सुप्रीम कोर्ट ने आदेश अपलोड होने की तारीख का पता लगाने के लिए हाईकोर्ट जज के सचिव की स्टेनो बुक जब्त करने का निर्देश दिया
एक असामान्य घटनाक्रम में सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट जज के सचिव की स्टेनो बुक जब्त करने का आदेश दिया ताकि यह पता लगाया जा सके कि आदेश कब अपलोड किया गया, कब टाइप किया गया, कब उसमें सुधार किया गया और कब अपलोड किया गया। साथ ही कोर्ट ने इस संबंध में राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (NIC) से रिपोर्ट मांगी।
जस्टिस जेके माहेश्वरी और जस्टिस विजय बिश्नोई की खंडपीठ ने यह असामान्य आदेश तब पारित किया, जब हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल यह स्पष्ट रूप से नहीं बता पाए कि आदेश कब अपलोड किया गया, क्योंकि जज के सचिव ने इस संबंध में कोई जवाब नहीं दिया।
खंडपीठ 16 अगस्त को दायर विशेष अनुमति याचिका पर विचार कर रही थी, जिसमें पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट द्वारा अग्रिम जमानत खारिज करने के आदेश को चुनौती दी गई। यह याचिका 31 जुलाई को पारित आदेश की प्रति के बिना इस आधार पर दायर की गई कि इसे वेबसाइट पर अपलोड नहीं किया गया।
हाईकोर्ट द्वारा आदेश अपलोड न किए जाने पर गौर करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 20 अगस्त को हाईकोर्ट के अटॉर्नी जनरल से रिपोर्ट मांगी।
अटॉर्नी जनरल की रिपोर्ट में कहा गया कि 20 अगस्त को जज के सचिव से स्पष्टीकरण मांगा गया। सचिव ने दो दिन बाद जवाब दिया।
इस दृष्टिकोण की आलोचना करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा,
"इस प्रकार, इस मामले में जल्द से जल्द रिपोर्ट देने के लिए तत्काल कार्रवाई नहीं की गई।"
न्यायालय ने यह भी कहा,
"सेक्रेटरी ने आदेश अपलोड होने के समय कोई जवाब नहीं दिया, सिवाय इसके कि माननीय जज 01.08.2025 से 20.08.2025 के बीच कुछ मेडिकल प्रक्रिया और सर्जरी से गुज़र रहे थे।"
हालांकि, न्यायालय ने यह भी नोट किया कि आदेश 20 अगस्त के बाद अपलोड किया गया था।
इस संदर्भ में, न्यायालय ने कहा,
"ऐसा प्रतीत होता है कि विवादित आदेश 31 जुलाई, 2025 को पारित नहीं किया गया, बल्कि वास्तव में यह इस न्यायालय के आदेश के बाद पारित किया गया।"
न्यायालय ने आगे आदेश दिया,
"हालांकि, सेक्रेटरी की स्टेनो बुक जब्त की जाए और यह पता लगाया जाए कि आदेश किस तारीख को टाइप किया गया और पी.सी. पर सही किया गया। विवेकपूर्ण जांच की जाए और टाइपिंग व अपलोडिंग के संबंध में NIC से पी.सी. की रिपोर्ट प्राप्त की जाए और उसे हलफनामे पर दाखिल किया जाए।"
याचिकाकर्ता के संबंध में न्यायालय ने उसे अंतरिम राहत दी कि जाँच में सहयोग करने की शर्त पर उसके विरुद्ध FIR में कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जाए।
पिछले सप्ताह जस्टिस माहेश्वरी की अध्यक्षता वाली पीठ ने आरक्षित मामलों में हाईकोर्ट द्वारा निर्णय सुनाने में की जा रही देरी पर क्षोभ व्यक्त करते हुए एक निर्णय सुनाया था। न्यायालय ने कहा कि यदि आरक्षित मामलों के तीन महीने के भीतर निर्णय नहीं सुनाया जाता तो न्यायालय के महापंजीयक को मामले को चीफ जस्टिस के समक्ष प्रस्तुत करना होगा, जो इसे किसी अन्य पीठ को सौंप देंगे।
Case : AJAY MAINI v. STATE OF HARYANA & ORS. |Diary No. 45855/2025