सुप्रीम कोर्ट ने असम को SIR से छूट देने के खिलाफ याचिका पर चुनाव आयोग को नोटिस जारी किया
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को असम में 2026 विधानसभा चुनावों से पहले मतदाता सूची का केवल 'स्पेशल रिवीजन' कराने के निर्वाचन आयोग (ECI) के निर्णय को चुनौती देने वाली याचिका पर नोटिस जारी किया है। याचिका में दावा किया गया है कि असम को अन्य राज्यों की तुलना में जानबूझकर कम कठोर प्रक्रिया के तहत रखा गया है, जबकि राज्य लंबे समय से अवैध प्रवासियों की समस्या से जूझ रहा है।
चीफ जस्टिस सुर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्य बागची की खंडपीठ ने मामले की अगली सुनवाई अगले मंगलवार के लिए निर्धारित की।
याचिकाकर्ता की ओर से सिनियर एडवोकेट विजय हंसारिया ने अदालत को बताया कि अन्य राज्यों में जहां स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) चल रहा है, वहीं असम में केवल सामान्य विशेष पुनरीक्षण किया जा रहा है जिसमें मतदाताओं से नागरिकता, निवास या आयु संबंधी दस्तावेज़ जमा करने की आवश्यकता नहीं होती। हंसारिया के अनुसार, यह निर्णय असम की विशिष्ट परिस्थितियों के विपरीत है और इस राज्य को “अलग-थलग” कर देता है।
उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के कई पूर्व निर्णयों— जिनमें हालिया Section 6A Citizenship Act पर निर्णय और सरबानंद सोनोवाल मामले शामिल हैं— का हवाला देते हुए कहा कि न्यायालय ने स्वयं असम में घुसपैठ की गंभीरता को स्वीकार किया है।
उन्होंने यह भी बताया कि चुनाव आयोग ने पहले विभिन्न आदेशों और हलफनामों में कहा था कि स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन पूरे देश में लागू किया जाएगा, लेकिन असम में उससे अलग रुख अपनाया गया।
चीफे जस्टिस टिप्पणी की कि चुनाव आयोग ने संभवतः असम में प्रचलित विशेष कानूनों और विदेशी न्यायाधिकरणों की व्यवस्था को देखते हुए ऐसा निर्णय लिया हो सकता है। हालांकि, याचिकाकर्ता ने कहा कि आयोग द्वारा इस बारे में कोई आधिकारिक स्पष्टीकरण रिकॉर्ड पर नहीं दिया गया है। उन्होंने असम में चल रही प्रक्रिया पर रोक लगाने का अनुरोध किया, लेकिन अदालत ने ECI का पक्ष सुने बिना कोई अंतरिम आदेश जारी करने से इंकार कर दिया।
याचिका में उठाए गए प्रमुख मुद्दे
याचिका मृणाल कुमार चौधुरी, पूर्व अध्यक्ष—गुवाहाटी हाई कोर्ट बार एसोसिएशन, द्वारा दायर की गई है। इसमें कहा गया है कि—
बिहार, छत्तीसगढ़, गुजरात, केरल, मध्य प्रदेश, राजस्थान, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, गोवा और कई केंद्रशासित प्रदेशों में स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन चल रहा है।
इसके विपरीत, असम में केवल स्पेशल रिवीजन लागू किया गया है, जिसमें दस्तावेज़ सत्यापन की आवश्यकता नहीं होती।
जबकि असम के इतिहास और जनसांख्यिकी को देखते हुए कठोर सत्यापन प्रक्रिया अधिक आवश्यक है।
याचिका में 1997 की असम के राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल एस. के. सिन्हा की रिपोर्ट, पूर्व गृह मंत्री इंद्रजीत गुप्ता के बयान तथा सुप्रीम कोर्ट के पूर्व अवलोकनों का हवाला देते हुए कहा गया है कि असम में अवैध प्रवासियों की संख्या बड़ी है और मतदाता सूची के गलत पुनरीक्षण से चुनाव प्रक्रिया प्रभावित हो सकती है।
याचिका का आरोप है कि असम में बिना दस्तावेज़ सत्यापन के पुनरीक्षण होने से अयोग्य और गैर-नागरिक मतदाताओं के नाम मतदाता सूची में बने रहेंगे, जिससे आगामी विधानसभा चुनावों का परिणाम प्रभावित हो सकता है।