दिव्यांग अधिवक्ताओं को बार काउंसिल चुनावों में आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट का जोर, BCI से परामर्श कर प्रस्ताव लाने को कहा

Update: 2025-12-16 12:33 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि संस्थागत निर्णय-निर्माण में समावेशिता और मानवीय दृष्टिकोण को मार्गदर्शक सिद्धांत होना चाहिए। अदालत ने राज्य बार काउंसिल चुनावों में दिव्यांग अधिवक्ताओं के लिए आरक्षण की मांग वाली याचिका पर नोटिस जारी करते हुए बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) को निर्देश दिया कि वह इस मुद्दे पर परामर्श कर एक ठोस प्रस्ताव अदालत के समक्ष पेश करे।

चीफ जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिसॉ यमाल्या बागची की खंडपीठ तमिलनाडु बार काउंसिल के चुनावों में दिव्यांग अधिवक्ताओं के लिए 4 प्रतिशत आरक्षण की मांग वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी। सुनवाई के दौरान सीजेआई ने बार-बार कहा कि दिव्यांग व्यक्तियों का प्रतिनिधित्व कानूनी पेशे को मजबूत करेगा और संस्थाओं के मानवीय चरित्र को उन्नत करेगा।

बीसीआई अध्यक्ष और सिनियर एडवोकेट मनन कुमार मिश्रा ने याचिका का विरोध करते हुए दलील दी कि संसद या राज्य विधानसभाओं में दिव्यांगों के लिए आरक्षण नहीं है और यदि ऐसी मांगें स्वीकार की गईं तो अनेक श्रेणियों के दावे सामने आ जाएंगे। उन्होंने यह भी कहा कि अधिवक्ताओं में दिव्यांगों की संख्या बहुत कम है और सीमित सीटों वाली बार काउंसिलों में एक सीट आरक्षित करना व्यवहारिक नहीं होगा।

इस पर सीजेआई ने टिप्पणी की कि एक भी प्रतिनिधि संस्थान की समावेशिता को सशक्त करेगा और उसकी मानवीय पहचान को मजबूत करेगा। तमिलनाडु बार काउंसिल की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता एस. प्रभाकरन ने भी आपत्ति जताई, जिस पर सीजेआई ने कहा कि तमिलनाडु ने ऐतिहासिक रूप से उत्कृष्ट विधि नेतृत्व दिया है और उसे समावेशी प्रथाओं में अग्रणी होना चाहिए।

याचिकाकर्ताओं की ओर से सिनियर एडवोकेट इंदिरा जयसिंह ने कहा कि दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम में आरक्षण का प्रावधान है और चुनाव कार्यक्रम घोषित होने के कारण मामले को लंबित रखने से याचिका अगले पाँच वर्षों के लिए निष्प्रभावी हो सकती है। उन्होंने नामांकन शुल्क ₹1.25 लाख को दिव्यांग अधिवक्ताओं के लिए संरचनात्मक बाधा बताया और उसमें रियायत की मांग की।

खंडपीठ ने बीसीआई को निर्देश दिया कि वह चुनावों की घोषणा से पहले इस विषय पर ऑनलाइन या अन्य माध्यम से परामर्श कर विचार करे और सुझाव दिया कि आवश्यकता पड़ने पर सीटों में 1-2 की वृद्धि या सह-वरण (co-option) जैसे विकल्पों पर भी विचार किया जा सकता है। सीजेआई ने कहा कि अनेक दिव्यांग अधिवक्ता सक्रिय रूप से प्रैक्टिस कर रहे हैं और उनकी क्षमता किसी से कम नहीं है, तथा उदाहरण के तौर पर दिल्ली हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता एस.के. रुँगटा का उल्लेख किया।

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बताया कि दिव्यांगों को सरकारी वकीलों के रूप में पैनल में शामिल किया जा रहा है, जिस पर सीजेआई ने इसे सराहनीय पहल बताया और समावेशी समाज की “आर्किटेक्चर” मजबूत करने की बात कही।

मामले की अगली सुनवाई जनवरी के पहले सप्ताह में होगी। उल्लेखनीय है कि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद बीसीआई ने राज्य बार काउंसिलों में महिलाओं के लिए आरक्षण लागू करने पर सहमति दी थी।

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