सुप्रीम कोर्ट ने प्रशांत भूषण और तरुण तेजपाल के खिलाफ 2009 का अवमानना ​​मामला बंद किया

Update: 2022-08-30 06:04 GMT

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने मंगलवार को एडवोकेट प्रशांत भूषण (Prashant Bhushan) के खिलाफ 2009 में तहलका पत्रिका को दिए गए उनके इंटरव्यू में अवमानना ​​के मामले को बंद कर दिया। इस इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि भारत के 16 पूर्व मुख्य न्यायाधीश भ्रष्ट हैं।

जस्टिस इंदिरा बनर्जी, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एम एम सुंदरेश की पीठ ने अवमानना ​​करने वालों की माफी के मद्देनजर अवमानना ​​की कार्यवाही बंद कर दी।

भूषण की ओर से पेश हुए सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने कहा कि वह पहले ही माफी मांग चुके हैं। उन्होंने पूछा है कि क्या "मामले को आगे बढ़ाकर कीचड़ उछालना" आवश्यक है।

पीठ ने आदेश में कहा,

"अवमानना करने वालों द्वारा मांगी गई माफी के मद्देनजर हम मामले को जारी रखना जरूरी नहीं समझते हैं।"

इस मामले की शुरुआत 2009 में हुई थी। कोर्ट ने इस मामले में सीनियर एडवोकेट हरीश साल्वे को एमिक्स क्यूरी नियुक्त किया था। लंबे समय से निष्क्रिय पड़ा यह मामला 2020 में पुनर्जीवित हो गया, जब इसे भूषण के खिलाफ उनके कुछ ट्वीट्स पर 2020 में अवमानना ​​के मामले के साथ पोस्ट किया गया।

मामले की सुनवाई करते हुए भूषण ने तहलका इंटरव्यू के संबंध में निम्नलिखित बयान जारी किया:

"2009 में तहलका को दिए अपने इंटरव्यू में मैंने भ्रष्टाचार शब्द का व्यापक अर्थ में उपयोग किया था। इसका अर्थ है औचित्य की कमी। मेरा मतलब केवल वित्तीय भ्रष्टाचार या कोई आर्थिक लाभ प्राप्त करना नहीं था। अगर मैंने जो कहा है उससे उनमें से किसी को या उनके परिवार में से किसी को कोई ठेस पहुंची है तो मुझे इसका खेद है। मैं बिना शर्त यह कहता हूं कि मैं न्यायपालिका की संस्था और विशेष रूप से सुप्रीम कोर्ट का समर्थन करता हूं, जिसका मैं हिस्सा हूं। न्यायपालिका की प्रतिष्ठा को कम करने का कोई इरादा नहीं था। इसमें मुझे पूरा विश्वास है। मुझे खेद है कि मेरे इंटरव्यू को अवमानना करने के रूप में गलत तरीके से समझा गया, विशेष रूप से सुप्रीम कोर्ट की प्रतिष्ठा को कम करने के उद्देश्य से, मेरा ऐसा करने का कोई इरादा कभी भी नहीं हो सकता।"

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