सत्र न्यायालय का यह कर्तव्य कि हत्या के आरोपी के खिलाफ मुकदमा चलाने से पहले वह खुद को संतुष्ट करे कि मामला गैर इरादतन हत्या का है या नहींः सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक फैसले में कहा कि सत्र न्यायालय का कर्तव्य है कि वह हत्या के आरोपी के खिलाफ मुकदमा चलाने से पहले खुद को संतुष्ट करे कि गैर इरादतन हत्या का मामला बनता है या नहीं।
अभियोजन पक्ष का मामला यह था कि आरोपी ने दो अगस्त 2011 को लगभग 08:30 बजे अपने बेटे को जगाया और उससे सिगरेट लाइटर खरीदने को कहा, जिसके बाद वहां विवाद हुआ और आरोपी ने बेटे पर हमला कर दिया, जिससे बेटे की मौत हो गई। इस मामले में आरोपी को दोषी ठहराया गया। केरल हाईकोर्ट ने उसकी अपील भी खारिज कर दी।
अपील में अभियुक्त ने तर्क दिया कि निचली अदालतों ने गवाहों के साक्ष्यों में मौजूद विसंगतियों पर विचार नहीं किया और अभियुक्तों को फंसाने वाली प्रथम सूचना रिपोर्ट के पंजीकरण में भी अत्यधिक देरी हुई।
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस एमएम सुंदरेश की पीठ ने कहा कि यह भी सबूत है कि आरोपी ने घटना के बाद बेटे जिंदा करने का प्रयास किया, उसके चेहरे पर पानी छिड़का, और उसके शरीर को गर्माहट देने का प्रयास किया। बाद में उसे उठाया और अस्पताल ले गया।
कोर्ट ने कहा,
"उपरोक्त साक्ष्य से, यह स्पष्ट है कि मामला आईपीसी की धारा 304 भाग एक के तहत दंडनीय अपराध की श्रेणी में आएगा, न कि आईपीसी की धारा 302 के तहत। यह सामान्य बात है कि सत्र न्यायालय पर एक कर्तव्य ओरोपित किया गया है कि हत्या के आरोपी के मुकदमे को आगे बढ़ाने से पहले उसे यह प्रैक्टिस करनी है और खुद को संतुष्ट करना कि गैर इरादतन हत्या का मामला बनता है या नहीं।
रिकॉर्ड पर उपलब्ध सामग्री स्पष्ट रूप से इस तथ्य को स्थापित करती है कि यह मामला गैर इरादतन हत्या का मामला है, और इसलिए यह आईपीसी की धारा 304 भाग एक के तहत दंडनीय अपराध के अंतर्गत आएगा।"
अपील को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए, पीठ ने दोषसिद्धि को आईपीसी की धारा 304 भाग एक में संशोधित कर दिया, और सजा को पहले ही पूरी की जा चुकी अवधि तक कम कर दिया।
केस टाइटलः शाजी बनाम केरल राज्य | 2023 लाइव लॉ (एससी) 625 | सीआरए 2293/2023