुनवाई को फिलहाल स्थगित (abeyance) रखा जाए। अदालत इस मामले की अगली सुनवाई 26 नवंबर 2025 को करेगी।

खंडपीठ ने आदेश में कहा —

“चूंकि यह अदालत पहले से ही बिहार, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और पुडुचेरी सहित विभिन्न राज्यों में SIR की वैधता से संबंधित मामलों की सुनवाई कर रही है, इसलिए संबंधित हाईकोर्ट्स से अनुरोध किया जाता है कि वे इन राज्यों में SIR से संबंधित किसी भी लंबित याचिका की कार्यवाही को स्थगित रखें।”

ये याचिकाएं द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK), कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी), पश्चिम बंगाल कांग्रेस की मोस्तारी बनू, और टीएमसी सांसद डोला सेन सहित कई राजनीतिक दलों और व्यक्तियों द्वारा दायर की गई हैं।

DMK का पक्ष

सुनवाई की शुरुआत में वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल, जो DMK सचिव आर.एस. भारती की ओर से पेश हुए, ने कहा कि कई राज्यों में एक समान समय पर SIR कराना अतार्किक है। उन्होंने बताया कि नवंबर-दिसंबर में तमिलनाडु में भारी बारिश और बाढ़ राहत कार्य चलते हैं, दिसंबर में क्रिसमस अवकाश होता है और जनवरी में पोंगल का त्यौहार, ऐसे में ग्रामीण क्षेत्रों में लोग अपने घरों पर नहीं होते, जिससे यह समय SIR के लिए सबसे अनुपयुक्त है।

सिब्बल ने कहा कि 27 अक्टूबर के चुनाव आयोग के आदेश ने पहले जारी जून के आदेश से भिन्न दिशा दी है, क्योंकि अब दस्तावेज़ केवल तब जमा करने होंगे जब इलेक्टोरल रजिस्ट्रेशन ऑफिसर (ERO) उनसे मांगे। इस पर न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा —

“जो भी कमी थी, आयोग ने उसे ठीक कर दिया है।”

सिब्बल ने आगे कहा कि ग्रामीण इलाकों में इंटरनेट कनेक्टिविटी नहीं है, इसलिए लोग ऑनलाइन दस्तावेज़ अपलोड नहीं कर पाएंगे।

इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने कहा —

“आप लोग इतने चिंतित क्यों हैं? उन्हें (आयोग को) यह करना ही होगा।”

सिब्बल ने पूछा —

“आखिर इतनी जल्दीबाजी क्यों?”

उन्होंने आगे कहा कि पश्चिम बंगाल में स्थिति और भी खराब है।

इस पर न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने टिप्पणी की —

“ऐसा लग रहा है जैसे यह पहली बार हो रहा है कि मतदाता सूची का पुनरीक्षण किया जा रहा है! हमें भी जमीनी हालात पता हैं।”

सिब्बल ने जवाब दिया कि पहले पुनरीक्षण वर्षों तक चलते थे, लेकिन इस बार केवल एक महीने का समय दिया गया है।

जस्टिस सूर्यकांत ने कहा —

“यह काम एक संवैधानिक संस्था कर रही है। यदि कोई प्रक्रिया संबंधी गलती होती है तो बताइए, उसे सुधारा जाएगा।”

चुनाव आयोग का पक्ष

सीनियर एडवोकेट राकेश द्विवेदी, जो चुनाव आयोग की ओर से पेश हुए, ने कहा —

“यह तो ऐसी स्थिति हो गई है कि अब राज्य यह साबित करने में लगे हैं कि कौन ज़्यादा पिछड़ा है।”

उन्होंने अदालत से आग्रह किया कि हाईकोर्ट्स को समान मामलों में हस्तक्षेप से रोका जाए, ताकि विरोधाभासी आदेश जारी न हों। अदालत ने इस पर सहमति जताई।

वहीं, AIADMK की ओर से अधिवक्ता बालाजी श्रीनिवासन ने कहा कि उनकी पार्टी ने SIR के समर्थन में एक आवेदन दायर किया है। उन्होंने आश्चर्य व्यक्त किया कि सत्तारूढ़ पार्टी (DMK) कह रही है कि तमिलनाडु के ग्रामीण इलाकों में इंटरनेट कनेक्टिविटी नहीं है।

अदालत ने सुझाव दिया कि यदि AIADMK SIR को किसी विशेष तरीके से कराना चाहती है, तो वह नई याचिका दायर करे।

बिहार का मामला

बिहार SIR को लेकर भी सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं लंबित हैं। याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया है कि चुनाव आयोग ने मतदाता सूची में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी की है और अवैध तरीके से नाम हटाए और जोड़े गए हैं। उन्होंने SIR की वैधता पर सवाल उठाया है।

सुप्रीम कोर्ट ने पहले आयोग को निर्देश दिया था कि आधार कार्ड को पहचान दस्तावेज़ के रूप में स्वीकार किया जाए और हटाए गए मतदाताओं के नाम सार्वजनिक किए जाएं।

तमिलनाडु का मामला

DMK, CPI(M) और कांग्रेस विधायक के. सेल्वापेरुंधागई ने तमिलनाडु SIR को चुनौती दी है।

DMK ने कहा कि अक्टूबर 2024 से जनवरी 2025 के बीच पहले ही एक स्पेशल समरी रिवीजन (SSR) किया जा चुका है और नई SIR के ज़रिए नागरिकता जांच जैसी शर्तें लगाई जा रही हैं, जो चुनाव आयोग का अधिकार नहीं है।

याचिका में कहा गया है कि यह प्रक्रिया नागरिकता अधिनियम, 1955 के तहत केवल केंद्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में आती है। आयोग द्वारा नागरिकता की जांच करना संविधान के अनुच्छेद 10, 14, 19, 21 और 326 का उल्लंघन है और यह मताधिकार व संघीय ढांचे को प्रभावित करता है।

वहीं, AIADMK ने SIR का समर्थन करते हुए कहा कि यह मतदान प्रक्रिया की पवित्रता बनाए रखने और फर्जी मतदाताओं को रोकने के लिए आवश्यक कदम है।

पश्चिम बंगाल का मामला

टीएमसी सांसद डोला सेन और पश्चिम बंगाल कांग्रेस ने SIR प्रक्रिया को चुनौती दी है, यह कहते हुए कि इससे मतदाताओं का बड़े पैमाने पर बहिष्कार हो सकता है।

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