सुप्रीम कोर्ट का मेधा पाटकर से सवाल: वीके सक्सेना के खिलाफ 25 साल पुराने मानहानि मामले को क्यों घसीट रही हैं?
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को मेधा पाटकर की उस याचिका पर विचार करने से इनकार किया, जिसमें उन्होंने दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी, जिसमें उन्हें दिल्ली के उपराज्यपाल (Delhi LG) वीके सक्सेना के खिलाफ 2000 में दायर आपराधिक मानहानि के मामले में अतिरिक्त गवाह से पूछताछ करने की अनुमति नहीं दी गई। बता दें, उस समय वीके सक्सेना , एनजीओ नेशनल काउंसिल फॉर सिविल लिबर्टीज के प्रमुख थे।
जस्टिस एमएम सुंदरेश और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की खंडपीठ ने पाटकर को हाईकोर्ट के फैसले में हस्तक्षेप करने की अनिच्छा व्यक्त करने के बाद याचिका वापस लेने की अनुमति दी।
सुनवाई के दौरान, जस्टिस सुंदरेश ने पाटकर के वकील से पूछा,
"आप इसे क्यों घसीटना चाहते हैं?"
पाटकर के वकील ने दलील दी कि अगर मामला बरी हो जाता है तो उनके खिलाफ आगे की कार्रवाई का खतरा बना रहेगा।
उन्होंने कहा,
"अगर इस मामले में बरी हो जाता है तो क्या उसके बाद वह मुझे छोड़ देगा? नहीं, वे इस मामले में मेरे खिलाफ कार्रवाई करेंगे। यह खतरा तो है ही।"
सक्सेना की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट मनिंदर सिंह ने इस आशंका का विरोध किया और बताया कि इस मामले में पाटकर ही वह व्यक्ति हैं, जिन्होंने सक्सेना के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई है।
उन्होंने कहा,
"क्या कार्रवाई... यह उनकी शिकायत है, माई लॉर्ड।"
हालांकि, सिंह ने जस्टिस सुंदरेश के इस प्रस्ताव का विरोध किया कि न्यायालय पाटकर की याचिका खारिज कर दे। साथ ही यह दर्ज करे कि प्रतिवादी द्वारा याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई कार्रवाई प्रस्तावित नहीं है।
जस्टिस सुंदरेश ने स्पष्ट किया,
"हम केवल यह कह रहे हैं कि दोनों पक्ष इस मुद्दे पर आगे नहीं बढ़ेंगे, बस इतना ही।"
सिंह ने आगे कहा,
"मेरे सभी कानूनी विकल्प खुले हैं, बस इतना ही।"
पाटकर के वकील ने बहस के लिए स्थगन की मांग की तो जस्टिस सुंदरेश ने यह कहते हुए मना कर दिया,
"नहीं, गुण-दोष के आधार पर हम इसे पहले ही खारिज कर चुके हैं। हम गुण-दोष के आधार पर इस पर विचार नहीं कर रहे हैं। अगर आप टिप्पणी नहीं चाहते तो हम नहीं देंगे। चूंकि आपने यह टिप्पणी की है, इसलिए हमने सोचा कि आपको सुविधा प्रदान की जाए, बस।"
सिंह ने बताया कि गवाहों से पूछताछ न करने के लिए पाटकर पर कई बार जुर्माना लगाया जा चुका है।
खंडपीठ ने कहा कि यह मामला आगे जारी रखने लायक नहीं है।
जस्टिस सुंदरेश ने टिप्पणी की,
"देखिए, आप दोनों के प्रति पूरे सम्मान के साथ मुझे लगता है कि यह उचित नहीं है... चलिए इसे यहीं समाप्त कर देते हैं।"
इसके बाद पाटकर के वकील ने याचिका वापस लेने की अनुमति मांगी, जिसे खंडपीठ ने स्वीकार कर लिया।
पाटकर ने 10 नवंबर, 2000 को इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित "मेधा पाटकर और उनके नर्मदा बचाओ आंदोलन का असली चेहरा" टाइटल वाले एक कथित मानहानिकारक विज्ञापन को लेकर दिसंबर, 2000 में सक्सेना के खिलाफ वर्तमान आपराधिक मानहानि का मुकदमा दायर किया था। मुकदमे के दौरान, पाटकर ने 2018 और 2024 के बीच चार गवाहों से पूछताछ की।
फरवरी, 2025 में उन्होंने अतिरिक्त गवाह, नंदिता नारायण से पूछताछ के लिए CrPC की धारा 254(1) के तहत आवेदन दायर किया। हालांकि, न्यायिक मजिस्ट्रेट ने 18 मार्च, 2025 को इसे खारिज कर दिया। दिल्ली हाईकोर्ट ने 29 जुलाई, 2025 को इस खारिजगी को बरकरार रखा।
हाईकोर्ट ने माना कि कार्यवाही के लंबे समय तक लंबित रहने के दौरान प्रस्तावित गवाह को पेश न करने का कोई पर्याप्त कारण नहीं था और निचली अदालत के फैसले में कोई अवैधता नहीं पाई।
सुप्रीम कोर्ट ने 11 अगस्त को सक्सेना द्वारा दायर मानहानि के मामले में पाटकर की दोषसिद्धि बरकरार रखी। हालांकि, उन पर लगाए गए ₹1 लाख का जुर्माना रद्द कर दिया।
नवंबर, 2000 में "एक देशभक्त का असली चेहरा" टाइटल से जारी प्रेस नोट में उन्होंने सक्सेना पर आरोप लगाए थे। अप्रैल, 2025 में निचली अदालत ने उन्हें भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 500 के तहत दोषी ठहराया। हालांकि, परिवीक्षा अवधि लागू करके उन्हें जेल से छूट दी।
दिल्ली हाईकोर्ट ने परिवीक्षा की शर्तों में थोड़ा बदलाव करते हुए उनकी दोषसिद्धि और सजा बरकरार रखी। सुप्रीम कोर्ट ने परिवीक्षा की शर्तों में बदलाव करते हुए उन्हें समय-समय पर पेश होने के बजाय मुचलके भरने की अनुमति दी।
Case Title – Medha Patkar v. VK Saxena