सुप्रीम कोर्ट ने निजी स्कूलों को फीस में 20 प्रतिशत तक कमी करने के कलकत्ता हाईकोर्ट के निर्देशों पर रोक लगाने से इनकार किया
सुप्रीम कोर्ट ने निजी स्कूलों को फीस में कम से कम 20 प्रतिशत कमी करने के कलकत्ता हाईकोर्ट के निर्देशों पर रोक लगाने से इनकार किया
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कलकत्ता हाईकोर्ट द्वारा पारित निर्देशों पर रोक लगाने से इनकार कर दिया, जिसके तहत निजी स्कूलों को फीस में कम से कम 20 प्रतिशत की कमी करने और वित्तीय वर्ष 2020-21 में शुल्क वृद्धि नहीं करने का निर्देश दिया गया था।
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के उन निर्देशों में भी हस्तक्षेप नहीं किया, जिनमें कहा गया था कि स्कूलों को गैर-आवश्यक सेवाओं (जैसे प्रयोगशाला, शिल्प, खेल सुविधाएं या अतिरिक्त गतिविधियों) के लिए शुल्क नहीं देना चाहिए, जिनका उपयोग छात्र नहीं कर रहे हैं। हाईकोर्ट ने यह भी कहा था कि वर्तमान वित्तीय वर्ष के लिए, खर्च पर राजस्व की अधिकतम पांच प्रतिशत अधिक राशि ही स्कूलों के लिए अनुमन्य होगी।
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने 8 अक्टूबर को दिए गए हाईकोर्ट के फैसले के पैरा 61 में दिए गए निर्देश संख्या 8 से 16 के संचालन पर रोक लगा दी। इन निर्देशों के अनुसार, हाईकोर्ट ने खातों के ऑडिट के लिए एक समिति के गठन का आदेश दिया था। ऑडिट किए गए वित्तीय विवरणों के आधार पर स्कूलों को फीस में और कमी या माफी के लिए माता-पिता के आवेदन पर विचार करने का निर्देश दिया गया था।
जस्टिस अशोक भूषण, आर सुभाष रेड्डी और एमआर शाह की पीठ ने हाईकोर्ट के निर्देशों के खिलाफ दायर याचिकाओं के एक बैच पर उक्त फैसला दिया। पीठ ने कहा कि मामले को विस्तार से सुनने की आवश्यकता है।
हाईकोर्ट का फैसला जस्टिस संजीब बनर्जी और मौसमी भट्टाचार्य की खंडपीठ ने दिया था, जिन्होंने फैसले में कहा था कि "स्कूलों को सामान्य दर पर फीस वसूलने की की अनुमति देना निर्धारित न्यायिक सीमा से परे अन्यायपूर्ण संवर्धन को लाइसेंस देना होगा।"
हाईकोर्ट ने आगे कहा कि लॉकडाउन के कारण स्कूलों ने कम खर्च किया है।
हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सीनियर एडवोकेट डॉ अभिषेक मनु सिंघवी ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दलील दी कि हाईकोर्ट ने निजी स्कूलों को फीस कम करने का निर्देश देकर संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत प्रदत्त शक्तियों की अवहेलना की है।
उन्होंने कहा, "हाईकोर्ट सुपर-रेगुलेटरी अथॉरिटी की तरह कार्य नहीं कर सकता है।"
उन्होंने स्कूलों के खातों के ऑडिट के करने लिए एक समिति का गठन करने के हाईकोर्ट के फैसले को भी अनुचित बताया। डॉ सिंघवी ने बताया कि हाईकोर्ट ने समिति में याचिकाकर्ता के वकील को भी शामिल किया है।
सिंघवी ने तर्क दिया कि टीएमए पाई, पीए इनामदार और इस्लामिक एजुकेशन सोसाइटी मामलों में दिए गए फैसलों के अनुसार, अदालतें निजी शैक्षणिक संस्थानों की फीस विनियमित नहीं कर सकती हैं।
हाईकोर्ट के आदेश ने पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा जारी परिपत्र को प्रभावी रूप से रद्द कर दिया है, जिसमें स्कूलों को अपनी सेवाओं के लिए आनुपातिक शुल्क वसूलने की अनुमति दी गई थी; सिंघवी ने कहा कि न्यायालय ने परिपत्र को नहीं रद्द किया है या इसमें कोई असंवैधानिकता नहीं पाई है।
एक अन्य याचिकाकर्ता-स्कूल की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने कहा कि हाईकोर्ट प्रत्येक स्कूल की स्थितियों को ध्यान में रखे बिना एक सामान्य आदेश पारित नहीं कर सकता। फीस में 20 प्रतिशत तक की कमी करने के आदेश के लिए कोर्ट के सामने कोई तथ्यात्मक सामग्री नहीं थी।
पीठ ने हालांकि फीस में कटौती के मामले में हस्तक्षेप करने से इनकार किया। जस्टिस एमआर शाह ने सिंघवी को बताया कि टीएमए पाई के समय COVID नहीं था।",
जस्टिस शाह ने आगे कहा, "जब आप स्कूल शारीरिक गतिविधियां नहीं हो रही हैं, तो आप खेल सुविधाओं, प्रयोगशाला आदि के लिए शुल्क कैसे ले सकते हैं?"