जमानत देने के आदेश के बावजूद आरोपी को रिहा नहीं करने पर सुप्रीम कोर्ट ने न्यायिक अधिकारी की निंदा की

Update: 2022-05-24 02:15 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक न्यायिक अधिकारी के कृत्य की निंदा की, जिसने एक आरोपी को रिहा करने से इनकार कर दिया।

आरोपी के खिलाफ आईपीसी की धारा 498 ए, 304 बी और दहेज निषेध अधिनियम की धारा 3/4 के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी और कोर्ट ने उसकी रिहाई का निर्देश दिया था।

न्यायिक अधिकारी ने इस बहाने आरोपी को रिहा करने से इनकार कर दिया कि आदेश में आईपीसी की धारा 304 बी और धारा 498 ए के तहत आरोपों का उल्लेख है, लेकिन इसमें दहेज निषेध अधिनियम की धारा 3/4 का उल्लेख नहीं है।

जस्टिस एसके कौल और जस्टिस एमएम सुंदरेश की बेंच ने अपने आदेश में कहा,

"हमें उन प्रावधानों को आदेश में जोड़ने में कोई झिझक नहीं है, लेकिन न्यायिक अधिकारी के आचरण की सराहना नहीं करते हैं, जिससे इस न्यायालय के आदेशों के बावजूद अपीलकर्ता को रिहा नहीं किया।

हम केवल यह जोड़ सकते हैं कि दिसंबर 2021 से केवल एक गवाह की ट्रायल कोर्ट द्वारा जांच की गई और यह ट्रायल कोर्ट की चिंता का विषय होना चाहिए था, बजाए इसके जो उसने उठाया है।"

बेंच ने 17 मई, 2022 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के आरोपी को जमानत देने से इनकार करने के आदेश के खिलाफ दायर आपराधिक अपील पर विचार करते हुए कहा था,

"पक्षकारों के विद्वान वकील को सुनने के बाद हम निचली अदालत की संतुष्टि के लिए नियम और शर्तों पर अपीलकर्ता को जमानत देते हैं।"

पीठ ने आरोपी को इस तथ्य से अवगत कराने के बाद जमानत दी थी कि आरोप आईपीसी की धारा 304 बी और आईपीसी की धारा 498 ए के तहत हैं और अपीलकर्ता अक्टूबर, 2020 से हिरासत में है।

वकील ने आगे तर्क दिया कि आरोप पत्र दिसंबर 2021 में दायर किया गया था और अभी तक केवल एक गवाह का परीक्षण किया गया है, जबकि अभियोजन पक्ष ने 64 गवाहों का हवाला दिया था।

केस टाइटल: गोपाल वर्मा बनाम स्टेट ऑफ यूपी| 2022 की आपराधिक अपील 819

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