शाहीन बाग प्रदर्शनकारियों ने धरना स्थल से स्ट्रक्चर हटाने की पुलिस कार्रवाई की सुप्रीम कोर्ट में शिकायत की
शाहीन बाग में प्रदर्शन स्थल पर बने स्ट्रक्चर को जबरन हटाने की दिल्ली पुलिस की कार्रवाई पर कड़ी आपत्ति जताते हुए, प्रदर्शनकारियों ने अदालत द्वारा नियुक्त वार्ताकारों के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक बयान प्रस्तुत किया है।
प्रदर्शनकारियों ने कहा कि COVID-19 के कारण लॉकडाउन के उपायों का हवाला देते हुए बुधवार सुबह की गई पुलिस कार्रवाई बेहद अनुचित थी, क्योंकि उन्होंने खुद को COVID-19 प्रोटोकॉल के मद्देनजर विरोध प्रदर्शन में भाग लेने वाले लोगों की संख्या कम कर दी थी और
धरना स्थल पर प्रतिकात्मक रूप से महिलाओं की संख्यां 5 से कम थी। इसके बावजूद, पुलिस ने कुछ अन्य लोगों के साथ COVID-19 लॉकडाउन उपायों को लागू करने के बहाने तीव्रता से कार्रवाई की।
बयान में कहा गया है:
"जबकि हम कर्फ्यू लागू करने और उचित प्रतिबंधों को लागू करने की सख्त आवश्यकता को समझते हैं, हमारे विरोध के भौतिक मार्करों के निर्मम तरीके से तोड़ा गया।
विशेष रूप से हमारे प्रदर्शन की बहुत संरचनाएं जिनसे प्रदर्शनकारियों, स्थानीय लोगों और सहानुभूति रखने वालों की भावनाएं जुड़ी हैं।
पुलिस बड़ी संख्या में कुछ युवाओं के साथ हमारी साइट पर (कुछ ट्रैक्टरों पर) आई और साइट पर हमारे स्ट्रक्चर को तोड़ा।
यह असंतोषजनक है और इस विध्वंस में हम सभी अज्ञात लोगों की संलिप्तता की निष्पक्ष जांच की मांग करते हैं, जिन्होंने 24.03.2020 को सुबह 6 से 10 बजे के बीच शाहीन बाग में पुलिस बलों के साथ मौजूद कुछ गैर-पुलिस कर्मियों ने धरना स्थल पर तोडफ़ोड़ की।
22.03.2020 रविवार तक, शाहीन बाग सभा को पूरी तरह से साफ कर दिया गया था और 3-5 महिलाओं के प्रदर्शनकारियों के एक दूसरे से पर्याप्त दूरी पर बैठे लोग प्रतीकात्मक विरोध के लिए वहां बैठे थे।
हमारे पीएम द्वारा बुलाए गए कर्फ्यू के दौरान 22.03.2020 को अज्ञात उपद्रवियों द्वारा हमारे धरना स्थल पर एक भयानक पेट्रोल बम से हमला किया गया था। हालांकि, इन खतरों के बावजूद, हमारा छोटा, स्वच्छता रक्षक समूह बहादुरी से वहां बैठा रहा।
प्रदर्शनकारियों ने अफसोस जताया कि सीएए-एनआरसी के खिलाफ उनके विरोध ने एक देशव्यापी आंदोलन को जन्म दिया, लेकिन केंद्र सरकार ने उनकी चिंताओं की कोई परवाह नहीं की।"
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