सुप्रीम कोर्ट ने "बुलडोजर" कार्रवाई को चुनौती देने वाली जमीयत की याचिका पर सुनवाई 7 सितंबर तक स्थगित की
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को जमीयत उलेमा-ए-हिंद द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई 7 सितंबर 2022 तक स्थगित कर दी। इस याचिका में आरोप लगाया गया कि यूपी और एमपी जैसे राज्यों में अधिकारी के दंगों जैसे मामलों में आरोपी व्यक्तियों के घरों को तोड़ने के लिए "बुलडोजर" कार्रवाई का सहारा ले रहे हैं।
जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की पीठ के समक्ष सीनियर एडवोकेट संजय हेगड़े ने सीनियर एडवोकेट पीवी सुरेंद्रनाथ की तबीयत खराब होने के कारण स्थगन की मांग की। पीठ ने सीनियर एडवोकेट सीयू सिंह को प्रतिवादियों द्वारा दायर हलफनामे पर जवाब दाखिल करने का समय भी दिया।
शीर्ष न्यायालय ने 12 जुलाई, 2022 को मौखिक रूप से पूछा था कि क्या वह अनधिकृत निर्माणों के विध्वंस को रोकने के लिए सर्वव्यापी आदेश पारित कर सकता है।
जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने दो जनहित याचिकाएं दायर की हैं - एक यह सामान्य घोषणा करने की मांग करते हुए याचिका दाखिल की गई है कि अपराध करने के आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ दंडात्मक उपाय के रूप में विध्वंस कार्रवाई नहीं की जा सकती है। दूसरी जनहित याचिका उत्तरी दिल्ली नगर निगम द्वारा हनुमान जयंती जुलूस के दौरान हुए दंगों के बाद की गई विध्वंस कार्रवाई के खिलाफ दायर की गई।
कानपुर और प्रयागराज में कुछ इमारतों को तोड़ने की गई कार्रवाई के बाद जमीयत ने जहांगीरपुरी से संबंधित अपनी याचिका में एक आवेदन दायर किया, जिसमें आरोप लगाया गया कि यूपी के अधिकारी पैगंबर मोहम्मद साहब पर टिप्पणी के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के दौरान हिंसा के आरोपियों को निशाना बना रहे हैं।
जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस विक्रम नाथ की अवकाश पीठ ने 16 जून, 2022 को उत्तर प्रदेश सरकार से कहा था कि वह कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अलावा विध्वंस गतिविधियों को अंजाम न दे। पीठ ने राज्य को यह दिखाने के लिए तीन दिन का समय भी दिया था कि हाल ही में किए गए विध्वंस किस तरह प्रक्रियात्मक और नगरपालिका कानूनों के अनुपालन में थे।
पीठ ने कहा था, "कार्रवाई केवल कानून के अनुसार होगी।"
न्यायालय के आदेश के अनुपालन में, उत्तर प्रदेश राज्य ने एक हलफनामे के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत किया कि कानपुर और प्रयागराज में हाल ही में किए गए विध्वंस स्थानीय विकास प्राधिकरणों द्वारा उत्तर प्रदेश शहरी नियोजन और विकास अधिनियम, 1973 के अनुसार किए गए थे। राज्य ने स्पष्ट रूप से इस बात से इनकार किया था कि विध्वंस को दंगों से जोड़ा गया और यह कहा कि भवन नियमों के उल्लंघन के लिए प्रक्रिया शुरू की गई थी।
केस टाइटल: जमीयत उलमा I हिंद और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य| डब्ल्यूपी (सीआरएल) 162/2022