'यह कहानी को सुनाने जैसा होना चाहिए ': सुप्रीम कोर्ट ने युवा वकील को आपराधिक अपील पर बहस करने का तरीका बताया

Update: 2022-02-02 11:27 GMT

सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने हत्या और आजीवन कारावास की सजा के खिलाफ एक याचिका पर सुनवाई करते हुए मंगलवार को याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश एक युवा वकील को अदालती श‌िल्प और बहस की कला के बारे में समझाया और अंत में बरी करने का आदेश पारित किया।

अदालत ने यह भी व्यवस्था की कि याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील को एक सीनियर एडवोकेट आपराधिक अपील पर बहस करने के तरीके के बारे में समझाए।

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस विक्रमनाथ की पीठ एक आपराधिक अपील पर इलाहाबाद हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच के जनवरी, 2019 के फैसले के खिलाफ 2020 की दो विशेष अनुमति याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी।

हाईकोर्ट ने अपने आदेश में सेशन जज, बदायूं द्वारा पारित जुलाई, 2008 के फैसले को बरकरार रखा था, जिसके तहत एसएलपी याचिकाकर्ताओं और कुछ अन्य को आईपीसी की धारा 148, 302/149 के तहत दोषी ठहराया गया और आईपीसी की धारा 148 के तहत दो साल के कठोर कारावास और आईपीसी की धारा 302/149 के तहत आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई।

शुरुआत में, जब याचिकाकर्ताओं के वकील अपनी प्रस्तुतियों में लड़खड़ाते दिखे तो ज‌स्टिस सूर्यकांत ने उनसे कहा, "तथ्यों को हमेशा एक फिक्‍शन राइटर की तरह याद रखें। ऐसा लगे कि आप हमें एक कहानी बता रहे हैं, नैरेटिव भी ऐसा ही होना चाहिए।"

जब वकील ने हाईकोर्ट के आक्षेपित निर्णय से पीठ को अवगत कराने का प्रयास किया तो जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, "जब आप दोषसिद्धि के खिलाफ एक आपराधिक अपील कर रहे हैं तो आपको हाईकोर्ट के फैसले के बिना अपना मामला बताना चाहिए...आप अपने मामले का निष्पक्ष और अप्रभावित दृष्टिकोण चाहते हैं ... यह अदालती शिल्प का मामला है, जिसे आपको हाईकोर्ट के समक्ष पहली अपील पर बहस करते समय भी याद रखना चाहिए।"

बेंच ने समझाया कि फैसले का हवाला देते हुए एक गंभीर समस्या हो सकती है। जब वकील ने पास-ओवर के लिए प्रार्थना की तो जस्टिस चंद्रचूड़ ने उनसे कहा, "अब आपके पास सुप्रीम कोर्ट का मूल्यवान न्यायिक समय है, पास-ओवर के लिए ना कहें। हम इसे एक साथ देखेंगे।"

जज बार-बार अधिवक्ताओं से आग्रह कर रहे हैं कि वे पास-ओवर की मांग न करें, विशेष रूप से पुराने आपराधिक मामलों में, क्योंकि एक बार मामला आगे बढ़ने के बाद, कुछ समय के लिए उनकी सुनवाई नहीं हो सकती है, जिससे पार्टियों को नुकसान होता है।

जब एडवोकेट ने एफआईआर पर बहुत अधिक भरोसा करने की मांग की तो जज ने समझाया, "आप एफआईआर के आधार पर बहस नहीं कर सकते..आपको हमें महत्वपूर्ण सबूत दिखाना होगा।"

जब वकील ने अभियोजन पक्ष के गवाहों के बयान पढ़ने की मांग की तो जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, "आपको अपने बिंदु तैयार करने होंगे। पीडब्लू 1 के बयान को पढ़कर आप क्या स्थापित करना चाहते हैं?"

पीठ ने उन्हें बताया कि मामले के रिकॉर्ड के आधार पर तर्क कैसे आगे बढ़ाया जाए, अभियोजन पक्ष के गवाहों के बयानों में विसंगतियों की ओर इशारा करते हुए, वे जिरह में कैसे उन्हें उजागर किया जाए।

इसके बाद पीठ ने प्रतिवादी-राज्य के वकील को सुना। दोनों पक्षों की दलीलों के निष्कर्ष पर पीठ ने याचिकाकर्ताओं को बरी करने के अपने आदेश को आगे बढ़ाया।

जस्टिस चंद्रचूड़ ने वरिष्ठ अधिवक्ता मनोज स्वरूप से अनुरोध किया , जो एक अन्य मामले में पीठ के सामने पेश हो रहे थे, मंगलवार को शाम को वकील के साथ एक आपराधिक अपील पर बहस कैसे करें, इस पर बातचीत करें।

जस्टिस चंद्रचूड़ ने श्री स्वरूप से कहा, "श्री मनोज स्वरूप आपको कनिष्ठ वकील के लिए यह करना होगा। कृपया उनके साथ बातचीत करें।"

जस्टिस ने एसएलपी याचिकाकर्ताओं के वकील से कहा , "शाम को अपना काम पूरा होने के बाद, कृपया श्री मनोज स्वरूप के साथ आपराधिक अपील पर बहस करने पर लगभग 15 मिनट तक बात करें।"

जस्टिस चंद्रचूड़ ने जोर देकर कहा, "अब जब आपको बरी कर दिया गया है, तो यह मत सोचो कि यह सब हो गया है। आपको शाम को श्री स्वरूप से बात करनी होगी या आप अगली बार बड़ी मुश्किल में पड़ सकते हैं।" 

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