बॉम्‍बे रेंट कंट्रोल एक्ट के तहत किराएदार को सबलेटिंग की अनुमति नहीं, जब तक कि अनुबंध में ऐसा प्रावधान ना हो: सुप्रीम कोर्ट

Update: 2023-03-23 13:37 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक फैसले में दोहराया कि बॉम्बे रेंट, होटल और लॉजिंग हाउस रेट्स (कंट्रोल) एक्ट, 1947 के लागू होने के बाद सबलेट (किराये पर ली गई संपत्ति को किराये पर देना ) करना वैध नहीं होगा, जब तक कि अनुबंध में स्पष्ट रूप से ऐसा प्रावधान नहीं किया गया है।

जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस संजय कुमार की पीठ ने कहा,

"इन प्रावधानों से यह स्पष्ट हो जाता है कि सामान्य प्रक्रिया में और किसी भी अन्य कानून में निहित किसी भी बात के बावजूद, जब तक कि अनुबंध खुद सबलेट करने की अनुमति नहीं देता है, 1947 के अधिनियम के संचालन में आने के बाद यह वैध नहीं होगा। 

सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्‍बे हाईकोर्ट के फैसले, के खिलाफ दायर एक चुनौती पर विचार करते हुए यह टिप्‍पणियां की। बॉम्बे हाईकोर्ट ने लीज पर दिए गए परिसर के कब्जे की रिकवरी का फैसला दिया था।

मामले में लीज पर लिए गए परिसर के कब्जे को किराएदार से रिकवर करने के लिए याचिका दायर की गई थी।

ट्रायल कोर्ट ने माना कि अपीलकर्ता बॉम्बे रेंट कंट्रोल एक्ट की धारा 13(1)(ई) के तहत किरायेदार को बेदखल करने का दावा करने के हकदार थे। इसकी पुष्टि अतिरिक्त जिला न्यायाधीश, पुणे ने की। हाईकोर्ट में भी अपील की गई, जिसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा।

अदालत के सामने मुख्य सवाल यह था कि क्या किरायेदार ने लीज के परिसर में अपने व्यवसाय के असाइनमेंट के संबंध में लीज की शर्तों का उल्लंघन किया है, जो 1947 के अधिनियम की धारा 13(1)(ई) के तहत उसे बेदखल करने की गारंटी देता है।

न्यायालय ने उल्लेख किया कि धारा 15(1) का प्रावधान राज्य सरकार को किसी भी क्षेत्र में, लीज या लीज की एक श्रेणी के तहत धारित परिसर में ब्याज के हस्तांतरण की अनुमति देने के लिए, आधिकारिक राजपत्र में एक अधिसूचना जारी करके, उस सीमा को, जिसके लिए इस तरह के हस्तांतरण की अनुमति है, को विधिवत चित्रित करने के लिए अधिकृत करता है।

हालांकि एक किरायेदार द्वारा एक वास्तविक साझेदारी विलेख का निष्पादन, जहां उन्होंने व्यवसाय में सक्रिय रूप से भाग लेने और किराए के परिसर पर नियंत्रण बनाए रखने के लिए एक एकमात्र स्वामित्व वाली फर्म को एक साझेदारी व्यवसाय में परिवर्तित कर दिया, यह सबलेटिंग के बराबर नहीं होगी, अदालत ने कहा कि इस तरह का सिद्धांत मौजूदा मामले पर लागू नहीं होता क्योंकि किरायेदार ने समझौते को निष्पादित करने से नहीं रोका।

वर्तमान मामले में, किरायेदार ने 1985 के एक साझेदारी समझौते को निष्पादित किया और असाइनमेंट समझौते को निष्पादित करने के लिए बढ़ गया, जहां उसने कृष्ण बी शेट्टी को लीज्ड परिसर में अपना होटल व्यवसाय सौंपा और बयाना राशि भी प्राप्त की।

कोर्ट ने कहा, किराएदार ने स्वीकृत रूप से 2,00,000 के लिए लीजहोल्ड परिसर में अपना व्यवसाय कृष्णा बी शेट्टी के पक्ष में सौंप दिया, और बयाना के रूप में ₹50,000 की राशि स्वीकार की, जो लीज की स्थिति और वैधानिक जनादेश के उल्लंघन को स्थापित करने के लिए अपने आप में पर्याप्त थी।

कोर्ट ने कहा,

"इस दस्तावेज़ के निष्पादन का कार्य ही लीज़ की शर्तों और वैधानिक जनादेश के उल्लंघन को पूरा करने के लिए अपने आप में पर्याप्त था और इसके लिए और कुछ करने की आवश्यकता नहीं थी।"

अपीलों को स्वीकार करते हुए, अदालत ने निर्देश दिया कि प्रतिवादी (मृतक के कानूनी प्रतिनिधि) सूट परिसर को खाली करें और इसे दो महीने में अपीलकर्ताओं को सौंप दें।

केस टाइटल: युवराज @ मुन्ना प्रल्हाद जगदाले व अन्य बनाम जनार्दन सूबाजीराव विदे| Civil Appeal Nos. 28552856 Of 2011

साइटेशन : 2023 लाइव लॉ (एससी) 228

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