PC-PNDT मामलों में बरी किए गए लोगों को चुनौती न देने पर सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों की आलोचना की

Update: 2025-09-10 05:17 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने सवाल उठाया कि राज्य गर्भधारण पूर्व और प्रसव पूर्व निदान तकनीक (लिंग चयन निषेध) अधिनियम के मामलों में अपराधियों को बरी किए जाने के खिलाफ अपील क्यों नहीं दायर कर रहे हैं।

जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस आर महादेवन की खंडपीठ जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें प्रसव पूर्व निदान तकनीक (लिंग चयन निषेध) नियम, 1966 के नियम 18ए(5)(vi) का कड़ाई से पालन करने का निर्देश देने की मांग की गई। यह नियम बरी किए जाने के आदेश के मामले में हाईकोर्ट में अपील, पुनर्विचार या अन्य कार्यवाही के लिए तत्काल कार्रवाई का आदेश देता है, जो आदेश प्राप्त होने के 30 दिनों के भीतर लेकिन 15 दिनों के बाद नहीं होनी चाहिए।

इस मामले में अंतिम प्रभावी आदेश सितंबर, 2024 में पारित किया गया, जब न्यायालय ने राज्यों से 1 जनवरी, 2015 के बाद के आंकड़ों के साथ जवाब मांगा। इसमें बरी किए गए उन मामलों की संख्या दर्शाई गई, जिनमें प्राधिकारियों द्वारा "अपील, पुनर्विचार या अन्य कार्यवाही" दायर की गई।

सीनियर एडवोकेट संजय पारिख ने न्यायालय को सूचित किया कि सितंबर के आदेश के अनुसार, 5 राज्यों ने अपना जवाब दाखिल नहीं किया। कुछ राज्यों द्वारा दायर हलफनामों के आधार पर सीनियर एडवोकेट ने प्रस्तुत किया कि संक्षेप में यह दावा किया गया कि संबंधित प्रावधान निर्देशिका प्रकृति का है, अनिवार्य नहीं।

पारिख ने आग्रह किया,

"बरी किए गए मामलों की संख्या अनगिनत है, लेकिन अपीलें आदि... यही एकमात्र तरीका है, जिससे अधिनियम को लागू किया जा सकता है... यह केंद्रीय प्रावधान है।"

जस्टिस नागरत्ना ने पूछा,

"वे बरी किए गए मामलों के खिलाफ अपील क्यों नहीं दायर कर रहे हैं?"

पारिख ने उत्तर दिया कि कुछ बेहद चौंकाने वाले मामले होने के बावजूद कोई कारण नहीं बताया गया।

उनकी बात सुनते हुए जस्टिस नागरत्ना ने टिप्पणी की कि बरी होना खराब अभियोजन का नतीजा है। अधिकारी अपील दायर न करके इसे छुपाने की कोशिश करते हैं। अंततः, न्यायालय ने अनुपालन न करने वाले राज्यों को अपना जवाब दाखिल करने के लिए 4 सप्ताह का समय दिया।

जस्टिस नागरत्ना ने चेतावनी दी,

"हम जुर्माना नहीं लगा रहे हैं, लेकिन अगली बार हम जुर्माना लगा सकते हैं।"

खंडपीठ ने मामले में सहायता के लिए पारिख को न्यायमित्र भी नियुक्त किया।

यह जनहित याचिका एडवोकेट शोभा गुप्ता (और एक अन्य) द्वारा दायर की गई। याचिका में दावा किया गया कि कुछ राज्य संबंधित नियम के अनुसार अपील दायर नहीं कर रहे हैं। आंकड़ों का हवाला देते हुए इसमें नियम 18ए(5)(vi) का उल्लंघन करने वाले अपराधियों के खिलाफ PNDT Act की धारा 25 के तहत दंड/जुर्माना शुरू करने के लिए उपयुक्त अधिकारियों को निर्देशंदेने की मांग की गई।

भारत संघ, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, गुजरात, झारखंड, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली, राजस्थान, जम्मू और कश्मीर, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, पंजाब, असम, पश्चिम बंगाल, नागालैंड, हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, आंध्र प्रदेश, केरल, तमिलनाडु और बिहार को प्रतिवादी बनाया गया।

भारत संघ ने यह रुख अपनाया कि नियम 18-ए(5)(vi) का पालन न होने पर वह कदम उठाने के लिए बाध्य है। हालांकि, इसका कार्यान्वयन राज्यों के हाथ में है।

Case Title: SHOBHA GUPTA AND ANR. v. UNION OF INDIA AND ORS., W.P.(C) No. 301/2022

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