सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट की उनके खिलाफ दर्ज आपराधिक मामला रद्द करने की मांग वाली याचिका खारिज की
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट (IPS Sanjiv Bhatt) की उनके खिलाफ दर्ज आपराधिक मामला रद्द करने की मांग वाली याचिका खारिज कर दी।
बता दें, गुजरात हाईकोर्ट ने भट्ट के खिलाफ दर्ज शिकायत को रद्द करने से इनकार कर दिया था। इसी फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की गई थी।
पीठ ने विशेष अनुमति याचिका का निपटारा कर दिया और अपने आदेश में कहा कि उन्हें मामले में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं मिला।
पीठ ने कहा,
"याचिकाकर्ता आरोपी को तलब करने के मजिस्ट्रेट के आदेश और उच्च न्यायालय द्वारा पारित फैसले और आदेश को देखने के बाद, हमें उच्च न्यायालय के फैसले और आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं दिखता है।"
पूर्व आईपीएस भट्ट और उनके सहयोगियों पर 1990 एक मामले में अवैध हिरासत और हिरासत में यातना का आरोप लगाया है और तीन शिकायतें दर्ज की गईं थी। ये तीन उन 133 लोगों में से थे जिन्हें हिरासत में लिया गया था और फिर रिलीज़ किए गए। जामनगर में मजिस्ट्रेट ने संजीव भट्ट के खिलाफ समन जारी किया था।
मजिस्ट्रेट द्वारा जारी किए गए समन को गुजरात उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई थी जहां दो शिकायतों को खारिज कर दिया गया था, लेकिन उच्च न्यायालय ने तीसरी शिकायत को यह कहते हुए खारिज करने से इनकार कर दिया कि पहली दो शिकायतों के शिकायतकर्ता विधानसभा के सदस्य थे लेकिन तीसरा नहीं था।
संजीव भट्ट की ओर से पेश हुए वकील ने अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया कि न्यायालय को न्यायिक अनुशासन का पालन करना चाहिए जब अदालत ने दो शिकायतों को खारिज करने की अनुमति दी थी, तो तीसरी याचिका को रद्द कर देना चाहिए था जब सबूत समान रहे।
वकील ने तर्क दिया,
"मामले का तथ्य शिकायतों को पढ़ने में है और देखें कि क्या कोई असमानता है। वे एक ही शिकायतें हैं और गिरफ्तारी के सवाल पर विचार नहीं किया जा सकता है।"
संजीव भट्ट के वकील द्वारा यह प्रस्तुत किया गया कि यदि उच्च न्यायालय के आदेश को बरकरार रखा जाता है तो यह अपने कर्तव्यों का पालन करने वाले पुलिस अधिकारियों के लिए एक बुरी मिसाल कायम करेगा।
वकील ने दलील दी कि,
''इस मामले में राज्य का कोई लेना-देना नहीं है। मुझे जेल में रखकर राज्यों का अनुचित हित पूरा किया जा रहा है।''
कोर्ट ने सभी मामलों को सुनने के बाद फैसला किया कि उनके लिए इस मामले में और हाईकोर्ट के आदेश में दखल देना जरूरी नहीं है।
संजीव भट्ट बनाम गुजरात राज्य - एसएलपी सीआरएल 7186/2022