सुप्रीम कोर्ट ने 269 रिटायर कर्मचारियों की पेंशन में कटौती रद्द करने के आदेश के खिलाफ HPCL की याचिका खारिज की

Update: 2024-11-20 04:00 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (19 नवंबर) को हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (HPCL) द्वारा बॉम्बे हाईकोर्ट के उस फैसले के खिलाफ दायर एसएलपी खारिज की, जिसमें 269 रिटायर कर्मचारियों के पेंशन लाभ को कम करने/बंद करने वाली दो अधिसूचनाओं को रद्द करने का फैसला सुनाया गया था।

जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की खंडपीठ ने कहा कि अधिसूचनाएं प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन किए बिना जारी की गई थीं।

खंडपीठ ने कहा,

“जैसा कि पहले उल्लेख किया गया, यह निर्णय 14 मार्च, 2016 को देरी से लिया गया। जहां तक ​​दूसरे पत्र का सवाल है, हम पाते हैं कि कुछ कर्मचारी वर्ष 1994 और 1995 में ही रिटायर हो गए। उनमें से कई ने वीआरएस ले लिया था। पेंशन लाभ का कुछ हिस्सा प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन किए बिना और उन्हें सुनवाई का अवसर दिए बिना वापस ले लिया गया। यही स्थिति 40 कर्मचारियों के साथ भी है, जो 14 मार्च 2016 के पहले पत्र के विषय हैं। अब याचिकाकर्ताओं को सुनवाई का अवसर देने के लिए निर्देश देने में बहुत देर हो चुकी है। इसके अलावा, यह मुद्दा केवल 269 रिटायर कर्मचारियों से संबंधित है। इसलिए पहले बताए गए सीमित आधारों पर हम संविधान के अनुच्छेद 136 के तहत अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करने के लिए इच्छुक नहीं हैं।

न्यायालय ने स्पष्ट किया कि यह निर्णय 269 रिटायर कर्मचारियों तक ही सीमित है। इसमें HPCL द्वारा उठाए गए किसी अन्य कानूनी प्रश्न का समाधान नहीं किया गया। विवाद HPCL की उन कार्रवाइयों से उत्पन्न हुआ, जिन्होंने अपने रिटायर कर्मचारियों की पेंशन पात्रता को पूर्वव्यापी रूप से बदल दिया। अधिसूचनाओं ने 15 जुलाई, 1974 के बाद HPCL या इसके पूर्ववर्ती में शामिल हुए 40 रिटायर कर्मचारियों और 28 जून, 1994 के बाद रिटायर हुए 229 अतिरिक्त कर्मचारियों को प्रभावित किया।

सुनवाई के दौरान, जस्टिस अभय ओक ने HPCL के कार्यों की आलोचना करते हुए कहा,

"इतने सालों के बाद ऐसा करना वह भी प्राकृतिक न्याय के प्राथमिक सिद्धांतों का पालन किए बिना... इस कार्रवाई के कारण एक व्यक्ति के जीवन का पूरा समीकरण गड़बड़ा जाता है।"

प्रभावित पेंशनभोगी उस समूह का हिस्सा थे, जिनके अधिकार HPCL और इसकी पूर्ववर्ती संस्थाओं, एस्सो और ल्यूब इंडिया लिमिटेड के लिए ऐतिहासिक रूप से प्रभावी पेंशन योजनाओं के तहत दिए गए। हाईकोर्ट ने 14 मार्च, 2016 को HPCL द्वारा जारी की गई दो अधिसूचनाओं को रद्द कर दिया था।

बॉम्बे हाईकोर्ट ने अपने 3 मई, 2019 के फैसले में फैसला सुनाया कि HPCL की अधिसूचनाएं पेंशन अधिकारों में मनमानी कटौती के बराबर हैं। न्यायालय ने पाया कि पेंशन लाभ कर्मचारी की संपत्ति पर मूल अधिकार है, न कि नियोक्ता की इच्छा से दिया गया इनाम या अनुग्रह भुगतान।

14 मार्च, 2016 की दो अधिसूचनाओं में निम्नलिखित को संबोधित किया गया:

1. 40 कर्मचारियों के लिए पेंशन लाभ वापस लेना: ये कर्मचारी 15 जुलाई, 1974 और 1 मई, 1975 के बीच HPCL में शामिल हुए। HPCL ने यह कहते हुए उनके पेंशन भुगतान को पूरी तरह से बंद कर दिया कि उन्हें गलत तरीके से ऐसे लाभ दिए गए।

2. 229 कर्मचारियों के लिए पेंशन लाभ में कमी: दूसरी अधिसूचना ने 28 जून, 1994 के बाद रिटायर हुए कर्मचारियों के लिए पेंशन भुगतान की पुनर्गणना की। उसे कम कर दिया, जिसमें 12000 रुपये प्रति वर्ष की पूर्वव्यापी सीमा लगाई गई। अखिल भारतीय उपभोक्ता मूल्य सूचकांक से जुड़ी महंगाई राहत सहित कुछ भत्ते हटा दिए गए।

केस टाइटल- हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड बनाम पेंशनर्स सोशल एंड वेलफेयर एसोसिएशन

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