'इस तरह बहस करने की प्रवृती बढ़ रही है, इसे रोका जाना चाहिए': हाईकोर्ट के समक्ष वकील के दुर्व्यवहार पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा

Update: 2021-12-11 06:36 GMT
इस तरह बहस करने की प्रवृती बढ़ रही है, इसे रोका जाना चाहिए: हाईकोर्ट के समक्ष वकील के दुर्व्यवहार पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा

सुप्रीम कोर्ट ने एक वकील की याचिका पर सुनवाई करते हुए उसे बिना शर्त माफी के साथ एक हलफनामा दायर करने की अनुमति दी। उक्त वकील के खिलाफ कोर्ट रूम में दुर्व्यवहार के लिए हाईकोर्ट ने अवमानना ​​​​कार्यवाही शुरू की थी।

सुप्रीम कोर्ट ने बिना शर्त माफी मांगने के साथ ही वकील को यह भी सुनिश्चित करने के लिए कहा कि वह  भविष्य में ऐसा नहीं करेगा।

बेंच इस मामले पर 13 दिसंबर को फिर सुनवाई करेगी।

न्यायमूर्ति एमआर शाह और न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना की पीठ ने हालांकि इस तरह के व्यवहार के खिलाफ कड़ी टिप्पणी की और कहा कि बहस करने की ऐसी घटनाएं बढ़ रही हैं और इसे रोका जाना चाहिए।

न्यायमूर्ति शाह की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा,

"हाईकोर्ट के समक्ष जो कुछ भी हुआ वह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है। इसी के लिए अवमानना ​​की कार्यवाही का आदेश दिया गया। इस तरह की घटनाएं बढ़ रही हैं। इसे रोका जाना चाहिए।"

वर्तमान मामले में उत्तराखंड हाईकोर्ट ने 22 अगस्त, 2019 को एक आदेश पारित किया था। इसमें अदालत में दुर्व्यवहार करने के लिए याचिकाकर्ता के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करने के लिए मामले को बार काउंसिल ऑफ उत्तराखंड को संदर्भित किया गया था।

बेंच ने बार काउंसिल को वकील के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करने और उसके बाद की गई कार्रवाई पर कोर्ट को जवाब देने का निर्देश दिया था।

इसके बाद वकील ने एक आवेदन दायर किया गया। इसमें यह प्रार्थना की गई कि वह अपना आदेश वापस ले ले। वकील के आवेदन का आधार यह था कि जिस तारीख को दुर्व्यवहार की घटना हुई थी, वह बीमार था। मामले पर बहस करने में असमर्थ था। इसीलिए उसने प्रस्तुत किया कि न्यायालय उचित आदेश पारित करे, क्योंकि न्यायालय उसकी सुनवाई नहीं कर रहा है।

हाईकोर्ट ने उसके स्पष्टीकरण को यह कहते हुए स्वीकार करने से इनकार कर दिया कि उसी दिन वकील का एक और मामला था। इसे सूचीबद्ध किया गया था और उसने वही तर्क दिया था।

हाईकोर्ट ने नोट किया,

"यह बहुत ही असंभव है कि कुछ मामलों के बाद उसने ऐसा बयान दिया कि अदालत ऐसा आदेश नहीं दे सकती, क्योंकि अदालत उसे सुनने के लिए तैयार नहीं है।"

यह देखते हुए कि माफी खुद ही घटना की स्वीकृति के बराबर है, बेंच ने आगे कहा कि एक व्यक्ति जो अदालत की कार्यवाही में इस्तेमाल की गई भाषा से अदालत को अपमानित करने के लिए उद्यम कर सकता है वह अवमानना ​​​​है।

हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता द्वारा दिए गए कारणों और स्पष्टीकरण को स्वीकार करने से इनकार करते हुए आदेश को वापस लेने के आग्रह को खारिज कर दिया। बेंच ने बार काउंसिल ऑफ उत्तराखंड को यह भी निर्देश जारी किया कि वह कोर्ट को रिपोर्ट करे कि उन्होंने आदेश के अनुसार क्या कार्रवाई की है।

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