सुप्रीम कोर्ट ने 1 जनवरी 2016 से न्यायिक वेतन आयोग की सिफारिशों के अनुसार न्यायिक अधिकारियों के वेतन वृद्धि का निर्देश दिया

Update: 2022-07-27 08:35 GMT

सुप्रीम कोर्ट

न्यायिक अधिकारियों (Judicial Officers) के वेतन ढांचे में संशोधन की जरूरत पर जोर देते हुए सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने बुधवार को दूसरे राष्ट्रीय न्यायिक वेतन आयोग की सिफारिशों के अनुसार 1 जनवरी 2016 से बढ़ा हुआ वेतनमान लागू करने का आदेश दिया।

भारत के चीफ जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस कृष्ण मुरारी औ जस्टिस हेमा कोहली की पीठ ने केंद्र और राज्यों को अधिकारियों को 3 किस्तों में बकाया भुगतान करने का निर्देश दिया - 3 महीने में 25%, अगले 3 महीनों में 25% और शेष राशि का भुगतान 30 जून 2023 तक।

कोर्ट ने यह भी कहा कि वेतन संरचना में तुरंत संशोधन करना अनिवार्य है क्योंकि न्यायिक अधिकारी राज्य और केंद्र द्वारा गठित वेतन आयोग के दायरे में नहीं आते हैं।

पीठ ने अपने आदेश में कहा,

"वास्तव में, कुछ राज्यों में सरकारी कर्मचारियों के वेतनमान 5 साल में एक बार और केंद्र सरकार में 10 साल में एक बार बढ़ाए जाते हैं। न्यायिक अधिकारी राज्य और केंद्र द्वारा गठित वेतन आयोग द्वारा कवर नहीं किए जाते हैं। इसलिए वेतन संरचना को तुरंत संशोधित करने की आवश्यकता है।"

जिला न्यायपालिका के न्यायाधीशों की सेवा शर्तों की समीक्षा के लिए अखिल भारतीय न्यायिक आयोग के गठन के लिए अखिल भारतीय न्यायाधीश संघ की याचिका पर विचार करते हुए शीर्ष न्यायालय द्वारा निर्देश जारी किए गए थे।

6 जनवरी, 2022 को कोर्ट ने कहा था कि अधीनस्थ न्यायपालिका के वेतनमान और अन्य पेंशन/सेवानिवृत्त लाभों से संबंधित दो मुद्दे विचार के लिए लंबित हैं।

दूसरे राष्ट्रीय न्यायिक वेतन आयोग का गठन सुप्रीम कोर्ट द्वारा 2017 में पूरे देश में अधीनस्थ न्यायपालिका से संबंधित न्यायिक अधिकारियों के वेतनमान और अन्य शर्तों की समीक्षा के लिए किया गया था।

जस्टिस जे चेलमेश्वर और जस्टिस अब्दुल नजीर की खंडपीठ ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस पीवी रेड्डी को आयोग का अध्यक्ष और केरल हाईकोर्ट के पूर्व जस्टिस और सुप्रीम कोर्ट के सीनियर वकील आर.बसंत को सदस्य नियुक्त किया था।

कोर्ट रूम एक्सचेंज

एमिकस क्यूरी और एडवोकेट के परमेश्वर ने सुनवाई में कहा कि दूसरे राष्ट्रीय न्यायिक वेतन आयोग की सिफारिशों के अनुसार न्यायाधीश संशोधित वेतनमान के हकदार हैं।

उन्होंने आगे धन की कमी के आधार पर अधिकारियों को संशोधित वेतन का भुगतान करने के लिए राज्यों द्वारा इनकार को "अन्यायपूर्ण" करार दिया।

उन्होंने यह भी कहा कि इससे पहले शीर्ष न्यायालय ने देश भर में कार्यरत और सेवानिवृत्त सभी न्यायिक अधिकारियों के वेतनमान का निर्धारण करने के लिए जस्टिस ई पद्मनाभन की अध्यक्षता में एक समिति नियुक्त की थी जिसने संशोधन की सिफारिश की थी।

यह भी कहा,

"सभी राज्यों की यह आपत्ति कि उनके पास न्यायिक अधिकारियों को भुगतान करने के लिए पैसे नहीं हैं, अन्यायपूर्ण है।"

वकील ने यह तर्क देते हुए आगे प्रस्तुत किया कि अदालत ने न्यायिक अधिकारियों की सभी श्रेणियों/रैंकों के लिए उपार्जित वेतन वृद्धि के साथ मूल वेतन वृद्धि के 30% की सीमा का भुगतान करने का निर्देश देकर अंतरिम राहत दी।

एमिकस क्यूरी की दलीलों पर विचार करते हुए, भारत के चीफ जस्टिस एनवी रमना ने 2016 से संशोधित वेतनमान के कार्यान्वयन के लिए अपना झुकाव व्यक्त किया।

CJI ने टिप्पणी की,

"हम अंतहीन इंतजार नहीं करने जा रहे हैं और इसमें 6.5 साल की देरी है। 2016 से वे इंतजार कर रहे हैं। जहां तक वेतनमान का सवाल है, हम इसे लागू कर रहे हैं।"

पीठ ने आदेश दिया,

"हमारा विचार है कि तालिका 1 में इंगित वेतन संरचना का संशोधन स्वीकार किया जाएगा। इसे 01.01.2016 से लागू किया जाएगा। न्यायिक अधिकारियों को 30% की अंतरिम राहत प्रदान की गई है। इसलिए, बकाया राशि अंतरिम राहत को समायोजित करके गणना की जाएगी और शेष 25% नकद में 3 महीने की अवधि के भीतर और दूसरा 3 महीने की अवधि के भीतर भुगतान किया जाएगा, शेष 50% 2023 की पहली तिमाही में भुगतान किया जाएगा।"

केस टाइटल: ऑल इंडिया जज एसोसिएशन बनाम भारत संघ और अन्य

Tags:    

Similar News