सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को असम-एनआरसी से संबंधित याचिका में "स्ट्रक्चर रिलीफ" के साथ वापस आने के लिए कहा

Update: 2022-09-27 08:22 GMT

असम, एनसीआर

सुप्रीम कोर्ट ने अन्य बातों के साथ-साथ कथित विदेशियों का पता लगाने और निर्वासन की आड़ में असम में धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यक समुदायों के लोगों के कथित उत्पीड़न को रोकने के लिए अदालत की राहत की मांग करने वाली याचिका की सुनवाई सोमवार तक स्थगित कर दी।

याचिका में अधिकारियों को 31.08.2019 को प्रकाशित एनआरसी के 'अंतिम मसौदे' से नामों को हटाने/बाहर नहीं करने का निर्देश देने की भी मांग की गई; उचित सत्यापन के बिना 'संदिग्ध' मतदाताओं की पहचान को रोकने; एनआरसी के मसौदे को अंतिम रूप देने के बाद ही उस व्यक्ति को अवसर प्रदान करें, जिसका नाम 2019 की सूची में नहीं है, जिससे वे अपने आवेदनों की अस्वीकृति के खिलाफ अपील कर सकें।

प्रार्थनाओं के अन्य सेट में याचिका में कुछ सुरक्षा उपायों को शामिल करके विदेशी अधिनियम, 1946 और विदेशी (न्यायाधिकरण) आदेश, 1964 में संशोधन करने के लिए पीठ से अनुरोध किया गया। साथ ही सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर पुनर्विचार करने की भी प्रार्थना की गई, जिसने अवैध प्रवासियों (ट्रिब्यूनल द्वारा निर्धारण) अधिनियम, 1983 को अल्ट्रा वायर्स घोषित किया था। उक्त आदेश के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट र्वोच्च न्यायालय ने संबंधित अधिकारियों को विदेशी अधिनियम 1946 के तहत संदिग्ध विदेशियों की नागरिकता से संबंधित मामलों को तय करने का निर्देश दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्देश यह देखते हुए दिया कि असम में बांग्लादेश से अवैध प्रवासियों के बेरोकटोक प्रवाह के कारण बाहरी और आंतरिक गड़बड़ी हुई। याचिका में दावा किया गया कि उक्त आदेश ने अधिकारियों को निराधार आरोप लगाने, निष्पक्ष जांच के बिना मनमाने ढंग से मामलों को संदर्भित करने और फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल द्वारा मनमाने ढंग से निर्णय लेने की सुविधा प्रदान की है। अवैध प्रवासी (न्यायाधिकरण द्वारा निर्धारण) अधिनियम, 1983 में निर्धारित सुरक्षा सिस्टम की अनुपस्थिति में नागरिकता स्थापित करने के लिए सबूत का बोझ विदेशी अधिनियम के अनुरूप 'गरीब आवेदकों' पर स्थानांतरित कर दिया गया।

जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ और जस्टिस हिमा कोहली ने याचिकाकर्ता की ओर से पेश सीनियर वकील संजय हेगड़े को याचिका में और अधिक संरचित राहत (Structured Reliefs) के साथ वापस आने के लिए कहा, क्योंकि वर्तमान याचिका में प्रार्थना बेतरतीब तरीके से निर्धारित की गई। कोर्ट ने विशेष रूप से कहा कि भारत के संविधान, 1950 के अनुच्छेद 32 के तहत अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करते हुए सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर पुनर्विचार करना संभव नहीं होगा, जैसा कि वर्तमान याचिका में प्रार्थना की गई है।

याचिका में कहा गया कि 2019 की सूची में 19,06,657 आवेदकों को छोड़ दिया गया। नागरिकता का दर्जा साबित करने की प्रक्रिया कठिन है और अपने वंश को साबित कर नागरिकता स्थापित करने की कोशिश कर रही विवाहित महिलाओं के लिए मुश्किल कई गुना बढ़ जाती है। याचिका में जातीय सफाई के आरोप भी लगाए गए । उसी वर्ष एक और पूरक सूची प्रकाशित की गई।

यह बताता है कि 2021 में असम विधान सभा चुनाव के समापन के बाद नव नियुक्त मुख्यमंत्री डॉ हेमंत बिस्वा सरमा ने घोषणा की कि सीमावर्ती क्षेत्रों में एनआरसी के 20% और अन्य क्षेत्रों में 10% की समीक्षा की जाएगी। असम एनआरसी के राज्य समन्वयक ने भी नागरिकता की अनुसूची (नागरिकों का रजिस्ट्रेशन और राष्ट्रीय पहचान पत्र जारी करना) नियमों के खंड 4 (3) के तहत एनआरसी के मसौदे और एनआरसी की पूरक सूची के पुन: सत्यापन की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

[केस टाइटल: तारेक अख्तर अंसारी बनाम यूओआई और अन्य डब्ल्यू.पी.(सी) नंबर 130/2022]

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