सुप्रीम कोर्ट ने सीबीएसई, आईसीएसई और राज्य बोर्डों की कक्षा 10वीं और 12वीं की ऑफ़लाइन बोर्ड परीक्षा रद्द करने की मांग को लेकर दायर जनहित याचिका खारिज की
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को एक जनहित याचिका को खारिज कर दिया। इस याचिका में सभी राज्य बोर्डों, सीबीएसई और आईसीएसई द्वारा आयोजित की जाने वाली कक्षा 10वीं और 12वीं की ऑफ़लाइन परीक्षा रद्द करने की मांग की गई थी।
जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ ने यह कहते हुए याचिका को खारिज कर दिया कि यह "गलत और समय से पहले" है, क्योंकि अधिकारियों ने अभी तक परीक्षा आयोजित करने के संबंध में निर्णय नहीं लिया है।
पीठ ने कहा कि इस तरह राहत की मांग करने वाली जनहित याचिका गलत है। पीठ ने कहा कि परीक्षा के संबंध में अधिकारियों के फैसले यदि संबंधित नियमों के खिलाफ हैं तो पीड़ित छात्र इन्हें चुनौती दे सकते हैं।
पीठ ने आदेश में कहा,
"यदि अधिकारियों के निर्णय नियमों और अधिनियम के अनुसार नहीं हैं तो पीड़ित व्यक्ति उस संबंध में चुनौती देने के लिए स्वतंत्र होंगे।"
याचिकाकर्ता अनुभा श्रीवास्तव सहाय की ओर से पेश अधिवक्ता प्रशांत पद्मनाभन ने बोर्ड परीक्षाओं के वैकल्पिक मूल्यांकन के संबंध में अपनी याचिका में पिछले साल सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित आदेशों का हवाला देते हुए शुरुआत की।
पीठ ने कहा कि अतीत में जो हुआ वह वर्तमान राहत का आधार नहीं हो सकता।
वकील ने तब प्रस्तुत किया कि सीबीएसई ने दिसंबर, 2021 में एमसीक्यू में ऑफलाइन मोड में पहली बार परीक्षा आयोजित की। इसके परिणाम अभी तक प्रकाशित नहीं हुए। उन्होंने कहा कि अधिकांश राज्य बोर्डों ने भी परिणाम प्रकाशित नहीं किए हैं।
पीठ ने कहा कि पिछले साल हस्तक्षेप उस समय की महामारी की विशेष स्थिति के कारण था।
जस्टिस खानविलकर ने याचिका पर विचार करने के लिए अनिच्छा व्यक्त करते हुए कहा,
"ऐसी याचिकाएं छात्रों को झूठी उम्मीदें देती हैं। ऐसी याचिकाओं पर सुनवाई करने से सिस्टम में केवल भ्रम बढ़ रहा है। किस तरह की याचिकाएं दायर की जा रही हैं? अधिकारियों को निर्णय लेने दें। आप उस आदेश को चुनौती दे सकते हैं।"
यह देखते हुए कि याचिका "गलत और समय से पहले" है, क्योंकि अधिकारियों ने अभी तक परीक्षा के संचालन के संबंध में निर्णय नहीं लिया है, पीठ ने याचिका को खारिज कर दिया।
जस्टिस खानविलकर आदेश सुनाने के बाद कहा,
"इस तरह की याचिकाएं गुमराह करेंगी ... पिछले तीन दिनों से हम हर जगह समाचार देख रहे हैं। किस तरह की याचिकाएं दायर की जा रही हैं और उनका प्रचार किया जा रहा है? इसे रोकना होगा ... इससे भ्रम पैदा होगा।"
हालांकि पीठ ने कहा कि वह याचिकाकर्ता पर भारी जुर्माना लगाएगी, लेकिन अंत में उसने ऐसा करने से परहेज किया।
जस्टिस खानविलकर ने कहा,
"इसे रोकना होगा। फिर से मत आना वरना जुर्माना लगाया जाएगा। छात्रों और अधिकारियों को अपना काम करने दें। आप इस तरह की जनहित याचिका दायर नहीं कर सकते। जिसने भी दायर किया है हम उस याचिकाकर्ता के लिए कह रहे हैं।"
याचिका का विवरण
याचिका में कहा गया कि राज्य बोर्ड वर्तमान स्थिति पर मूकदर्शक बना रहा और दसवीं और बारहवीं के करोड़ों छात्रों की परीक्षा और अंतिम परिणाम घोषित करने के संबंध में समय पर निर्णय नहीं लिया।
बाल अधिकार कार्यकर्ता अनुभा श्रीवास्तव सहाय द्वारा किए जाने वाले आंतरिक मूल्यांकन से संतुष्ट नहीं होने वालों के लिए सुधार परीक्षा आयोजित करने में भी राहत मांगी गई।
सहाय ने अपनी याचिका में कम्पार्टमेंट के छात्रों सहित छात्रों के मूल्यांकन का फॉर्मूला तय करने और समय-सीमा के भीतर परिणाम घोषित करने के लिए एक समिति के गठन से राहत की भी मांग की।
याचिकाकर्ता ने यूजीसी को विभिन्न यूनिवर्सिटीज में प्रवेश की तिथि घोषित करने के लिए एक समिति गठित करने और बारहवीं कक्षा के उन छात्रों के मूल्यांकन के लिए एक सूत्र का गठन करने का निर्देश देने की भी प्रार्थना की है, जो एक योग्यता परीक्षा या कुछ अन्य परीक्षाएं आयोजित करके गैर-व्यावसायिक पाठ्यक्रमों में अपनी आगे की पढ़ाई करना चाहते हैं।
चूंकि मप्र सरकार 17 फरवरी से दसवीं और बारहवीं कक्षा के लिए बोर्ड परीक्षा शुरू कर रही थी, इसलिए मध्य प्रदेश सरकार को दसवीं और बारहवीं कक्षा के लिए बोर्ड परीक्षा आयोजित नहीं करने के निर्देश जारी करने के लिए तत्काल अंतरिम राहत की मांग भी वर्तमान रिट में की गई थी।
केस शीर्षक: अनुभा श्रीवास्तव सहाय बनाम भारत संघ और अन्य