'याचिका अविवेकपूर्ण है' : सुप्रीम कोर्ट ने लिव-इन रिलेशनशिप के रजिस्ट्रेशन की मांग वाली याचिका खारिज की

Update: 2023-03-20 07:58 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक जनहित याचिका पर आश्चर्य व्यक्त किया, जिसमें लिव-इन रिलेशनशिप के अनिवार्य रजिस्ट्रेशन की मांग की गई थी।

सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ ने आश्चर्य जताया कि क्या याचिकाकर्ता वास्तव में अनिवार्य रजिस्ट्रेशन की मांग करके अपनी सुरक्षा की आड़ में लिव-इन रिलेशनशिप को रोकने की कोशिश कर रहा है।

सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ ने पूछा-

" यह क्या है? लोग यहां कुछ भी लेकर आते हैं? हम ऐसे मामलों पर जुर्माना लगाना शुरू कर देंगे। रजिस्ट्रेशन कहां होगा? केंद्र सरकार? केंद्र सरकार को लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाले लोगों से क्या लेना-देना?"

अदालत ने याचिका को "सिर्फ अविवेकपूर्ण याचिका" कहते हुए खारिज कर दिया।

याचिका एडवोकेट ममता रानी द्वारा दायर की गई थी और लिव-इन रिलेशनशिप के रजिस्ट्रेशन के लिए नियम बनाने के लिए केंद्र सरकार को निर्देश देने की प्रार्थना की गई थी।

याचिका में कहा गया,

" बार-बार यह माननीय न्यायालय लिव-इन पार्टनर्स का रक्षक रहा है और उसने कई निर्णय पारित किए हैं जो लिव-इन पार्टनरशिप के सदस्यों को सुरक्षा देने का प्रभाव डाल रहे हैं, चाहे वह महिलाएं हों, पुरुष हों या यहां तक ​​कि ऐसे रिश्ते से पैदा हुए बच्चे भी। "

याचिका में प्रस्तुत किया कि चूंकि लिव-इन पार्टनरशिप को कवर करने के लिए कोई नियम और दिशानिर्देश नहीं हैं, लिव-इन पार्टनर द्वारा किए गए अपराधों में भारी वृद्धि हुई है, जिसमें बलात्कार और हत्या जैसे प्रमुख अपराध शामिल हैं। इस संदर्भ में याचिका हाल के उन मामलों का हवाला देती है जहां महिलाओं को कथित रूप से उनके लिव-इन पार्टनर द्वारा मार दिया गया, जिसमें श्रद्धा वाकर मामला भी शामिल है।

याचिकाकर्ता के अनुसार, लिव-इन रिलेशनशिप के रजिस्ट्रेशन से दोनों लिव-इन भागीदारों को एक-दूसरे के बारे में और सरकार को भी उनकी वैवाहिक स्थिति, उनके आपराधिक इतिहास और अन्य प्रासंगिक विवरणों के बारे में सटीक जानकारी उपलब्ध होगी।

जनहित याचिका में न केवल लिव-इन रिलेशनशिप से संबंधित कानून बनाने की मांग की गई, बल्कि हमारे देश में लिव-इन रिलेशनशिप में शामिल लोगों की सही संख्या का पता लगाने के लिए केंद्र सरकार को एक डाटाबेस प्राप्त करने के लिए काम करने का निर्देश देने की भी मांग की गई। इसने तर्क दिया कि केवल लिव-इन पार्टनरशिप के रजिस्ट्रेशन को अनिवार्य बनाकर ही इसे प्राप्त किया जा सकता है।

याचिका के अनुसार, लिव-इन पार्टनरशिप को रजिस्टर्ड करने में केंद्र सरकार की विफलता संविधान के अनुच्छेद 19 और अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है।

केस टाइटल : ममता रानी बनाम भारत संघडब्ल्यूपी(सी) नंबर 315/2023 पीआईएल

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