सुप्रीम कोर्ट ने ओडिशा में न्यायिक अधिकारी के खिलाफ विभागीय कार्यवाही रद्द की

Update: 2023-06-02 14:33 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में ओडिशा में एक सेवानिवृत्त न्यायिक अधिकारी के खिलाफ दायर चार्जशीट को खारिज कर दिया। सेवानिवृत्त न्यायिक अधिकारी कार्यवाहकों के चयन की प्रक्रिया में की गई कथित अनियमितताओं के लिए विभागीय कार्यवाही का सामना कर रहे थे।

जस्टिस बेला त्रिवेदी और जस्टिस अजय रस्तोगी की पीठ ने आगे कहा कि न्यायिक अधिकारी सभी सेवानिवृत्ति लाभों के हकदार हैं।

यह मुद्दा तब उठा जब ओडिशा के एक सेवानिवृत्त न्यायिक अधिकारी ने चार्जशीट के अनुसार उसके खिलाफ शुरू की गई विभागीय कार्यवाही को रद्द करने के लिए एक रिट याचिका के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

उक्त न्यायिक अधिकारी ने 28.06.2012 से 01.10.2015 की अवधि के लिए ओडिशा प्रशासनिक न्यायाधिकरण के रजिस्ट्रार के रूप में कार्य किया। रजिस्ट्रार के रूप में उनकी सेवा के दौरान, 'केयरटेकर' के पद के लिए एक विज्ञापन प्रकाशित किया गया, जिसके अनुसार चयन किया गया और बाद में उपयुक्त उम्मीदवारों की नियुक्ति की जाने लगी। चयन प्रक्रिया को ओडिशा प्रशासनिक न्यायाधिकरण के समक्ष चुनौती दी गई थी जिसे खारिज कर दिया गया। उक्त चुनौती को भी बाद में हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया था।

न्यायिक अधिकारी की सेवानिवृत्ति के ठीक दो दिन पहले उन्हें चयन प्रक्रिया में हुई कथित अनियमितता के लिए एक पत्र जारी किया गया था और बाद में उनके खिलाफ आरोप पत्र दायर किया गया।

याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि चूंकि वह ओडिशा सिविल सेवा (पेंशन) नियम, 1992 के नियम 7 के तहत सेवा से सेवानिवृत्त हुई थीं, सरकार की मंजूरी के साथ उनके (एक सेवानिवृत्त अधिकारी) के खिलाफ शुरू की गई विभागीय जांच उस घटना के संबंध में नहीं होगी, जो ऐसी संस्था से चार साल से अधिक समय पहले हुई हो। उन्होंने प्रस्तुत किया कि चार्जशीट में दर्शाए गए आरोप चार साल की अवधि से पहले के थे।

इसके विपरीत, प्रतिवादियों ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता को उनकी सेवानिवृत्ति से पहले नोटिस जारी किया गया और चार्जशीट उक्त नोटिस की निरंतरता में है। इस प्रकार, नियम 7 के अंतर्गत प्रतिबंध लागू नहीं होगा।

अदालत ने पाया कि आरोप पत्र नियम 1992 के नियम 7 के शासनादेश का स्पष्ट उल्लंघन है। तदनुसार आरोप पत्र और अधिकारी के खिलाफ शुरू की गई अन्य परिणामी विभागीय कार्यवाही को रद्द कर दिया गया।

कोर्ट ने आगे कहा-

" याचिकाकर्ता सभी टर्मिनल/सेवानिवृत्त लाभों की हकदार हैं यदि उन्हें विभागीय जांच के लंबित रहने के कारण रोका गया है। साथ ही टर्मिनल/सेवानिवृत्त लाभ रोके जाने की तिथि से 9% प्रति वर्ष की दर से ब्याज के साथ में भुगतान किया जाए। "

केस टाइटल : सुचिस्मिता मिश्रा बनाम उड़ीसा हाईकोर्ट व अन्य | डब्ल्यूपी (सी) नंबर 1042/2021

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